एक ब्राह्मण की मौत हो गई।
उसकी निर्धन पत्नी अकेली बची।
ब्राह्मण ने मरने के बाद सुनहरे हंस के रूप में दोबारा जन्म लिया और
अपनी पत्नी के पास जाने का निश्चय किया।
वह अपने पुराने गाँव गया, जहाँ उसने देखा कि उसकी पत्नी बहुत निर्धनता में जीवन बिता रही है।
हंस को बहुत देख हुआ और वह पत्नी से कहने लगा, “मैं तुम्हारा पति हूँ।
मैं हर दिन तुम्हें एक स्वर्ण-पंख दूँगा।
तुम उसे बेच दिया करो और उस धन से अपनी आवश्यकताएँ पूरी कर लिया करो। "
इसके बाद, वह हंस अपनी पत्नी को हर दिन एक स्वर्ण-पंख देने लगा।
पत्नी जल्द ही बहुत धनी हो गई।
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने सोचा कि क्यों न सारे स्वर्ण-पंख एक साथ निकाल लिए जाएँ।
उसने हंस को पकड़ा और सारे पंख नोंच-नोंचकर निकालने लगी ।
हंस ने जी-जान लगाकर अपने को किसी तरह छुड़ाया और हमेशा के लिए उड़ गया।
लालची औरत अकेली रह गई और उसके पास अब आमदनी का कोई साधन नहीं रहा।