एक व्यापारी का बहुत उद्दंड बेटा था।
वह पूजा-पाठ और भलाई के कामों में बिलकुल रुचि नहीं लेता था ।
धर्म-कर्म में उसकी रुचि जगाने के इरादे से उसकी माँ ने उसे एक मंदिर में संत के प्रवचन सुनने के लिए भेजा।
उसकी माँ ने उसे लालच दिया कि अगर वह संत के पूरे प्रवचन सुनकर आएगा
तो वह उसे हज़ार रुपए देगी।
रुपयों के लालच बेटा तैयार हो गया, लेकिन ध्यान से प्रवचन सुनने के बजाय वह वहाँ पूरे समय सोता रहा।
अगले दिन सुबह, उसका बेटा घर लौटा और उसने माँ से हज़ार रुपए ले लिए।
रुपए लेकर उसने व्यापार के लिए समुद्र पार जाने का निश्चय किया ।
उसकी माँ ने उसे रोकने का बहुत प्रयास किया, लेकिन बेटे ने उसकी एक नहीं सुनी।
उसने अपना सामान बाँधा और यात्रा पर निकल पड़ा। मगर अफसोस!
रास्ते में बहुत तेज़ तूफान आया और उसका जहाज़ सारे यात्रियों समेत डूब गया।
इस प्रकार माँ की सलाह न मानने की सज़ा बेटे को भी भुगतनी पड़ी।