अनाथपिंडिक का एक दोस्त था जिसका नाम शैतान था ।
अनाथपिंडिक सुखी और समृद्ध जीवन बिता रहा था,
जबकि शैतान को हर कार्य में असफलता मिलती थी।
अनाथपिंडिक ने उसे हिसाब-किताब का काम सौंप दिया।
शैतान अनाथपिंडिक के घर ही रहने लगा।
हालाँकि अनाथपिंडिक के घर वाले शैतान की उपस्थिति
से प्रसन्न नहीं थे क्योंकि उसका नाम अपशकुन वाला था।
कुछ दिनों बाद, एक दिन जब शैतान घर में अकेला था,
तभी कुछ लुटेरे वहाँ घुस आए। शैतान सावधान था ।
उसने तुरंत एक योजना बनाई।
उसने घर में इस तरह से शोरगुल मचाया जैसे वह घर में सभी को जगाने की कोशिश कर रहा हो।
लुटेरे उसकी इस हरकत से चकरा गए और घर से भाग गए।
जब अनाथपिंडिक वापस लौटा तो उसे पूरी घटना के बारे में पता चला।
उसने शैतान को धन्यवाद दिया और अपने घर वालों को भी समझाया कि वे शैतान के बारे में गलत सोच रखते थे ।
“नाम में कोई बुराई नहीं होती।
मुझे विश्वास है कि तुम लोग इस घटना से सबक सीखोगे और अंधविश्वास से छुटकारा पा लोगे।”
वह बोला ।