एक ईमानदार कुम्हार था।
एक बार उसके साथ एक दुर्घटना हो गई और उससे लगी
चोट से उसके माथे पर स्थायी रूप से एक निशान बन गया।
दिन बीतते रहे और एक बार गाँव में अकाल पड़ गया।
कुम्हार के पास भी कोई काम नहीं बचा।
वह गाँव छोड़कर किसी अन्य जगह चला गया।
वहाँ वह राजा की सेना में भर्ती हो गया।
एक दिन राजा ने अपनी सेना की शक्ति परखने के लिए नकली युद्ध कराने का निश्चय किया।
राजा की निगाह कुम्हार पर भी पड़ी।
उसे देखकर राजा सोचने लगा, “यह तो निश्चय ही बहुत बहादुर योद्धा होगा।”
"किस युद्ध
में तुम्हें इतना गहरी चोट लगी थी ?” राजा ने पूछ लिया।
कुम्हार ने विनम्रता से जवाब दिया, “महाराज, मैं तो कुम्हार था।
मैंने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा।”
राजा बहुत क्रोधित हुआ। “सैनिको, यह झूठ बोलता है ।
इसे दंड दिया जाए,” उसने आदेश दिया। कुम्हार रोने लगा, “महाराज, मैं योद्धा नहीं हूँ,
ये बात सच है, लेकिन मुझमें युद्ध लड़ने की हिम्मत और शक्ति है।
फिर महाराज, मैंने आपसे झूठ भले ही बोला हो, पर मैंने आपको सचाई बताने का ख़तरा भी उठाया है।
ऐसे में मुझे दंड नहीं दिया जाना चाहिए।”
राजा उसकी सचाई से प्रसन्न हुआ और उसने कुम्हार को सोने के कई सिक्के पुरस्कार में दिए।