एक पाठशाला में पढते समय बच्चे मुँह से बार-बार सीटी बजाया करते।
एक दिन गुरु जी ने कहा-'अब से कोई पढते समय सीटी बजायेगा तो उसे सजा दी जाएगी।
इसलिए उस दिन किसी ने सीटी नहीं बजायी, परन्तु दुसरे दिन पाठ के समय फिर सीटी सुनाई दी ।
पाठशाला मे एक लड़का बदमाशी करने और बार-बार सीटी बजाने के लिए प्रसिद्ध था ।
गुरुजी ने समझा उसी ने सीटी बजायी होगी । उसको बुलाकर पूछने पर उसने कहा - 'गुरुजी, मैने तो नही बजाई ।' पर गुरुजी को उसकी बात का विश्वास नहीं हुआ ।
गुरूजी ने गुस्से मे आकर उसे मारने के लिए ज्यों ही बेंत उठायी कि झट से एक लड़के ने सामने आकर विनय के साथ कहा - गुरुजी ! इसने सीटी नहीं बजायी , सीटी तो भूल से मैने बजायी थी ।
सजा मुझको दीजिए ।
गुरुजी ने प्रसन्न होकर कहा - 'तुझे सजा नही होगी तूने अपने-आप सामने आकर अपना अपराध स्वीकार किया है और दूसरे को अन्याय का भागी होने से बचाया है ।
तेरी इस सदबूद्धि पर मैं बहुत प्रसन्न हूंँ ।
सब बालकों को तेरे ही समान सच बोलने बाला बनना चाहिए ।