बंगाल में मालदा शहर के बाहर एक बड़े बगीचे में एक तेरह-चौदह वर्ष का लड़का घूम रहा था। इतने में बशीर मुहम्मद नामक एक काबुली मुसाफिर अपने साज- सामान के साथ वहाँ आ पहुँचा। वह थोड़ी देर वहाँ ठहरा और जाये समय रुपयों की एक थैली वहीं भूल गया। उस थैली में पाँच हजार रुपए थे। उस चौदह वर्ष के बंगाली लड़के ने उस थैली को देखते ही उठा लिया और यह जानकर कि उसमें बहुत रुपए हैं-उसने ईमानदारी बरती और रुपए उसके असली मालिक को देने का निश्चय किया।
उधर बशीर मुहम्मद जब कुछ दूर निकल गया, तब उसे रुपयों की थैली याद आयी। बहुत घबराया और बगीचे की ओर उलटॆ पाँव दौड़ा। बालक ने उसे चिन्तित देखकर पूछा-'क्या तुम्हारी कोई चीज खो गयी है? व्यापारी ने कहा-'मेरी रुपयों की थैली खो गयी है।' बालक ने उसको थैली दिखाते हुए कहा-'ये अपने रुपए लो।' बशीर मुहम्मद ने थैली खोलकर गिना तो उसमें एक भी रुपया कम नहीं था। फिर उसने बालक से पूछा-'तुमने इतने रुपयों के लालच को कैसे रोका? बालक ने नम्रतापूर्वक कहा-'मैंने बचपन से ही यह सीखा है कि दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान तुच्छ समझकर कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए। बालक की बात सुनकर वह व्यापारी चकित हो गया और खुशी से उसको पाँच रुपए इनाम देने लगा। पर लड़के ने कहा-'मैंने आपके रुपये आपको वापस दे दिए, यह मेरा धर्म ही था। इसमें इनाम की कौन बात है? न लौटाता तो जरूर बेईमानी करता।'
उस लड़के की यह भलमनसाहत देखकर बशीर मुहम्मद उसको बहुत शाबाशी देने लगा और उसके इस भले काम की खबर उसने समाचार पत्रों में छपवायी। उस बालक की साधुता की कहानी के अन्त में बशीर मुहम्मद ने कहा था कि 'वे रुपए मेरे मालिक के थे। यदि बालक वे रुपए खा गया होता तो मेरे मालिक का विश्वास मेरे ऊपर से उठ जाता और मुझे कैदखाने में जाना पड़ता। इसलिए इस बालक ने मेरे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है, इसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। मैं कभी इस लड़के को भूल नहीं सकता और मैं प्रतिदिन यह प्रार्थना करूँगा कि प्रभू इसे लंबी उम्र और सुख प्रदान करें।'
उस बालक का नाम 'वीरेश्वर मुखोपाध्याय था। साधुता के गुण से प्रत्येक मनुष्य इसी प्रकार लोकप्रिय और आशीर्वाद का पात्र बन सकता है।