कोर्सिकाकी राजधानी में एक बड़े बगीचे में एक लड़का और लड़की खेल रहे थे। लड़के का नाम नेपोलियन और लड़की का इलाइजा था। खेलते-खेलते दोनों बगीचा पार करके बहुत दूर निकल गये। वहाँ इलाइजा की असावधानी से एक किसान की लड़की की पकी जामुन की टोकरी गिर गयी और जामुन के फल टूट गये। उस लड़की को रोती देखकर इलाइजा ने कहा-'भाई! चलो, हम भाग चलें जिससे कोई जानने न पाये।'
'मैं नहीं जाऊँगा। देख, यह लड़की कितना रोती है। हमने जो नुकसान किया है, वह इसको भर देना चाहिए। यह हमारा कर्तव्य है.-ऎसा कहकर नेपोलियन उस लड़की के पास गया। इलाइजा भी भाई का अभिप्राय समझकर उस लड़की के जो फल गिरे थे, उन्हें बीनने लगी।
'घर जाकर मैं माँ को क्या कहूँगी, सारे फल बिगड़ गये, इससे मुझे तीन दिनों की खूराक मिलती। इतना कहकर वह लड़की खूब रोने लगी। 'रो मत' ऎसा कहकर नेपोलियन ने तीन छोटॆ चाँदी के सिक्के उसके हाथ में दिये और फिर कहा-'मेरे घर चल, बाकी पैसे मैं तुझे दूँगा।'
इलाइजा ने भाई के कान में कहा-'भाई! तुम यह क्या कर रहे हो? माँ को खबर मिलेगी तो वह हमें सजा करके केवल रोटी और पानी ही देगी।'
भाई ने जवाब दिया-'तो इससे क्या, हमने फल नष्ट किये हैं, उनके दाम तो देने ही पड़ेगे।'
इतने में दासी के बुलाने पर भाई और बहिन दौड़ गये। उनके पीछे अनजानी एक लड़की को आते देखकर दासी ने पूछा-'यह कौन है?'
लड़के ने जवाब दिया-'हमसे इसके कुछ जामुन के फल नष्ट हो गये हैं। माँ उसकी कीमत देगी ऎसा सोचकर मैं इसको साथ लाया हूँ।
घर के दीवानखाने में नेपोलियन की माँ मैडम लिटिसया बैठी थी। नेपोलियन, इलाइजा, दासी और किसान की लड़की वहाँ पहुँची। लड़को की ओर मुँह करके वह बोली-'खेलने जाते वक्त तुमको मैंने कहा था न कि बगीचे के बाहर न आना? अब तो बस, तुमको खेलने ही न जाना होगा।'
'माँ! इलाइजा को सजा न दो; मैं ही गया था और वह तो मेरे साथ गयी थी।' यों कहकर नेपोलियन ने अपना दोष स्वीकार किया। इलाइजा चुप होकर भाई को देखने लगी। मैडम लिटिसिया का भाई भी वहाँ बैठा था, वह लड़के की इस सचाई से प्रसन्न होकर उसका अपराध क्षमा करने के लिए प्रार्थना करने लगा।
डरी हुई इलाइजा को अपने भाई के बर्ताव से हिम्मत मिली और वह मामा का हाथ पकड़ कर बोली-'मेरी ही गलती से नुकसान हुआ है। भाई को कुछ न कहना।'
उसके मामाने पूछा-'तुमने क्या किया है इलाइजा?' लड़की ने सारी बातें कह सुनायीं और स्वीकार कर लिया कि उसकी गलती से नुकसान हुआ है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे; परंतु अपराध स्वीकार करने से उसकी माँ ने क्षमा कर दिया।
इसके बाद नेपोलियन ने कहा कि माँ! मैं एक वस्तु माँगता हूँ। तुम महीने-महीने खर्च करने के लिए मुझे जो तीन सिक्के देती हो वह मुझे दोगी? 'माँ ने तुरंत पुत्र की प्रार्थना स्वीकार की और कहा-'अब डेढ महीने तक तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा। नेपोलियन ने सिक्के लेकर उस फलवाली लड़की को दे दिए।
किसान की लड़की को पूरा दाम मिल गया, वह प्रसन्न हो गयी और पहले दिये हुए तीन चाँदी के छोटॆ सिक्कों को वापस्करने लगी; परंतु नेपोलियन ने नहीं लिया। लड़की का ऎसा अच्छा व्यवहार देखकर मैडम लिटिसिया बहुत प्रसन्न हुई और 'तेरी माँ कहाँ है? तुम कितने भाई-बहिन हो? तेरा घर कहाँ है?- आदि पूछने लगी। उसके बाद वे सब उसके घर गये और उसकी बीमार माँ के लिये उन्होने दवा और खाने का प्रबन्ध कर दिया।