ईरान देश में जीलान नामक स्थान में सैयद अब्दुल कादिर का जन्म हुआ था। उनके पिता का वचपन में ही देहान्त हो गया था। माता ने ही उनका पालन पोषण किया था। बालक अब्दुल कादिर में बचपन से विद्याप्रेम था। उन दिनो जीलान के आस-पास उच्च शिक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं था। गाँव की पढाई समाप्त होने पर अब्दुल कादिर ने बगदाद जाने का विचार किया। बगदाद ही उच्च शिक्षा का केन्द्र था। अब्दुल कादिर की माता नहीं चाहती थीं कि उनका इकलौता पुत्र उन से इतनी दुर जाय, परंतु बेटे का पढने के लिए आग्रह देखकर उन्होंने आज्ञा दे दी।
यह लगभग नौ सौ वर्ष पुरानी बात है। उस समय न मोटरें थीं और न रेलें । व्यापारी लोग ऊँट, खच्चर आदि पर सामान लादकर व्यापार करने दल बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाया करते थे; क्योंकि रास्ते में लुटेरों और ठगों का बहुत भय रहता था। यात्रा करने वाले लोग भी व्यापारियों के किसी दल के साथ ही कही आते-जाते थे। जीलान से बगदाद व्यापारियों का एक दल जानेवाला था। अब्दुल कादिर की माता ने अपने बेटॆ की फतुही के भीतर चालीस अशर्फियाँ सावधानी से सी दीं। अब्दूल कादिर जब उस व्यापारी दल के साथ जाने लगे तो माता ने कहा-'बेटा! तुम्हारे पिता इतना ही धन छोड़ गए थे। इसे सावधानी से काम में लेना। मेरी एक बात कभी मत भूलना कि चाहे जितना बड़ा संकट तुम पर आवे, परंतु झूठ भूलकर भी मत बोलना। भगवान की कृपापर विश्वास रखना।'
माता को प्रणाम करके बालक अब्दुल कादिर व्यापारियों के साथ चल पड़ॆ। रास्ते में डाकुओं ने व्यापारियों को घेरकर लूट लिया। डाकू बहुत अधिक थे। सुनसान जंगल में अचानक आक्रमण किया, इसलिए बेचारे व्यापारी कुछ भी नहीं कर सके। डाकुओं ने व्यापारियों को बहुत पीटा भी, लेकिन बालक अब्दुल कादिर के कप ऎसे फटे-पुराने थे कि डाकुओं ने समझा-'इस लड़के के पास कुछ नहीं होगा। जब डाकू व्यापारियों को लूटकर जाने लगे तो एक डाकूने यों ही अब्दुल कादिर से पूछा-' लड़के! तेरे पास भी कुछ है?'
अब्दुल कादिर को अपनी माता की बात याद आ गयी। वे बिना हिचक के बोले-'हाँ, मेरे पास चालीस अशर्फियाँ हैं।
डाकुओं ने समझा कि लड़का हॅंसी कर रहा है। उन्होंने डाँटा; किंटु जब अब्दुल कादिर ने फतुही उतारकर उनको दिखायी और उसमें अशर्फियाँ निकालीं तो डाकुओं को बड़ा आश्चर्य हुआ। उनके सरदार ने पूछा-लड़के! तू जानता है कि हम तेरी अशर्फियाँ छीन लेंगे, फिर तूने हमको इनका पता क्यों बताया?
अब्दुल कादिर बोले-'मेरी माताआआ ने मुझे कभी भी झूठ न बोलने को कहा है। अशर्फिया बचाने के लिए मैं झूठ कैसे बोल सकता था। तुम लोग मेरी अशर्फियाँ ले जाओगे तो भी भगवान मुझपर दया करेंगे। वे मेरा काम रुकने नहीं देंगे।'
एक छोटे-से बालक की ऎसी बातें सुनकर डाकुओं को अपने लूट के काम पर बड़ा पश्चाताप हुआ। उन्होंने अब्दुल कादिर की अशर्फियाँ तो लौटा ही दीं, सब व्यापारियों का पूरा माल भी लौटा दिया और उसी दिन से डाका डालने का काम छो दिया। इस प्रकार एक बालक ने सत्यपर दृढ रहकर इतने डाकुओं को पाप करने से बचा लिया।