एक गाँव में एक गड़ेरिये का लड़का एक पेड़ के नीचे बैठकर आस-पास में बकरियाँ चरा रहा था। थोड़ी देर के उसने अपने पीछे एक सुन्दर और अच्छा कपड़ा पहने बारह वर्ष के लड़के को खड़ा देखा। लड़के ने समझा कि 'वह लड़का जंगल के रखवाले का बेटा होगा।' इससे उसने सलाम करके कहा-'साहव!फरमाइये।' वह लड़का बोला-'इस जंगल में चिड़ियों के घोंसले हैं ?' गड़ेरिये का लड़का कुछ चकित होकर बोला-'हाँ साहब! जंगल में ऎसे बहुत से घोंसले हैं। आप जंगल के मालिक के लड़के हैं, तिस पर भी क्यो नही जानते ?'
उस सुन्दर लड़के ने घोंसला देखने की इच्छा प्रकट की, तो वह गड़ेरिया का लड़का बोला-'मैंने आज एक बढिया घोंसला देखा है; परंतु मैं आपको न दिखा सकूँगा। इतने में उस लड़के का शिक्षक वहाँ आ पहुँचा और उस गड़ेरिये के लड़के की बात सुनकर गुस्से में होकर बोला-'तू बड़ा मूर्ख है। कुँवर ने कभी घोंसला देखा नहीं, इससे वह सिर्फ देखना चाहता है, वह उसको छुयेगा नहीं, इसलिए उसे घोंसला दिखाकर प्रसन्न कर दो।'
गड़ेरिये के लड़के ने नम्रता से कहा कि 'दुःख है कि मैं उसे दिखला नहीं सकता। वह जवाब सुनकर उस लड़के के शिक्षक ने कहा-'लड़के! तुमने बहुत लोगों को प्रसन्न किया होगा, फिर राजकुँवर को क्यों नहीं प्रसन्न कर देते; यह सुनकर लड़के ने आश्चर्य करके टोपी उतारकर सिर झुकाया और फिर धीरे से कहा-'क्या ये राजकुँवर हैं? मैं इनको देखकर बहुत ही प्रसन्न हूँ और अपने को भाग्यशाली समझता हूँ; परंतु यदि स्वयं राजा साहब आयें तो भी मैं पक्षीका घोंसला नहीं दिखा सकूँगा; क्योंकि मेरा मित्र मथुरा उस पर्वत पर बकरियाँ चराता है। उसने आज ही सवेरे मुझको एक बढिया घोंसला दिखलाया था, पर उस घोंसले से उसको काम होने के कारण उसने कहा था कि दूसरे किसी को यह घोंसला न दिखलाना। मैंने यह बात मान ली, इससे अब मैं अपनी बात न तोड़ूँगा।' यह सुनकर शिक्षक ने परीक्षा लेने के लिये गिन्नियों से भरी एक थैली जेब में से निकाली और कहा-'यदि तू उस सुन्दर घोंसले को दिखा देगा तो ये सारी गिन्नियाँ तुझे मिल जायॅंगी और मथुरा को इस बात की खबर भी न होगी।
यह सुनकर गड़ेरिये के लके ने कहा-'मथुरा जाने या न जाने, पर यह तो विश्वासघात का काम होगा। ऎसा काम मैं नही करता। मैंने उसको जो वचन दिया है, उसे कभी नहीं तोड़ूँगा।
यह सुनकर शिक्षक ने कहा-'इस गिन्नियों की कीमत तुम जानते हो? इनसे तो बहुत-सी चीजें खरीदी जा सकती हैं।
गड़ेरिये के लड़के ने कहा-'साहब! मैं जानता हूँ कि इन गिन्नियों से मेरे माँ-बाप की गरीबी दूर हो जाएगी, फिर भी मैं ऎसा न करूँगा। कृपा करके आप जाइए, मुझे लोभ में मत डालिऎ।
यह सुनकर शिक्षक ने कहा-'भले ही तू अपना वचन पाल, पर मैं तो इतना कहूँगा कि अपने मित्र के पास जाकर तू यदि उसकी आज्ञा ले ले तो ये सारी गिन्नियाँ तुझको दे दूँगा और तू चाहेगा तो दूसरी थोड़ी गिन्नियाँ तेरे मित्रको भी मिल जायॅंगी।'
गड़ेरिये के लड़के ने कहा-'हाँ, दोपहर को आज्ञा लेने के बाद देखा जायगा।' इसके बाद राजकुँवर और शिक्षक अपने मुकामपर चले गये, वहाँ पता लगाने पर मालूम हुआ कि उस गड़ेरिये के लड़के का नाम जीवो है और उसका बाप बड़ा ही भला आदमी है। दोपहर को वापस आकर गड़ेरिये के लड़के ने उनसे कहा-'यह है मेरा मित्र, इसने दिखाने की आज्ञा दे दी है। अब चलिए, मैं आपलोगों को घोंसला दिखला दूँ।
इसके बाद उसने राजकुँवर को घोंसले के पास बुलाकर कहा-'देखों, वह मादा अण्डॆ के ऊपर बैठी है, यह वह घोंसला है। इतना कहना था कि मादा वहाँ से उड़ गयी और उसके बाद सबने पक्षी का बढिया गूँथकर बनाया हुआ घोंसला तथा उसके अन्दर के अण्डों को आनन्दपूर्वक देखा। राजकुँवर भी बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद शिक्षक ने वादे के अनुसार गिन्नियों मे से कुछ मथुरा को दी और बाकी सब जीवो को दे दी। गिन्नियाँ लेकर दोनों लड़के घर गये।
उस दिन राजा भी घूमते-फिरते अपने लड़के को देखने के लिए जंगल में उसी मुकामपर आ पहुँचे। उसके बाद सब लोग नाश्ता करने बैठे; तब राजकुँवर ने पक्षी के घोसलें की सारी बातें राजा से कहीं और उस गड़ेरिये के लड़के की ईमानदारी की बात भी कह सुनायी। राजा ये सारी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उसने उस लड़के को बुलवाया। जब वह आया, तब राजा ने बहुत ही प्रेम से उससे कहा-'लड़के! तू पढना चाहता है? लड़के ने कहा-'हाँ महाराज! पर मेरा बाप बड़ा ही गरीब है।
इसके बाद राजा ने तुरंत ही उसके बाप को बुलवाकर कहा-'इस लड़के के पढने का खर्च राज्य की ओर से मिलेगा, इसलिए इसको पढने के लिए राजधानी में भेज दो।
गड़ेरिये का लड़का राजधानी में गया। वह मन लगाकर पढने लगा और कुछ ही दिनों में बहुत कुछ पढना सीख गया। पढ - लिख लेने के बाद उसको राजा ने अपने यहाँ नौकर रख लिया। इससे वह बड़ा ही सुखी हुआ और उसने बहुत बड़ा नाम किया।