छोटे बालक की सचाई

दो छोटे बालक चले जा रहे थे। रास्ते के एक छोटे बगीचे में रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। फूलों की सुगन्ध से सारा रास्ता महक रहा था। यह देखकर एक लड़के ने कहा 'इस में से थोड़े-से फूल मुझ मिल जाते तो मैं ले जाकर अपनी बीमार बहिन को देता, वह बहुत प्रसन्न होती।' यह सुनकर दूसरे ने कहा- तो तोड़ क्यो नहीं लेते ? तुम्हारा हाथ न पहुँचता हों तो लाओ मैं तोड़ दूँ, मैं तुमसे लम्बा हूँ।' पहले लड़के ने उसका हाथ पकरकर कहा- नहीं-नहीं ! ऎसा मत करना चोरी बहुत बुरी चीज है। मैं मालिक से माँग लूँगा इतने पर भी दूसरे लड़के ने गुलाब का एक गुच्छा तोड़ लिया। माली ने दूर से उसे तोड़ते देख लिया और दौड़कर पकड़ लिया, मारा और ले जाकर बंद कर दिया।

इधर पहले लड़के ने दरवाजे पर जाकर पुकारा । अंदर से एक दयालु बुढिया माई ने आकर किंवाड़ खोल दिये । लड़के ने कहा- 'माँजी ! कृपा करके मेरी बीमार बहिन के लिए मुझे दो-एक गुलाब के फुल दोगी ?' बृद्धा स्त्री ने कहा-'बड़ी खुसी से बेटा ! मैं तुम दोनों की बातें सुन रही थी, तु बड़ा अच्छा लड़का है, चल तुझेगुलाब का बढिया गुच्छा तोड़ दूँ।'

बुढिया ने तोड़ दिए और कहा- 'बेटा जब-जब तेरीबहिन फूल माँगे तब-तब आअर लेजाया कर ।इतना ही नहीं, बुढिया लड़के की बीमार बहिन से और उसकी माँ से मिलने गयी और उस लड़के को पढने का खर्च देने लगी। जब लड़का पढ चुका, तब उसे अपने यहाँ नौकर रख लिया । सच्चाई का कितना सुन्दर नतीजा है ।