एक गरीब लड़का था । घर में उसकी माँ थी और एक छोटी बहिन । बहिन बीमार थी । वह उसकी दवा कराने के लिए अपने चाचा से कहने जा रहा था । रास्ते मे उसे एक पाकेटबुक पड़ी मिली । उसमें १२०) के नोट थे ।
लड़का बड़ा ईमानदार था । उसने अपने मन में निश्चय कर लिया कि यह जिसकी पाकेटबुक है, उसका पता लगाकर उसे जरूर दूँगा ।' उसने घर आकर अपनी माँ से सब हाल सुनाकर कहा - 'माँ जिस बेचारे की पाकेटबुक खोई है, उसकॊ बड़ी चिन्ता हो रही होगी; क्योंकि इसमें उसके रुपये हैं। हम ये रुपए रख लेंगे तो बहुत पाप होगा और प्रभु हमपर नाराज होंगे; पर जिसके रुपए खोये हैं, उसका पता कैसे लगे? माँ! तू कोई उपाय बता, जिससे मैं उसे खोज पाऊँ।' लड़के की माँ भी बड़ी ईमानदारी थी। तभी तो उसको ऎसा पुत्र हुआ। वह पुत्र की बात सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई।
उसने कहा-'बेटा ! भगवान तेरी नियत की सच्चाई इसी प्रकार दृढ रक्खें । तेरा कल्याण हो । बेटा ! किसी अखबार मे खबर देने से मालिक आप ही आकर ले जाएगा ।'
लड़का अखबार बाले के पास गया । उसकी नेक नीयती देखकर अखबार बाले ने उसके नाम से यह विज्ञप्ति छाप दी - 'मुझे एक पाकेटबुक रास्ते मे मिली है, उसमॆ एक सौ बीस रुपये के नोट हैं । जिसकी हो वह अमुक पते पर आकर सबूत देकर ले जाय ।' विज्ञप्ति पढ़कर पाकेटबुक का मालिक आया और इतनी गरीबी में भी ऎसी ईमानदारी देखकर चकित हो गया ।
उसने कहा - 'जो गरीब होकर भी दूसरों के पैसों पर जी नहीं ललचाता , वहीं सच्चा ईमानदार है और वहीं प्रशंसा के योग्य है तथा सचमुच गरीब ही ऎसे ईमानदार होते हैं। पैसेवाले तो प्रायः अभाव न होने पर भी, पैसे के सङ्ग से लोभ मे पड़कर बेईमान हो जाते हैं । तुमको धन्य है, जो इस प्रकार प्रभुपर विश्वास रखकर अपने सत्य पर डटे रहे।'
यह कहकर उसने वे नोट लड़की की दवा और सेवा के लिए आग्रह करके दे दिए और लड़के को अपने यहाँ अच्छी नौकरी दे दी । लड़का अपनी इमानदारी के बलपर आगे चलकर नामी और धनी व्यापारी बना ।