वीर बालक प्रताप

यह महाराणा प्रताप की बात नहीं है।

यह तो चित्तौड़के एक साधारण राजपूत बालक की बात है।

उसका नाम प्रताप था। उसे गाना-बजाना बहुत पसंद था।

उसके माता-पिता और मित्र उससे प्रसन्न नहीं रहते थे।

सब लोग उसे डाँटते और चिढाते थे कि राजपूत के लड़के होकर तुम तलवार चलाना नहीं सीखते हो।

देशपर जब संकट आयेगा, तब तुम अपने कर्तव्य का कैसे पालन करोगे? देशकी सेवा न करे, देशके लिये मर मिटने को तैयार न हो, ऎसा राजपूत भी क्या किसी काम का मनुष्य है?'

प्रताप उन लोगोंसे कहा करता था-'देशकी सेवा केवल तलवार से नहीं होती।

संगीत से भी देशकी सेवा हो सकती है।

काम पड़नेपर मैं बता दूँगा कि देश के लिये मर- मिटने में मैं किसी से पीछे नहीं हुँ।

किसी को प्रताप की बात ठीक नहीं लगती थी। लोग समझते थे कि यह सुकुमार तो है ही, डींग हाँकनेवाला भी है। प्रताप भी अपनी धुनका ऎसा पक्का था कि वह किसीकी बातपर ध्यान ही नहीं देता था।

दिल्लीमें उन दिनों मुगल बादशाह थे। मुगलोंकी बड़ी भारी सेना ने चित्तौड़पर चढाई कर दी। लेकिन चित्तौड़का किला इतना दृढ था कि मुगल सेना उसपर विजय नहीं पा सकती थी। किले की दीवाल या फाटक टूटते ही नहीं थे। बार-बार मुगल-सेना को किले के भीतर के राजपूत वीरों के बाणों की मार खाकर पीछे लौटना पड़ता था।

चित्तौड़में जो शूरवीर राजपूत थे, वे महाराणा की सेना में भर्ती हो गये थे।

लेकिन प्रताप एक तो बालक था और दूसरे उसे अस्त्र-शस्त्र चलाना आता भी नहीं था।

वह सेना में नहीं भर्ती हुआ, पर उसने दूसरा काम चुन लिया।

वह राजपूतों की सेना में घूम-घूमकर वीरता के गीत गाता और उन्हें उत्साह दिलाता था। वह चित्तौड़ में और उसके आस-पास की बस्तियों में भी अकेला ही चला जाता था। वहाँ अपने वीरता के गीत सुनाकर युवकों और तरुणॊं को सेना में सम्मिलित होने का प्रोत्साहित करता था। उसके गीतों का यह प्रभाव हुआ कि महाराणा की सेना दुगुनी हो गयी।

एक दिन जब प्रताप किसी पास की बस्तीमें सितार बजाकर गीत सुना रहा था, एक मुगल सैनिक ने छिपकर उसका गीत सुन लिया। जब प्रताप लौटने लगा, तब उस सैनिक ने प्रताप को पकड़ लिया और सेनापति के पास ले आया। मुगल सेनापति प्रताप को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा-'लड़के! तुम्हें हमारे लिए गीत सुनाना होगा।'

प्रताप ने कहा-'मेरा काम ही गीत सुनाना है। आप कहें, मैं गाने को तैयार हूँ। मुगल सेनापति ने रात को सेना सजायी। चित्तौड़ के किले के पास वह सेना के साथ आया। किले के दरवाजे पर प्रताप को खड़ा करके उसने कहा-'अब तुम अपने गीत गाओ।'

मुगल सेनापति ने सोचा था कि प्रताप के गीत सुनकर किले के भीतर के लोग समझेंगे कि उनकी सहायता के लिये कोई दूसरी राजपूत सेना आयी है। इस धोखें में वे किलेका फाटक खोल देगें। प्रताप मुगल-सेनापति की चालाकी समझ गया। उसने ऎसा गीत गाना प्रारम्भ किया कि उसे सुनकर किले के राजपूत सावधान हो गये। उन्होंने मुगल-सेनापर पत्थरों और तीरों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। बहुत-से सैनिक मारे गये। मुगल सेनापति ने डाँटते हुए प्रताप से पूछा-'लड़के! तू क्या गा रहा है?

प्रताप ने बड़ी निर्भयता से कहा-'मैं गीतमें अपने वीरों से कह रहा हूँ कि शत्रु द्वारपर खड़ा है। सॊओ मत। धोखे में मत आओ। किला मत खोलो! पत्थर मारो, पत्थर! शत्रु का कचूमर निकाल लो।'

मुगल सेनापति प्रताप का सिर एक झटके में काट दिया; किंतु राजपूत सावधान हो गये थे, मुगल-सेना को निराश होकर लौट जाना पड़े। दूसरे दिन राजपूतों को प्रतापकी लाश मिली। देशपर प्राण देनेवाले उस वीर बालक की देहको स्वयं महाराणा ने अपने हाथों चितापर रक्खा।