राठौर वीर अमरसिंह अपनी तेजस्विता के लिये प्रसिद्ध हैं।
वे शाहजहाँ बादशाह के दरबार में एक ऊँचे पदपर थे।
एक दिन बादशाह के साले सलावतखाँ ने उनका अपमान कर दिया।
भरे दरबारमें अमरसिंह ने सलावतखाँ का सिर काट फेंका। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमरसिंह को रोके या उनसे कुछ कहे।
मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे। अमरसिंह अपने घर लौट आये।
अमरसिंह के साले का नाम अर्जुन गौड़। वह बहुत लोभी और नीच स्वभाव का था।
बादशाह ने उसे लालच दिया।
उसने अमरसिंह को समझाया-बुझाया और धोखा देकर महल में ले गया। वहाँ जब अमरसिंह एक छोटे दरवाजे में होकर भीतर जा रहे थे, अर्जुन गौड़ने पीछे से वार करके उन्हें मार दिया।
बादशाह शाहजहाँ इस समाचार से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने अमरसिंह की लाश को किलेकी बुर्जपर डलवा दिया।
एक विख्यात वीरकी लाश इस प्रकार चील-कौवे को खाने के लिए डाल दी गयी।
अमरसिंह की रानी ने समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पतिकी लाश के बिना वह सती कैसे होती।
महल में जो थोड़े-बहुत राजपूत सैनिक थे, उनको उसने अपने पतिकी लाश लेने भेजा, किन्तु बादशाह की सेना के आगे वे थोड़े-से वीर क्या कर सकते थे।
रानी ने बहुत-से सरदारों से प्रार्थना की; परंतु कोई भी बादशाह से शत्रुता लेनेका साहस नहीं कर सकता था। अन्तमें रानी ने तलवार मॅंगायी और स्वयं अपने पतिका शव लाने को तैयार हो गयी।
इसी समय अमरसिंह का भतीजा रामसिंह नंगी तलवार लिये वहाँ आया। उसने कहा-'चाची! तुम अभी रुको। मैं जाता हूँ या तो चाचा की लाश ले आऊँगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
रामसिंह अमरसिंह के बड़े भाई जसवन्तसिंह का पुत्र था।
वह अभी नव युवक ही था। सती रानी ने उसे आशीर्वाद दिया।
पंद्रह वर्ष का वह राजपूत बीर घोड़ेपर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ता सीधे बादशाह के महल में पहुँच गया।
महल का फाटक खुला था। द्वारपाल रामसिंहको पहचान भी नहीं पाये कि वह भीतर चला गया, लेकिन बुर्जके नीचे पहुँचते-पहुँचते सैकड़ो मुसलमान सैनिकों ने उसे घेर लिया।
रामसिंह को अपने मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी।
उसने मुखमें घोड़ेकी लगाम पकड़ रक्खी थी। दोनों हाथों से तलवार चला रहा था। उसका पूरा शरीर रक्त से लथपथ हो रहा था।
सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक थे।
उनकी लाशें गिरती थीं और उन लाशोंपर से रामसिंह आगे बढता जा रहा था।
वह मुर्दों की छातीपर होता बुर्जपर चढ गया। अमरसिंह की लाश उठाकर उसने कंधेपर रक्खी और एक हाथ से तलवार चलाता नीचे उतर गया।
घोड़े पर लाश को रखकर वह बैठ गया। बुर्ज के नीचे मुसलमानों की और सेना आने के पहले ही रामसिंह का घोड़ा किलेके फाटक के बाहर पहुँच चुका था।
रानी अपने भतीजे का रास्ता देखती खड़ी थी।
पति की लाश पाकर उन्होंने चिता बनायी। चितापर बैठी सती ने रामसिंह को आशीर्वाद दिया-'बेटा! गौ, ब्राह्मण, धर्म और सती स्त्रीकी रक्षा के लिये जो संकट उठाता है, भगवान उसपर प्रसन्न होते हैं।
तूने आज मेरी प्रतिष्ठा रक्खी है। तेरा यश संसार में सदा अमर रहेगा।