वीर बालक दुर्गादास राठौर

जोधपुर नरेश महाराज यशवंतसिंह जी के पास उनकी साँड़िनियों (ऊँटनियों) के रक्षक ने यह सूचना पहुचायी कि एह साधारण किसानके लड़के ने एक साँड़िनी को मार डाला है। महाराजने उस किसानको पकड़कर लानेको कहा । किसान का नाम था आसकरण । वह रठौर राजपूत था । महाराजाके सामने आनेपर उसने अपने बालकको आगे करके कहा--'श्रीमानका अपराधी यही है ।'

महाराजने क्रोधसे डाँटकर पूछा--'तुमने साँड़िनी मारी?' बालक ने निर्भयतापूर्वक स्वीकार कर लिया । पूछने पर उसने कहा- 'मैं अपने खेतकी रक्षा कर रहा था । साँड़िनियों को आते देखकर मैंने आगे दौड़कर चरवाहेको मना किया परन्तु उसने मेरी बातपर ध्यान ही नहीं दिया । हमारी फसल नष्ट हो तो हम खायँगे क्या? इसलिए जब एक साड़िनीने मेरे खेतमें मुख डाला, तब मैंने उसे मार दिया। दूसरी साँड़िनियाँ और चरवाहा भी भाग गया ।'

एक छोटा-सा बालक एक मजबूत ऊँटको मार सकता है, यह बात मनमे जमती नहीं थी । महराजने पूछा --'तुमने साँड़िनी मारी कैसे ?'

बालकने इधर-उधर देखा । एक पखालिया ऊँट सामनेसे जा रहा था । वह उस ऊँटके पास गयाऔर कमरसे तलवार खींचकर उसने ऎसा हाथ मारा कि ऊँट की गर्दन उड़ गयी। उसका सिर गिर पड़ा। महाराज उस बालक की वीरतापर बहुत प्रसन्न हुए। उसे उन्होंने अपने पास रख लिया। यही बालक इतिहास-प्रसिद्ध वीर दुर्गादास हुए। औरंगजेब-जैसे क्रूर बादशाह से इन्होंने यशवंत सिंह की रानी तथा राजकुमार अजीत सिंह की रक्षा की। मारवाड़ राज्यका यवनों के पंजे से इन्होंने ही उद्धार किया।