वीर बालक पुत्त

एक समय दिल्लीका मुगल बादशाह अकबर बहुत बड़ी सेना लेकर चित्तौड़ जीतने आया।

चित्तौड़ के राणा उदयसिंह यह देखकर डरके मारे चित्तौड़ छोड़कर दूसरी जगह भाग गये और उनका सेनापति जयमल शहर की रक्षा करने लगा।

पर एक रात को दूरसे अकबरशाहने उसे गोली से मार डाला।

चित्तौड़निवासी अब एकदम घबरा उठे, पर इतने में ही चित्तौड़ का एक बहादुर लड़का स्वदेश की रक्षा के लिए मैदान में आ गया।

उस वीर बालक का नाम था पुत्त। उसकी उम्र केवल सोलह वर्षकी थी।

पुत्त था तो बालक, पर बड़े-बड़े बहादुर आदमियों के समान वह बड़ा साहसी और बलवान था।

उसकी माता, बहिन और स्त्रीने युद्ध में जाने के लिये उसे खुशी से आज्ञा दे दी।

यही नहीं, वे भी उस समय घरमें न बैठकर हथियार लेकर अपने देशकी रक्षा करने के लिये बड़े उत्साह के साथ युद्धभूमि में जा पहुँचीं।

अकबर की सेना दो भागों में बॅंटी थी।

एक भाग पुत्तके सामने लड़ता था और दूसरा भाग दूसरी ओर से पुत्त को रोकने के लिये आ रहा था।

यह दूसरे भागकी सेना पुत्त की माँ, पत्नी और बहिन का पराक्रम देखकर चकित हो गयी।

दोपहर के दो बजते-बजते पुत्त उनके पास पहुचाँ; देखता क्या है कि बहिन लड़ाई में मर चुकी है, माता और स्त्री बंदूक की गोली खाकर जमीनपर तड़फड़ा रही हैं।

पुत्तको पास देखकर माता ने कहा-'बेटा! हम स्वर्ग जा रही हैं; तू लड़ाई करने जा।

लड़कर जन्मभूमि की रक्षा कर या मरकर स्वर्ग में आकर हमसे मिलना।' इतना कहकर पुत्तकी माँने प्राण त्याग दिये।

पुत्तकी पत्नीने भी स्वामी की ओर धीर भाव से एकटक देखते हुए प्राणत्याग किया। पुत्त अब विशेष उत्साह और वीरता से फिर शत्रुसेना का मुकाबला करने लगा। माताकी मरते समय की आज्ञा पालन करने में उसने तनिक भी पैर पीछे नहीं किया और जन्मभूमि के लिये लड़ते-लड़ते प्राण त्याग दिये। इस प्रकार इस एक ही घरके चार वीर नर-नारी स्वर्ग पधारे और उनकी किर्ति सदाके लिये इस संसार में कायम रह गयी।