मुर्शिदाबाद मे नवाब सरफराज खाँ की अमलदारी थी । उन दिनो की यह बात है । वह जनता का प्रेम प्राप्त नहीं कर सके थे । इससे उसके विरुद्ध एक षडयन्त्र रचा गया ।
षडयंत्र रचनेवाला अलीवर्दी खाँ था । एक बड़ी सेना लेकर वह उसके मुकाबले गया । सरफराज खाँ घबरा गया, परंतु अब लड़ने के सिवा छुटकारा न था ।
दोनो सेनाएँ गिरिया के प्रसिद्ध मैदान में पड़ाव डाले पड़ी थीं। बीच में कलकल-ध्वनि करती भागीरथी गङ्गा नदी बह रही थी। दोनों किनारे तंबू खड़े थे। उन तंबुओं की सफेद परछाई भागीरथी के जल में पड़कर सुन्दर छटा दिखला रही थी।
रात बीत गयी। सबेरा हुआ। चारों ओर उजाला हो गया। सूरज उगने के पहले ही लड़ाई का बाजा बज गया। सैनिक लड़ाई के मैदान में आकर खड़े हो गये और लड़ाई होने लगी।
सरफराज खाँ हाथीपर बैठा था। उसका प्रधान सेनापति मारा गया था। इससे वह वीरतापूर्वक लड़ाई में आगे बढता जाता था। इतने में उसे गोली लगी और वह गिर पड़ा। मुर्शिदाबाद के नवाब की सेना में केवल सरफराज खाँ ने ही प्राणों से हाथ धोया।
विजयसिंह नामक एक राजपूत योद्धा था। सेना के पिछले भाग की रक्षा का भार उसके ऊपर था। वह गिरियाके पास खमरा नाम के स्थान में था। उसने अपने मालिक के मरने का समाचार सुना। तुरंत ही वह अलीवर्दी खाँ के सामने झपटा। अपने मालिक की मौत से राजपूत वीर का खून खौल उठा। उसने अपना एक भाला कसकर अलीवर्दी खाँ के ऊपर फेंका; परंतु उसके पहले गोलंदाज सैनिक ने एक गोली विजयसिंह को मारी। वह वही ढेर हो गया। गिरिया के युद्ध में उसने अपना शरीर-त्याग किया।
विजयसिंह का एक पुत्र था, वह केवल नौ वर्षका था। उसका नाम था जालिम सिंह। वह भी इस लड़ाई में अपने पिता के साथ था। जब विजयसिंह घोड़े से लुढककर नीचे गिरा तो उसका पुत्र जालिमसिंह नंगी तलवार लेकर पिताकी मृत देह की रक्षा करने के लिए दौड़ा। चारों ओर अलीवर्दी खाँकी सेना जय-जयकार कर रही थी। रणभेरी की ध्वनि से दिशाऍं कम्पायन हो रही थी, परंतु वह नौ वर्षका बालक जरा भी नहीं सहमा।
अपनी छोटी-सी तलवार लेकर सिंह-शावक के समान गरजने लगा। पिता के शरीर को दुश्मन स्पर्श न करे, इसलिए अपने प्राणों की परवाह न करके निर्भय होकर वह लड़ाई में झूम रहा था। दुश्मनों ने उसे चारों ओर से घेर लिया था, परंतु वह वीर बालक तनिक न डिगा। अपनी नन्हीं तलवार चारों ओर चलाने लगा। अलीवर्दी खाँ खुद ही वहाँ हाजिर था। बालक के अद्भुत साहस और पितृभक्ति को देखकर वह दंग हो गया। उसने सैनिकों को विजयसिंह की मृत देह का दाह-संस्कार कराने का हुक्म दिया।
सैनिक बालक की वीरता पर प्रसन्न होकर उसे कंधे पर बैठाकर ले गये। बालक ने भागीरथी के तटपर दाह-संस्कार करके पिताकी पवित्र राख को गङ्गाजी में बहा दिया।
पवित्र भागीरथी उस पवित्र राख को अपनी छातीपर रखकर कलकल ध्वनि से बह रही थी और बालक वहाँ से उदास होकर तंबू में लौट आया।
मुर्शिदाबाद के इतिहास में गिरिया की लड़ाई बहुत प्रसिद्ध है। राजपूत बालक जालिमसिंह की अद्भुत कथा ने लड़ाई को अधिक प्रसिद्ध कर दिया है।
जिस जगह वीर बालक ने अपनी वीरता दिखलायी थी, वह आज भी जालिमसिंह के माठ के नाम से विख्यात है।