सिंह साहब और रगभेद

खुशवंत सिंह की संपूर्ण कहानियाँ - Khushwant Singh Short Stories

अगर मुझसे पूछो तो मैं कहूँगा कि हमारे मुल्क के लोग ही दोषी होते हैं मिस्टर सिंह ने अपनी चमकती दाढ़ी सहलाते हुए कहा,

'रंगभेद का जो भी मामला भीतर से देखो, गलती किसी न किसी हिन्दुस्तानी की ही होती है।'

सिंह साहब इस मुल्क में दो हफ़्ते पहले ही आये थे,

लेकिन उन्होंने यहाँ के लोगों के बारे में काफ़ी जानकारी हासिल कर ली थी और रंगभेद की समस्या का गहराई से विश्लेषण कर लिया था ।

अब यह बोर्डिंग हाउसों की समस्या ही लो,' वे कहने लगे।

"मैंने कई देखे हैं जो काले लोगों को रखते ही नहीं ।

मैंने उनकी मालकिनों ओर रगभेद से इस बारे में पूछा-उनसे परिचय कर लेने के बाद।

हमेशा इसकी वजह उनका गलत व्यवहार ही होता था।

हमारे लड़के स्त्रियों के खाना लेने से पहले ही अपने हाथ मेज़ पर फैला देते हैं।

हमेशा भर्र-भर्र डकारते रहते हैं । लेवेटरी पर उकड़ूँ बैठते हैं और सब गंदा कर देते हैं।

नहाते वक्‍त बाथरूम में टब में धीरे से लेटने की जगह लोटे से पानी चारों तरफ़ फैलाते हैं ।

इन बातों से बदमज़गी होती है और बदमज़गी से पूर्वाग्रह पनपता है।

हमारे लोगों को मुल्क छोड़ने से पहले मैनर्स सिखाने चाहिये।

आप क्या कहते हैं ?

सब लोग सहमत थे, सिंह साहब से असहमत हुआ ही नहीं जा सकता था।

तय पाया गया कि यूरोपियन आचार-व्यवहार सिखाने के लिए बम्बई में स्कूल खोला जाना चाहिये, जहाँ बाहर जाने वाले हमारे लोगों को टेबिल और बाथरूम मैनर्स का कम से कम छह हफ्ते का कोर्स कराया जाये।

“ललेकिन,' एक आदमी जो सिंह साहब को जानता नहीं था, बीच में बोल उठा, 'शिक्षित नीगरो ये सब मैनर्स जानते हैं लेकिन उनसे भी भेदभाव बरता जाता है ?

'कुछ देशों में तो बलात्कार करने के लिए उन्हें अदालती कार्यवाही के बिना ही फाँसी पर लटका दिया जाता है या काटकर फेंक दिया जाता है,' किसी और ने इसमें जोड़ा ।

सिंह साहब भभक उठे। 'कोई बलात्कार करता है, तो उसे फाँसी मिलनी ही चाहिये दस दफ़ा मिलनी चाहिये ।' यह कहकर उन्होंने ऊँगली उठाई, "आप का क्या कहना है ?

हमने सोचा कि दस दफ़ा तो कुछ ज़्यादा ही है, पर फिर उनसे सहमति व्यक्त की।

फिर वे बोले, "तुमने समस्या की जड़ पकड़ ली है। यह सेक्स है।

हम मान गये कि दुनिया की समस्याओं के पीछे सेक्स होता है।

“यह लड़कियों का ही मामला होता है जिससे सब परेशानियाँ पैदा होती हैं उन्होंने ज़ोर देकर कहा । 'ये घटिया किस्म की लड़कियाँ, हाँ । इसीलिए कोई 'डीसेन्ट' फैमिली हमारे लड़कों से घुलती-मिलती नहीं है।

हमें अपने लिए अपने देश से ही लड़कियाँ ले आनी चाहिये ।

“यह हँसने की बात नहीं है। मैं गम्भीरता से कह रहा हूँ। हमारे लड़के यहाँ आते हैं और लड़कियों पर भूखे कुत्तों की तरह नज़र डालते हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जो गये तो पढ़ाई करने लेकिन सिर्फ़ एल.एल.डी. लेकर लौटे । यह एल.एल.डी. क्‍या है, जानते हो ?

जानते हैं, कहने का मतलब ही नहीं था। सिंह साहब यह मजाक़ दोबारा बतायेंगे। पुराने घिसे-पिटे मज़ाकों को बार-बार कहने में, जैसे वे उन्हीं ने गढ़े हों, उनका सानी नहीं था।

“नहीं जानते क्या होता है एल.एल.डी. ? उन्होंने जोश में भरकर कहा, “तो जान लो। बड़ी मज़ेदार बात है, बहुत ज़्यादा मज़ेदार ।

उन्होंने अपनी तोंद से हाथ बाँध लिये और कुर्सी पर तनकर बैठ गये।

'एक बन्दे ने विदेशी यूनिवर्सिटी में पाँच साल बिताये लेकिन हासिल की सिर्फ़ बीवी। जब वे साहब घर लौटे तो वालिद साहब ने पूछा, क्या करके आये हो, तो उन्होंने जवाब दिया, एल.एल.डी. ।'

'एल.एल.डी.? यह क्या बला है ?” वालिद साहब पूछते हैं, तो लड़का अपनी बीवी को सामने पेश कर देता है, “यह है मेरी एल.एल.डी.-माई लैंडलेडी'ज़ डॉटर । ही...ही...मज़ा आया न ?

यह कहकर सिंह साहब ने अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया जिसे सबने एक-एक करके झिंझोड़ा, यह दिखाने के लिए कि उनका मज़ाक बड़ा शानदार था। वे ख़ुद अपनी जाँघों पर हाथ मारकर तब तक हँसते रहे जब तक आँखों से आँस नहीं निकल आये ।

सिंह साहब ने आँसू पोंछे और सहज हुए, “मज़ाक छोड़ो,' और हाथ हिलाकर जैसे हँसी को परे हटाकर बोले, 'इस बारे में हमें कुछ करना ज़रूर चाहिये ।

इसके बाद अँगूठा ऊपर उठाकर इस तरह बोलने लगे जैसे भीड़ के सामने भाषण दे रहे हों।

'जैसा मैं उस दिन छात्रों के एक दल से कह रहा था, हम सब अपने देश के राजदूतों की तरह हैं। हमें राजदूतों की ही तरह व्यवहार भी करना चाहिये।

मैं मिसेज़ विल्किन्स से इसका ज़िक्र कर रहा था-ये वो लेडी हैं जिनके साथ मैं ठहरा हूँ। वे कहने लगीं, मिस्टर सिंह, सब हिन्दुस्तानी आप जैसे होने चाहिये...'

थे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं,' हमने कहा।

'हाँ, ठीक कहते हैं। तो आप मिसेज़ विल्किन्स को जानते हैं ?

“नहीं, हम मिसेज़ विल्किन्स को तो नहीं जानते, लेकिन मिसेज़ जोन्स और मिसेज़ हेनरी को ज़रूर जानते हैं।

ये सब एक जैसी हैं। आप ठीक कहते हैं। लेकिन इनमें से कुछ...सुनो, जैसे मिसेज़ मैकिन्तोष, जो उनसे बात नहीं करेंगी।

लेकिन मैं ध्यान नहीं देता...लड़की बाहर की हो तो...वो खुद ही आती है। पैसा हो या न हो।

“यही होना भी चाहिये,' सिंह साहब ने उत्साह से कहा । “लड़कियों को बोर्डिंग में रखना अच्छी बात नहीं है ।

“लेकिन उन्हें ले भी कहाँ जायें ? पुलिस हर जगह तंग करती है।'

'पार्क में ” सिंह साहब चीखे । 'सबके सामने ! हरगिज़ नहीं । यह अच्छी बात नहीं है।

“सिंह साहब, आप अपनी सेक्स की समस्या कैसे सुलझोाते हैं ?”

“तुम लोगों के दिमाग़ में सेक्स ही भरा रहता है। इसके सिवाय तुम्हें और कुछ नहीं सूझता ! सिंह साहब हमला करते हुए बोले। 'अब मेरी तरफ़ देखो। मेरे लिए यह कोई समस्या नहीं है। और तुम लोग तो बीवियोंवाले भी हो...'

हमने सिंह साहब पर नज़र डाली : शानदार सिल्क की पगड़ी, चमकदार काली दाढ़ी नीचे ठोढ़ी पर बँधी, चमकती काली आँखें, पान से रँगे होंठ, हल्की सी तोंद जिसे सहलाये जाने का इन्तज़ार था ।

शक्ल-सूरत के अलावा उनका नाम, जिसके साथ कई मानद उपाधियाँ उनके यहाँ आने के बाद जुड़ गई थीं ।

ये मुख्यतः विदेशियों पर प्रभाव डालने के लिए थीं जिनसे उनको मिलना-जुलना होता था और जिनको वे अपनी पगड़ी में लगी सुनहरी पट्टी और कामदार भारतीय जूतों की महत्ता समझाते थे।

इसके अलावा वे हाथ की रेखाएँ देखना भी सीख गये थे। दरअसल पूरब के देशों की सब विशेषताओं के वे अच्छे जानकार बन गये थे, जिन्हें दूसरों के सामने प्रदर्शित करते थे।

'मैं अपनी बीवी को भी लाना चाहता था लेकिन ये एक्सचेंज वगैरह के नियम परेशानियाँ पैदा करते हैं। अब मैं जल्द से जल्द उसके पास लौट जाना चाहता हूँ।

हिन्दुस्तानी औरत दुनिया में बेमिसाल है, जानते हो ?

हमारी औरतें सब देवियाँ हैं और हम लोग राक्षस हैं।

हमें उनके योग्य बनने की कोशिश करनी चाहिये । हमारी शादी के वक्‍त पंडित ने जो कहा उसे मैं कभी नहीं भूलता, “आज से तुम पत्नी के अलावा और सब औरतों को अपनी माँ, बहन और बेटियाँ समझोगे ।”

मैं इसे हमेशा दिमाग़ में रखता हूँ। आपको भी यही करना चाहिये। हमें उनकी उम्र के हिसाब से यही सब कहकर बुलाना चाहिये।

मैं अपनी उम्र की सब औरतों को बहन ही कहता हूँ। एक दफ़ा आप किसी औरत को बहन कह दें तो फिर आप उसके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे, है न ?'

हम तो कर सकते हैं खैर !

क्या यह सोच एक प्रकार की “चैस्टिटी बैल्ट” (सतीत्व के लिए रक्षा-कवच) है ?

“यह क्‍या होती है, मैं नहीं जानता । लेकिन आप कोशिश करके तो देखो । नतीजा अच्छा ही होगा ।

सिंह साहब अपने राजदूती मिशन का सन्देश देकर चले गये, जो जातिभेद, रंगभेद वगैरह सब तरह की दीवारों को तोड़-फोड़कर गिराने वाला था।

हमने सिंह साहब के, माँ, बहन, बेटी के टुकड़ों में बॉटकर व्यवहार करने का फैसला किया। हमने प्लीज़” और “बैंक यू” कहना भी शुरू कर दिया।

खाने की मेज़ पर पहले हाथ बढ़ाना बन्द कर दिया ।

डकारना बन्द कर दिया ।

लेवेटरी की सीटों पर आरामकर्सी की तरह बैठने लगे।

पानी की जगह टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने लगे। लम्बे टब में लेटकर, अपनी गन्दगी से घिरे, नहाने लगे। यह सब रंगभेद को खत्म करने के लिए था।

कुछ महीनों बाद ऐसा हुआ कि हम समुद्र के किनारे एक बड़े शानदार होटल में ठहरे ।

यह अपने आप में एक पूरा शहर था, दर्जन भर लाउंज, डायनिंग रूम, ब्यूटी पार्लर, दवा की दुकानें, किताब घर और क्रोमियम तथा शीशे के चारों तरफ़

फैले वरांडे, छतें वगैरह । इसके अलावा बहुत सारी लिफ्ट थीं जो दिन-रात चलती रहती थीं। इन्हें लड़कों जैसे कपड़े पहने और पीतल के बटन ऊपर से नीचे तक लटकाये ढेरों लड़कियाँ चलाती थीं।

एक रात हम जश्न मनाने बाहर गये। चूँकि यहाँ पीने पर रोक नहीं थी, इसलिए हम लड़खड़ाते हुए वापस लौटे। किसी तरह हम होटल पहुँच गये और लिफ्ट भी तलाश ली। एक साँवली लड़की ने हमारा स्वागत किया । उसके कपड़े अलग थे, वह हिन्दुस्तानी लगती थी, लेकिन थी नहीं। वह कमर तक का कोट और पैरों से जैसे पूरी तरह लिपटी पैंट पहने थी जिससे उसके अंग साफ़ नज़र आते थे।

ग्यारहवीं फ़्लोर, सर ? उसने लिफ्ट का दरवाज़ा बन्द करते हुए पूछा।

“य...स...प्लीज़ ।

हम सामने लगी पट्टी पर संख्या बदलती देखते रहे । फिर लड़की पर नज़र डाली ।

“जय हिन्द,” देवी ने कहा और भारतीय ढंग से हाथ जोड़कर नमस्ते की।

हमने कसकर अपनी आँखें बन्द कर लीं । खोलीं तो सामने लड़की का आकर्षक बदन और पीतल के बटन फिर दिखाई दिए। सिंह साहब करा बताया शब्द होंठों तक आया लेकिन मुँह से बाहर नहीं निकला।

“जय हिन्द,' देवी ने फिर कहा और मुस्कुराकर हाथ जोड़े।

“आप हमारे देश को जानती हैं ?

“नहीं, लेकिन आपके एक देशवासी को जानती हूँ। वह यहीं ठहरा था। पगड़ी पहनता था और दाढ़ी भी थी। पगड़ी आपकी पगड़ी से भी अच्छी थी-पूरी सोने से जड़ी थी। वह खुद भी बहुत अच्छा था ।'

उसकी याद में देवी ने अपनी आँखें बन्द कर लीं। “वह मुझे डांस के लिए ले जाता और इसके बाद हम उसके कमरे में शराब पीते ।

वह भी ग्यारहवीं मंज़िल पर ठहरा था ।

ग्यारहवीं मंज़िल आ गई।

“आप ड्रिंक के लिए आना चाहेंगी ?

देवी मुस्कुराई फिर धीरे से बोली, 'एक बजे तक मैं डूयूटी पर हूँ। उसके बाद आप चाहें तो आ जाऊँगी ।

“ठीक है, सिस्टर ।