लाल टाई

खुशवंत सिंह की संपूर्ण कहानियाँ - Khushwant Singh Short Stories

दीवार में बनी अँगीठी के ऊपर की कॉर्निस पर कुहनियाँ टेके चिशती आराम से खड़ा था।

उसने अपने पैर दोनों तरफ़ फैला रखे थे और नीचे से उठकर आ रही गर्मी से अपनी पीठ सेक रहा था ।

हमें उसकी टाँगों से बनी V के भीतर जलती आग दिखाई दे रही थी।

हमारा यहाँ कोई महत्त्व नहीं था, केबल चिश्ती ही यहाँ सब कुछ था।

वह खूब खा-पी चुका था और मीठी बातें कर रहा था।

हम उसके इर्द-गिर्द घेरा बनाये खड़े थे-कुछ प्रशंसा करते, कुछ मज़ाक उड़ाते और कुछ ईर्ष्या से जलते हुए।

डिनर खत्म हो गया था लेकिन, हम जैसे भारतीयों के अंग्रेज़ियत रँगे लोगों में जैसा रिवाज़ था, लेडीज़ अभी भी डायनिंग रूम में जमा थीं।

लेकिन चिश्ती जहाँ भी जाता, उसे रिवाज़ों को धता बतानी होती थी।

मेज़बान महिला खुद चिश्ती की बाँह पर हाथ टिकाये खड़ी थीं और हँसी से लोट-पोट हो रही थीं।

चिश्ती हमेशा आकर्षण का केन्द्र रहता था। वह हमेशा बोलता रहता था।

वह जब भी यहाँ आता, एक क्षण भी शान्ति नहीं रहती थी और उनकी दूसरी पार्टियों में यह माहौल न होना उन्हें बहुत खलता था ।

जैसे ही ज़रा-सी शान्ति होती, चिश्ती की आवाज़ सुनाई देने लगती, “मैं बताऊँ उस दिन मेरे साथ क्या हुआ” या “आपने मेरा यह एकदम नया मज़ाक सुना ?

मेरा खयाल है यह बहुत मजेदार है यह उनके पति के मुश्किल से बताये मज़ाकों से, जिन्हें वे इस तरह शुरू करते, “आज कोर्ट में एक मज़ेदार मामला पेश आया'-और जो हमेशा एक ही कहानी होती थी-कहीं ज़्यादा मनोरंजक होता था।

मेज़बान महिला ने चारों तरफ़ देखते हुए कहा, आपने चिश्ती की शादी की परिभाषा सुनी है ?

मेरा खयाल है, यह बहुत मज़ेदार है।' हम सब इसे सुन चुके थे और जानते थे कि यह चिश्ती की नहीं है।

लेकिन इस बात का कोई महत्त्व नहीं था।

मेज़बान महिला ने चिश्ती को अपनी दोनों बाँहों में घेर रखा था और उससे ज़िद कर रही थीं कि इसे बताये। चि३ती एहसान-सा करता हुआ मुस्कुराया और कहने लगा, 'हाँ, यह सचमुच मज़ेदार है, बहुत ही मज़ेदार । .अच्छा, देखता हूँ।

हाँ, याद आया। शादी चूइंगगम की तरह है, शुरू में मीठी, अन्त में चिपचिपी।

हा, हा!” चिश्ती अपने मज़ाकों पर भी खुद ही सबसे पहले हँसता था। उसकी हँसी में साथ देने के लिए स्त्रियाँ भी ज़ोर-ज़ोर से हँसना शुरू कर देती थीं। कुछ पुरुष मुस्कुराते-बाक़ी चुप बैठे रहते।

चिश्ती पुरुषों की प्रतिक्रिया पर ध्यान नहीं देता था । ये सब स्त्रियों में उसकी लोकप्रियता से जलते-भुनते रहते थे। उसके ज़्यादातर साथी गंजे, मोटे और सुस्त पड़ गये थे। चिश्ती हमेशा हँसता-खेलता रहता था।

उसने निरन्तर कसरत करते रहकर अपने शरीर को बनाये रखा था।

अब वह चालीस का था, लेकिन जब वह अट्टारह का था, एक औरत ने उसे देखकर कहा था, 'किसी ग्रीक देवता की तरह नज़र आता है।

उसके बाद उसने अपना यह नक्शा बनाये रखने का जैसे प्रण ही कर लिया।

तीस का होने पर उसे यह लड़ाई हारती हुई दिखाई दी : उसका माथा जो पहले जितना होना चाहिये, उतना चौड़ा था, लेकिन अब वह बढ़ता ही चला जा रहा था।

उसके चौड़े सीने के नीचे अब पेट बढ़ता दिखाई देने लगा था। और पहले का सपाट पेट भी फूलने लगा था, जिसे अपनी जगह रखने के लिए चिश्ती पेट की पेटी कसकर बाँधने लगा था।

चेहरा ही चिश्ती की अकेली हेलेनी निशानी नहीं था।

यह उस अंग का भी सवाल था जिसे ग्रीक मूर्तियों में ठक दिया जाता है। इस क्षेत्र में चिश्ती की उपलब्धियाँ रहस्य ही बनी थीं और यह भी ज़ाहिर नहीं था कि पत्ती के नीचे क्‍या और कैसा है।

उसके जादुई सम्बन्धों की कहानियाँ पुरुषों में ईर्ष्या से लपेट कर कही जातीं जिन्हें स्त्रियाँ बड़े ध्यान से सुनती थीं।

जैसे, उसने किस तरह किसी महिला का हाथ डिनर टेबिल के नीचे ही थाम लिया और यहीं से उनका प्रेम-सम्बन्ध शुरू हो गया और उसने किस तरह पैसे वालों की बीवियों, अफ़सरों की बीवियों, क्लर्कों की बीवियों, बूढ़ी औरतों, जवान लड़कियों, कॉलेज और स्कूल की लड़कियों को भी फँंसाया था और उनके साथ ऐश की थी ।

कुछ लोग कहते थे कि ये कहानियाँ पूरी तरह सही नहीं हैं और बढ़ा-चढ़ाकर कही जाती हैं।

लेकिन चिश्ती को पार्टियों में जो देख लेता, वह इन पर विश्वास करने लगता था।

चिश्ती से जब इस बारे में पूछताछ की जाती, तो वह कुछ इस तरह नज़र डालता मानो कह रहा हो, 'और

तुम क्‍या सोचते हो ।' हाँ, इस बात में सच्चाई ज़रूर थी कि और लोग जिन द की कल्पना ही करते हैं, वे सब उसे प्राप्त थीं। इस कारण भी वे उसे पसन्द नहीं करते थे।

महिलाएँ डायनिंग रूम से धीरे-धीरे निकलीं और पुरुष कॉफ़ी पीने बैठ गये। चिश्ती अब भी आग की तरफ़ पीठ करे खड़ा लोगों को देख रहा था। 'मैं आपको उस कहानी के बारे में बताऊँ जो मैंने अपने पिछले टूर में ही अनुभव की है। एकदम अविश्वसनीय। रेलवे स्टेशन पर जब वह आगे की गाड़ी का इन्तज़ार कर रहा था, तब यह औरत उसे मिली थी। यह टाई भी उसने मुझे दी थी !! यह कहकर उसने अब ज़रा सिकुड़ी हुई लाल टाई उठाकर दिखाई । उसके पति की हो सकती है। पता नहीं, उसके सामने कया बहाना बनाया होगा । हा-हा !! हम सब भी ताज्जुब करने लगे।

उस दिन चिश्ती को दिन में एक शहर का दौरा करने को कहा गया था। उसने सवेरे की ट्रेन पकड़ी और एक फर्स्ट क्लास के डिब्बे में जा चढ़ा, जहाँ वह अकेला था।

उसने अपनी अटैची मेज़ पर रख दी और शीशे के सामने खड़े होकर अपने को देखने लगा। अपनी लाल टाई उतारकर कील पर टाँग दी। फिर करीने से काढ़े हुए बालों पर हाथ फेरा । वह जानता था कि देखने में वह सुन्दर है। लेकिन उसके भीतर हिम्मत की कमी क्‍यों है ?

कई बदसूरत आदमी जो हासिल कर चुके हैं, वह उसे आज तक प्राप्त नहीं हुआ। औरतें उसके बारे में बातें करती हैं, लेकिन आज तक वह एक को भी जीत नहीं पाया। कॉलेज के दिनों से ही वह अपने पर्स में कंडोम रखकर निकलता था और सोचता था कि कभी-न-कभी तो इनके उपयोग का अवसर आ ही जायेगा। उसने अपनी भीतरी जेब टटोली। हाँ, उसमें पर्स रखा है।

इसे रखना उसे अच्छा लगता था और वह अपने को मर्द महसूस करता था। चिश्ती सीट पर बैठ गया और एक मैगज़ीन निकालकर पढ़ने लगा। ट्रेन स्टेशन से चली और कई छोटे स्टेशनों पर रुकती, जहाँ गाँवों के लोग धक्का-मुक्की करते उसमें चढ़ने की कोशिश करते, आगे बढ़ने लगी, चिश्ती आराम से अपने डिब्बे में अकेला बैठा उपेक्षा से यह सब तमाशा देखता रहा।

कुछ समय बाद एक जंक्शन स्टेशन पर उसकी ट्रेन एक और ट्रेन की बगल में आकर रुकी, जो दूसरी दिशा में जा रही थी।

उसका अपना डिब्बा दूसरी ट्रेन के एक तीसरी क्लास के डिब्बे के सामने था । ट्रेन में खचाखच भीड़ थी। उसमें बैठे कई मुसाफिर खिड़कियों से मुँह निकालकर उसके डिब्बे में देखने लगे, कि उसकी सीटें कितनी शानदार हैं, बेंत की कुर्सियाँ पड़ी हैं और तीन पंखे चल रहे हैं-और उसमें एक सूटेड-बूटेड साहब आराम से लेटा बाहर देख रहा है।

लग रहा था जैसे वह अपने घर में ही आराम कर रहा हो, जहाँ उसकी टाई एक कील पर टँगी है, दूसरी पर कोट लटका है और मेज़ पर सामान रखा है।

चिश्ती अच्छे परिवार में पला था और उसे इस तरह की ताक-झाँक पसन्द नहीं थी। वह खिड़की का शटर गिराने के लिए उठा। इस क्रिया में उसने बाहर की तरफ़ भी एक नज़र डाली। उसके सामनेवाले डिब्बे से लगा ज़नाना डिब्बा धा, जिसमें भीड़ काफ़ी थी। खिड़की पर एक औरत बैठी थी जो एकटक उसे ही देखे जा रही थी।

चिश्ती ने खिड़की का शटर नीचे गिरा दिया था और वह बन्द हो ही रही थी, लेकिन इसे देखते ही उसने शटर ऊपर उठाकर खिड़की फिर से खोल दी। फिर उसने अपनी बैठने की स्थिति बदली और खिड़की पर इस तरह आ बैठा कि औरतों को ज़्यादा साफ़ देख सके | यह औरत उसे पलक झपके बिना देखे जा रही थी ।

चिश्ती में उत्तेजना भरने लगी । क्या यह उस तरह की...औरत थी ? ज़रूर होनी चाहिये । उसके बाल भी घुमा-घुमाकर काढ़े हुए थे जिनमें चारों तरफ़ रंग-बिरंगी क्लिपें लगी थीं।

आँखों में सुरमा भी नज़र आ रहा था।

ओठों पर लाल लिपस्टिक थी। वह बराबर सुपारी चूसे जा रही थी और यह नज़र! अब कोई शक नहीं रहा। चिश्ती यह सब देखकर परेशान हो उठा।

फिर उसने सिगरेट निकाली और उसे पीने लगी। लेकिन उसका पीने का ढंग दूसरों से एकदम अलग था। वह हाथ की मुट्ठी-सी बनाकर उसमें सिगरेट कसे होंठों में लगाकर खींचकर धुआँ निकालती और फिर मुँह से बाहर छोड़ देती । फिर : उसने दोनों नथुनों से धुआँ छोड़ना शुरू कर दिया । अब तो उसे बिलकुल भी सन्देह नहीं रहा और उसने हिम्मत करके उसकी ओर देखा-इसमें कामना भी थी और डर भी था। अगर वह उसकी अपनी ट्रेन में होती तो कैसा मज़ा आता! यह विचार आते ही उसका खून चेहरे में तेज़ी से दौड़ने लगा। वह उसे देखता बैठा रहा।

सामने खड़ी ट्रेन ने लम्बी सीटी दी और ट्रेन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। जनाना डिब्बा चिश्ती के सामने आने लगा।

चिश्ती का चेहरा गुलाबी हो उठा।

उसे लगा कि उसे कुछ करना चाहिये...कुछ ऐसा जो इस स्थिति के अनुरूप हो। वह औरत अब उसके बिलकुल सामने थी।

चिश्ती ने बड़ी हिम्मत करके और सारा ज़ोर लगाकर उसकी तरफ़ देखा, बायीं आँख बन्द की और वासना की नज़र उसकी ओर फेंकी और फिर अपनी सीट पर आराम से बैठ गया।

उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था और बदन निढाल हो गया था।

तभी सामने के प्लेटफार्म से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं, जिससे चौंककर वह उठने लगा । ट्रेन के ब्रेक चीखकर खड़खड़ाये और कुछ गज़ आग बढ़कः वह रुक गई।

चिश्ती ने ज़नाना डिब्बे की तरफ़ देखा।

वह उसके डिब्बे से कुछ गज़ आग ही रुक गया था। औरत ने उसकी तरफ़ नज़र डाली और फिर वह खिड़की से गायब हो गई।

चिश्ती के मन में अचानक खयाल आया कि कहीं वह उसके डिब्बे में तो नहीं आ रही है।

क्या वह उसे पिटवायेगी ?

हो सकता है वह वैसी औरत न हो...चिश्ती यह सोचकर तेजी से उठा और लेवेटरी में घुसकर दरवाज़ा भीतर से बन्द कर लिया।

कुछ मिनट बाद चिश्ती को अपने डिब्बे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी, फिर लेवेटरी के बहुत पास पैरों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। चिश्ती ने साँस रोक ली और चुप होकर बैठ गया।

उसे लग रहा था कि बहुत समय बीत रहा है। अन्त में गार्ड ने सीटी बजाई । चिश्ती को लोगों के बाहर निकलने और दरवाज़ा बन्द किये जाने की आवाज़ें सुनाई दीं ।एक और सीटी बजी-यह इंजन की धी-और ट्रेन ने चलना शुरू किया।

चिश्ती कमोड की सीट से उठा और लेवेटरी का दरवाज़ा ज़रा-सा खोलकर उसने बाहर झाँका।

डिब्बे में कोई नहीं था।

उसका कोट और अटैची गायब थे।

उसकी टाई अभी तक कील पर लटकी थी, लेकिन उसके निचले छोर से थूक टपक रहा था। जो हो, उसे यह देखकर धीरज बँधा । कोई औरत उसका पर्स, उसमें रखी चीज़ों के साथ, उठा ले गई थी।

"और, चिश्ती ने पैंट की जेब में हाथ डाले-डाले कहा, 'वह मेरे लिए निशानी के तौर पर यह टाई छोड़ गई। अब चलिये, महिलाओं के साथ हो लें ।