पीटर हैनसन अमेरिका का निवासी था।
उसका पिता स्वीडिश था जो अमेरिका में आकर बस गया था और जिसने स्टॉक मार्केट के धन्धे में काफ़ी पैसा कमाया था ।
पीटर को अमेरिकी स्कूलों और कॉलेज की सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त हुई थी और वह अपने पिता के काम में हाथ बँटाने लगा।
लेकिन जल्द ही वह समझ गया कि यह व्यापार उसके लिए नहीं है।
उसके सामने साहस के अनेक क्षितिज खुले हुए थे जिनमें वह अपनी किस्मत आज़माना चाहता था।
वह दूर-दूर तक फैले आकाश में उड़ना और मानवता की सेवा करना चाहता था।
उसने स्टॉक का धन्धा पजाब छोड़ दिया और ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आ गया ।
उसके मिशन ने उसे पंजाब के ग्रामों में सिखों के बीच ईसा का सन्देश फैलाने का काम सौंपा, इस तरह पीटर हैनसन अमृतसर आ पहुँचा।
हैनसन अमेरिकी ढंग से पूरी योजना बनाकर अपने सेवा कार्य में जुट गया। उसने ग्राम्य-प्रदेश का पूरा नक्शा तैयार किया और फ़ैसला कर लिया कि किन गाँवों में वह प्रचार करने जायेगा । उसने एक बड़े रजिस्टर में अकारादि क्रम से ग्रामीण सिखों के नाम लिखे और उनके सामने उनके व्यक्तिगत जीवन के ब्यौरे दर्ज़ किये । उसने एक पुरानी अमेरिकी सेना की मोटरसाइकिल खरीदी और आने के कुछ ही सप्ताह बाद पादरी हैनसन और उसकी फटफटिया सारे ज़िले में नज़र आने लगी।
हैनसन कुछ अलग तरह का मिशनरी था। वह केवल धर्म को फैलाने और बढ़ावा देने का काम ही नहीं करता था। वह सुधार का पक्षधर धा-सामाजिक सुधार, आर्थिक सुधार, शिक्षा में सुधार, नैतिक सुधार । उसका काम करने का ढंग भी भिन्न था। वह उपदेश देने या धर्म-परिवर्तन की
जगह अपने व्यवहार से आदर्श प्रस्तुत कर और व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा धार्मिक कार्य करना चाहता था।
“आप एक दफ़ा उनसे परिचित हो जायें.' वह कहा करता था, 'तो आप उनसे जो चाहें करा सकते हैं।'
हैनसन से मेरा मिलना बदा था। मैं भी मानवता की सेवा करना चाहता था, हालाँकि बातें करने से ज्यादा मैं कुछ नहीं करता था। हैनसन यह भी नहीं जानता था कि मैं धार्मिक व्यक्ति नहीं था और मैंने मार्क्सवाद को अपना लिया था। लेकिन हैनसन को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था, क्योंकि वह खुद भी कुछ हद तक समाजवादी था । एक बार वह एक मीटिंग में आया था जिसे मैं सम्बोधित कर रहा था।
मैं कह रहा था, 'देश क्रान्ति के लिए तैयार है। अब इसे आगे बढ़ाने के लिए अच्छे नेताओं की दरकार है। तार्किक भौतिकवाद और मार्क्सवादी अर्थशास्त्र जैसे बड़े-बड़े शब्दों को हमारे गाँवों के लोग समझ नहीं पाते । हमें व्यक्तिगत मिसाल और जन-सम्पर्क के द्वारा समाजवाद का प्रचार करना होगा । हमें पुलिस के अत्याचार, भ्रष्टाचार और अदालतों में अन्याय के विरोध में खड़ा होना चाहिये। सबसे ज़्यादा ज़रूरत इस बात की है कि हम जनता को जानें। एक दफ़ा आप उनसे परिचित हो जायें, तो हम उनसे जो चाहें करा सकते हैं।'
मीटिंग के बाद हैनसन ने मुझसे हाथ मिलाया और शुरू हुई प्रगति की राह में हमारी साझेदारी ।
मई की गर्मियों में एक दिन सवेरे हमने फ़ैसला किया कि अपने उद्योग की शुरुआत करें। हैनसन ने अपने दौरे वाले कपड़े पहने-सफ़ेद रंग की टोपी, कसी हुई बास्केट, बहुत छोटी निकर और पैरों में चप्पल और मैंने अपनी मोटे खह्दर की समाजवादी पोशाक पहनी और मैं हैनसन की मोटरसाइकिल में पीछे लगी सीट पर सवार, हम अमृतसर से बाहर निकल पड़े।
शहर से पंद्रह मील पूरब में एक बड़ी-सी नहर थी जो सड़क की दाहिनी ओर बहती थी। हमने नहर पार की और पक्की सड़क से मुड़कर एक बैलगाड़ियों की पगडंडी पर चलने लगे। पगडंडी टेढ़ी-मेढ़ी और ऊबड़-खाबड़ थी। गाड़ियों के पहियों ने गहरे गड्ढे कर दिये थे जो ट्राम-लाइनों की तरह जगह-जगह एक-दूसरे को काटते थे। हैनसन उन पर ध्यान दिये बिना गम्भीर निश्चय के साथ बढ़ा जा रहा था। मैं आँख बन्द किये उसकी कमर थामे था। नीचे पैर सँभालने के लिए गाड़ी का ज़रा-सा भी कोई हिस्सा निकला नहीं था और वे भाष छोड़ने वाली पाइपों
पर यूँ ही लटक रहे थे। मैं उससे कुछ कह भी नहीं सकता था। हम बड़े-बड़े काम करने निकले थे और इस प्रकार नीचे गिरने का विचार भी मुझे शोभा नहीं देता था । लेकिन मैं गिर ही पड़ा । हैनसन की नज़रें सामने क्षितिज पर इस प्रकार ध्यानपर्वक टिकी थीं जैसे स्वर्ग की झलक पा लेना चाहती हों, और 40 मील की रफ़्तार से हमारी गाड़ी एक खड्ड के ऊपर से उछल कर ज़मीन पर आ गिरी। मैंने हवा में उड़ान भरी और जब तक मैं नीचे पहुँचा, हैनसन और उसकी मोटरसाइकिल अपने सेवा के उच्छिष्ट से कुछ ही गज़ पहले जाकर रुक गये।
लेकिन मैं एक बहुत धूल-भरे टुकड़े में गिरा था, इसलिए मुझे ज्यादा चोट तो नहीं लगी लेकिन मेरा नक्शा एकदम उलट-पुलट हो गया। मेरी पगड़ी उड़ गई थी और बाल बिखरकर चेहरे पर झूल रहे थे। हैनसन ने मुझे ध्यान से देखा और चिन्ता ज़ाहिर की । लेकिन फिर उसने हँसना शुरू कर दिया।
तुम तो बड़े मज़ेदार लग रहे हो.” वह गरजा! "लेकिन एकदम सही जगह गिरे हो तुम । यहीं से सड़क मुड़ती है। इन खेतों के पास ही तो सूरजपुर है, अरे, उन कीकर के पेड़ों के उस तरफ़ ।' उसने मोटरसाइकिल नहर के किनारे एक पीपल के नीचे लगा दी और हँसता रहा। मैंने अपनी पगड़ी ठीक-ठाक की और उसके साथ शामिल हो गया। उसकी पानी की बोतल खोली, गला तर किया और मुँह साफ़ करने के लिए उस पर पानी छिड़का। इसके बाद मैं पैर फैलाकर पेड़ के नीचे लेट गया और शान्त होने की कोशिश करने लगा।
सूरजपुर कीकर के पेड़ों के बीच से साफ़ नज़र आ रहा था। चारों तरफ़ गेहूँ के खेत फैले थे। मक्का पक गया था और कटाई के लिए तैयार था। सुनहरे खेतों के ऊपर मन्द-मन्द हवा बह रही थी, जैसे झील के ऊपर लहरें चल रही हों। पेड़ों के नीचे गाय-बैल पड़े आराम कर रहे थे। यह गर्मी की शाम के समय पंजाब के गाँवों का सामान्य दृश्य था।
इस शान्ति में क्रान्ति की बात सोचना तो मुझे बिलकुल नहीं भाया। मेरा उत्साह घटने लगा था। मैं सूरजपुर को उसके अपने पिछड़े-बिगड़े हाल पर छोड़ने के लिए तैयार था।
लेकिन हैनसन का जोश कम नहीं हुआ था, मैंने जैसे ही आँखें बन्द करके शान्ति का अनुभव करना शुरू किया, उसने बोलना चालू कर दिया।
“पिछली दफ़ा जब मैं यहाँ आया था, तब यहाँ एक संकट पैदा हो गया था। सिख ईसाइयों को अपने गुरुद्वारों में इसलिए नहीं आने दे रहे थे, क्योंकि वे भंगी थे और मरे हुए जानवरों का चमड़ा निकालते थे ।'
अच्छा! मैंने धीरे से कहा 'फिर क्या हुआ ?
'मैंने ईसाइयों से कहा कि वे सिखों से जाकर कहें कि अगर वे उन्हें गुरुद्वारों में आने देंगे तो वे चमड़े का काम छोड़ देंगे।
तभी गाँव के सबसे बड़े क॒एँ के बगल में एक बैल मर गया और कोई उसे छूने को तैयार नहीं हुआ।
कौवे और चीलें उस पर झपट्टे मारने लगे और चारों तरफ़ गंदगी भी फैलने लगी। मैं मूला सिंह से मिला-यह आदमी मिलने लायक है-और उससे कहा कि सिखों को समझाये उसने सिखों से कहा कि खुद बैल की सफ़ाई कर दें या ईसाइयों को आने दें।
उनकी समझ में बात आ गई । अब ईसाइयों को एक-एक बैल का चमड़ा निकालने के लिए बीस रुपए दिये जाते हैं।
उसे वे तीस-चालीस रुपए में बेच देते हैं और वे गुरुद्वारों में अपनी मर्ज़ी से आते-जाते हैं।
और यह सब मूला सिंह की वजह से हुआ। व्यक्तिगत सम्बन्ध था मेरा उससे।
मैंने हमेशा यह कहा है कि एक दफ़ा इन गाँववालों को जान लीजिए, फिर इनसे जो चाहें करवाइये और मूला सिंह तो बड़ा ही शानदार बुड्डा है। आओ, अब आगे चलते हैं।'
हम फिर चले। इस दफ़ा हैनसन मोटरसाइकिल पर था और मैं उसे जुते हुए खेतों और सूखे नालों के बीच से धकेल रहा था। हैनसन सचमुच यहाँ बहुत लोकप्रिय था।
जो भी उसे देखता, मिलने आता। वह हर आदमी का नाम भी जानता था। वह हिन्दुस्तानी ढंग से सबसे हाथ मिलाता और फिर अपना हाथ सीने पर ले जाता। लेकिन किसी ने मेरी तरफ़ ध्यान नहीं दिया, न मोटरसाइकिल धकेलने में मेरी मदद की पेशकश की।
मैं हाथ मिलाते हैईसन और उसके नीचे चलती मोटरसाइकिल को धकेलता गाँव के बीच जा पहुँचा। एक कुएँ के पास हमने गाड़ी खड़ी कर दी, जहाँ बहुत से बच्चे जमा थे और मूला सिंह के घर की तरफ़ बढ़े, जो पास ही था।
मूला सिंह से मेरी पहली मुलाकात थी, जिसे मुझे समाजवाद का ज्ञान देना था। रात को मुझे गुरुद्वारे में भाषण देना था, जिसका मेरे बाद समर्थन मूला सिंह को करना था। इस बीच हैनसन ईसाइयों से मिलता रहा जो गाँव के बाहर रहते थे।
हैनसन ने अपने साथ चलते लोगों से मूला सिंह के बारे में पूछताछ की लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
हम उस के घर पहुँचे तो उसकी दोनों पत्नियाँ बाहर दीवार की साया में बैठी थीं, एक-दूसरे के सिर में घी की मालिश कर रही थीं।
वे भी मूला सिंह के बारे में चुप रहीं। यह देखकर हैनसन अचानक भीड़ की तरफ़ मुड़ा और उससे इसका कारण पूछा।
लेकिन तभी मूला सिंह बाहर निकल आया। वह छह फीट ऊँचा, तगड़े डील-डौल का आदमी था। उसके बाल जले और कंधों से नीचे तक लटक रहे थे।
उम्र साठ की रही होगी और उसकी आँखों में एक चालाकी-सी खेल रही थी।
उसने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर हैनसन को बाँहों में भर लिया। उसके बालों और दाढ़ी के बीच से हैनसन मेरा नाम उसे बताता नज़र आया। मूला सिंह ने एक हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया और दूसरे से हैनसन को पकड़े रहा । मुझसे हाथ मिलाकर उसने फिर हैनसन को जकड़-सा लिया और गले मिलने लगा। वह शराब में धुत हो रहा था। मुँह से थूक टपककर दाढ़ी पर बह रही थी और हैनसन के सुनहरे-भूरे बालों से होती उसके गालों तक पहुँची । फिर उसने हल्का-सा झटका देकर अपने को मूला सिंह से अलग किया और पीछे हो लिया।
हैनसन की सभ्यता उसे क्रोधित होने की आज्ञा नहीं देती थी फिर एक नकली हँसी हँसा और मूला सिंह के सीने में उँगली गड़ाकर कहा, “बहुत शराब! बहुत शराब! यह कहकर जैसे उसे डाँटा।
मूला सिंह ने दोनों हाथों से अपने कान पकड़े और पीली जीभ निकालते हुए पश्चात्ताप जताया।
अब नहीं पिऊँगा, साहब! यह आखिरी दफ़ा है-अब तौबा करता हूँ। आप मेरे यहाँ आये और मैं नशे में, धुत हूँ। आप इस दफ़ा माफ़ कर दें और आते रहने का वादा करें-अब मैं कभी हाथ नहीं लगाऊँगा !
हैनसन ने माफ़ कर दिया और आते रहने का वादा भी किया। वह कुछ परेशान होकर मूला सिंह के घर से चला। मैं सोचने लगा कि हमारी सुधार करने की योजना का ज़्यादा उपयोग नहीं है। हैनसन रूमाल से सिर और मुँह से बहता धूक साफ़ कर रहा था और सिखों को बुरा-भला कह रहा था।
उसने कहा कि ईसाई इनसे कहीं ज़्यादा अच्छे हैं। वे शराब नहीं पीते, न इनकी तरह लम्बे बाल और दाढ़ियाँ रखते हैं जिनमें से पसीने और बासी घी की बदबू आती रहती है। जब से वह इन लोगों के सम्पर्क में आया, वे साफ़ ईसाई जीवन बिता रहे हैं-लम्बे बालों वाले सिखों के अंधविश्वास उन्होंने छोड़ दिये हैं।
उसने हाथ हिलाकर भीड़ को वहाँ से हटा दिया और हम मिशन स्कूल की तरफ़ चलने लगे। हम ईसाइयों की बस्ती में पहुँचे। अध्यापक यूसुफ़ मसीह ने हमारा स्वागत किया और हैनसन के गले में फूलों की माला डाली । भंगी औरतें और बच्चे आ-आकर उसे सलाम करने लगे।
हैनसन ने बच्चों को थपथपाया और उनकी माताओं से हाथ मिलाये। फिर विजय की मुस्कान फेंकते हुए कहा कि सिखों से कितने ज़्यादा गफ़-सुथरे हैं। उसने मुझे उनकी झोपड़ियों में जाकर खुद यह देखने की जिद की।
पहली झोपडी में लाल जीभवाली और कई हाथ इधर-उधर फैलाये भयंकर काली देवी का काफ़ी बड़ा चित्र था जो दीवार के बीच में लटका था। दूसरी झोंपड़ियों में भी चित्र थे।
सारे हिन्दू देवी-देवता वहाँ मौजूद थे। शेर की खाल ओढ़े शिव जिनके गले में साँप लिपटे थे, चूहे की सवारी करते गणेश, उनकी प्रिया भारी-भरकम जाँघ पर विराजमान, बड़े से कमल पर श्वेत वस्त्र धारण किये सरस्वती । हैनसन ने भी इन्हें देखा।
मैं उसकी तरफ़ देखकर मुस्क॒राया, लेकिन उसने नज़र फेर ली। उसने एक झटके से यूसुफ़ मसीह से हाथ मिलाया और शाम को मिलने का वादा करके वहाँ से चल पड़ा । फिर हम गाँव के क॒ुएँ के पास खड़ी अपनी मोटरसाइकिल के पास पहुँचे।
काफ़ी दूर तक हम चुपचाप चलते रहे । हैनसन कुछ उदास लगा। मैं थक गया था और ऊब गया था। जब हम कुएँ के पास पहुँचे तो हैनसन कहने लगा : “अजीब देश है यह।
कहाँ से शुरू करें, यह पता ही नहीं चलता, शुरू करते हैं तो समझ में नहीं आता कि सही रास्ते पर जा रहे हैं या नहीं।
फिर पीछे मुड़ कर देखते हैं कि कितनी दूर चल लिये, तो पता चलता है कि वहीं खड़े हैं। “रेगिस्तान की नदी” की तरह जो उसी में खो जाती है। इतनी जल्दी सूखती है कि निशान भी नहीं बचता ! मैंने कुछ नहीं कहा।
सूरज डूब गया और अँधेरे ने सूरजपुर को अपने आगोश में लेना शुरू किया। चाँद निकलने लगा और उसकी रेशमी रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी। हैनसन ने फिर बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “ये ईसाई अगर अपने को अंधविश्वासों से मुक्त कर पाते। अगर सिख अपने पौरुष को इस तरह नष्ट न करके किसी उपयोगी कार्य में लगाते, अगर...अगर...अगर... ” लगता था, दुनिया की सारी परेशानियाँ उसके इर्द-गिर्द जमा हो गई हैं और उसे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे क्या न करे। बेचारा बहुत दुःखी हो रहा था।
फिर वह एकदम चुप हो गया । वह सीधा होकर बैठ गया जैसे बिजली चमकने लगी हो। मूला सिंह के अहाते से एक लड़की निकली, मुश्किल से सोलह साल की, उसके सिर पर पानी के दो घड़े रखे थे। वह धीरे-धीरे कुएँ के पास आई जहाँ हम बैठे थे।
वह लड़कों की धारीदार कमीज़ पहने थी। उसके सामने के बटन नहीं लगे थे और गला नीचे पेट तक अंग्रेज़ी के 'वी' की तरह चौपट खुला हुआ था। दोनों तरफ़ उस की छातियों के उभार दिखाई दे रहे थे। हैनसन की आँखें उन पर जाकर टिक गईं। उसका मुँह आश्चर्य से खुला जा रहा था। लड़की ने कुएं से कई डोल पानी खींचा और हम उसे देखते रहे। उसकी उदासी घटने लगी और
सूरजपुर की सड़कें रोमांस की गरमी से भरने लगीं। लड़की सिर पर पानी से भरें हो कि वहाँ से चली गई। वह मूला सिंह के घर के अहाते में घुस कर गायब हो गई।
हैनसन ज़मीन पर लौट आया । 'ओह...ओह...क्या चीज़ थी! की लड़की है यह। यकीन नहीं होता...एकदम रेगिस्तान में फूल की तरह है और ये फूल मीठे भी ज़्यादा होते हैं। उन्हें रेगिस्तान की कमियाँ पूरी करनी होती हैं। मैं इस पर कविता लिख सकता हूँ।'
हम कुएँ पर देर तक बैठे रहे, एक अजीब-सी खुशी में डूबे । हैनसन अपनी भावनाओं को कविता का रूप देने की कोशिश करता रहा। फिर अचानक उँगलियाँ चटकाकर आसमान की ओर देखते हुए बोला, 'आ गया...।
“वह रात्रि के सौंदर्य की तरह चली जा रही है ।