सीमा पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी ।
पढ़नेलिखने में बहुत कमजोर थी ।
बस उस की एक ही विशेषता थी की वह दिखने में सुंदर थी, इसलिए सब उस की सुंदरता की तारीफ करते थे ।
सीमा को इस बात का घमंड हो गया और वह ऐसी लड़कियों से नफरत करने लगी, जो सुंदरता में कुछ कम थी ।
उसे सब से अधिक वंदना से नफरत थी, क्योंकि उस का रंग कुछ काला था ।
वह हमेशा उसे 'काली बिल्ली' कह कर चिढ़ाती थी ।
लेकिन वंदना का स्वभाव इतना अच्छा था कि वह उसे कभी कुछ न कहती ।
वंदना बड़ी भोली भाली लड़की थी ।
पढ़ने लिखने में बड़ी होशियार थी ।
सभी अध्यापिकाएं उसे बहुत प्यार करती थी ।
घर पर भी माँ उस से बहुत खुश थी ।
हर काम में माँ को सहयोग देती ।
सभी काम वह मन लगा का करती थी ।
वह बड़ी बड़ी सफाई पसंद थी इसलिए हमेशा साफसुथरी भी रहती थी ।
सीमा सारे दिन घर से बाहर खेला करती, अर्द्धवार्षिक परीक्षा निकट आ गई, लेकिन उसे तो किसी बात की चिंता नहीं थी ।
एक दिन सीमा सवेरे अपने घर से बाहर निकली । उस के पापा नई गेंद लाए थे, इसलिए वह बहुत खुश थी ।
वह सीधी अपनी एक सहेली दिव्या के घर गई ।
दिव्या उस समय अपने घर की सफाई करने में मदद कर रही थी ।
सीमा को देखते ही वह बोली, आओ सीमा ।
दिव्या, चलो बाहर खेलने के लिए चलते हैं ।
नहीं सीमा, मुझे तो अभी बहुत काम करना है ।
फिर सवेरे-सवेरे पढ़ने का समय होता है ।
मैं शाम को खेलूंगी ।
यह सुन कर सीमा ने मन ही मन कहा, बड़ी आई काम करने वाली और मुंह फुला कर बाहर चली आई ।
इस के बाद वह अपनी दूसरी सहेली रीता के यहां गई और नई गेंद दिखाते हुए बोली, रीता क्या तुम मेरे साथ चलेगी ?
नहीं, मैं तुम्हारे साथ अभी नहीं जा सकती । मुझे अभी पढ़ाई करनी है, घर का काम करना है ।
यह सुनकर वह चुपचाप बिना कुछ कहे गुस्से से बाहर चली गई ।
इस के बाद वह अपनी कई सहेलियों के घर गई, पर सभी पढ़ाई कर रही थी ।
किसी को खेलने की फुरसत नही थी ।
सीमा सोचने लगी, इन सब को क्या हो गया है ?
इन्हें तो बस घर का काम करना और पुस्तकें पढ़ना ही पसंद है ?
फिर कुछ सोच कर सीमा अपनी प्रिय सहेली नीता के घर गई, लेकिन वह भी उस समय पढ़ाई कर रही थी ।
सीमा ने उस की पुस्तक बंद करते हुए कहा, क्या हरदम तोते की तरह पुस्तकें रटती रहती हो ।
चलो, बाहर खेलने चलते हैं ।
सीमा, वार्षिक परीक्षा निकट है ।
मुझे पढ़ाई करनी है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ खेलने नहीं चल सकती ।
तुम भी अपने घर जा कर पढ़ाई करो, वरना इस बार फिर फेल हो जाओगी ।
सीमा उदास मन से लौटने लगी, तभी उसे नीता की आवाज सुनाई दी ।
वह अपने माँ से कह रही थी, देखो न माँ सीमा सवेरे-सवेरे खेलने के लिए आ गई ।
उसे पढ़ाई की बिलकुल चिंता नहीं है ।
मैं अब उस के साथ नहीं रहूंगी । जब देखो, तब वह अपनी सुंदरता की चर्चा करती रहती है ।
माँ मुझे तो वंदना बहुत अच्छी लगती है । वह बहुत मेहनती है ।
पढ़ने लिखने में भी बहुत होशियार है । बस, उस का रंग ही थोड़ा सा काला है ।
यह सीमा तो उस बेचारी को 'काली बिल्ली' कह कर चिढ़ाती रहती है ।
यह सुनकर उस की माँ बोली, नीता सुंदरता रंग से नहीं, गुणों से होती है ।
अच्छे गुण ही वंदना की सुंदरता है ।
सीमा इस के आगे कुछ न सुन सकी । वह चुपचाप अपने घर की ओर जा रही थी, लेकिन तभी रास्ते में केले के छिलके पर उस का पैर पड़ गया ।
वह फिसल गई ।
वंदना अपने घर के बाहर खड़ी थी । उस ने सीमा को गिरते देखा तो तुरंत दोनों हाथ पकड़ कर उसे बड़े प्यार से उठाया ।
यह देख कर सीमा की आँखे भर आई । वह मन ही मन सोच रही थी कि वह वंदना से कितनी नफरत करती है, लेकिन वंदना के मन में उस के लिए कितना प्यार है ।
वह बोली, वंदना तुम सबसे सुंदर हो और मैं 'काली बिल्ली' हूँ ।
मैंने तुम्हें काफी तंग किया है, बहुत चिढ़ाया है, मुझे माफ कर दो ।
अरे, भला सहेली से माफी मांगी जाती है ?
सचमुच, सीमा ने अपनी सुंदरता पर घमंड करना और वंदना को चिढ़ाना छोड़ दिया ।
इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि "सुंदरता रंग से नहीं गुणों से होती है " ।