सिर्फ वंदना ही नहीं, छठी कक्षा की लगभग सभी लड़कियां अर्चना को डब्बू कहती थी ।
जिस दिन यह नई लड़की आई थी, उस दिन शीतम मैम ने उस का परिचय योग्य तथा समझदार लड़की के रूप में दे कर सारी लड़कियों की उत्सुकता को खीझ में बदल दिया था ।
मैम ने मॉनिटर वंदना के साथ वाली सीट पर अर्चना को बैठा दिया ।
वंदना और उस की सहेलियों ने उस योग्य लड़की के नुक्स ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ी और जल्दी ही अर्चना की एक कमजोरी पकड़ ली ।
आधी छुट्टी में खाना खाने के बाद जब वंदना और उस की सहेलियां कंप्यूटर जेम खेलने बैठीं तो उन्होंने अर्चना को एकदम बेकार सिद्ध कर दिया ।
उसे कंप्यूटर गेम खेलने नहीं आते थे ।
अर्चना ने घर्म में अभ्यास करने की सोची, पर घर में कंप्यूटर था ही नहीं ।
उस के छोटे भाई विक्की को तो क्रिकेट के अलावा दूसरे किसी भी खेल से मतलब नहीं था ।
अर्चना ने पड़ोस में कंप्यूटर की दुकान पर गेम सीखने की सोची ।
लेकिन माँ ने पढ़ाई के दिनों में खेल सीखने के लिए मना कर दिया ।
अर्चना सिर्फ परीक्षा के दिनों में मेहनत करने के नियम को नहीं मानती थी ।
कक्षा में ध्यान से सुनने तथा होमवर्क नियमित रूप से करने से ही पढ़ाई व परीक्षा की तैयारी अपने आप हो जाती थी ।
परीक्षा में तो उसे सारे विषय याद नहीं करने होते थे ।
बस, दोहराने भर होते थे ।
कक्षा में पढ़ते समय इधर उधर झांकना या फालतू बातें करना उसे बिलकुल पसंद नहीं था ।
वंदना जब कभी उस से मैम के पढ़ाते समय कुछ फालतू बात पूछती या टीवी के कार्यक्रमों के बारे में कुछ कहती तो अर्चना धीरे से कहती, चुप रहो ना, मैम गुस्सा होंगी ।
वंदना बड़बड़ाती रहती, "कितनी डरपोक है तू, दब्बू कहीं की ।"
खाली पीरियड होने पर अर्चना या तो चुपचाप अपना होमवर्क करती या लाइब्रेरी से कोई किताब ला कर पढ़ती रहती ।
वंदना और उस की सहेलियाँ इतना शोर मचातीं कि कई बार अर्चना को कहना पड़ता, " अरे भई, इतना शोर न करो ।
बराबर में दूसरी कक्षा लगी हुई है, उसकी मैम आ कर डांटेंगी । "
वंदना और उस की सहेलियां उसे 'दब्बू' कह कर खिसियाना कर देतीं ।
शीतल मैम की 'योग्य' उपाधि को गलत साबित करने का वंदना को एक और अवसर मिल गया ।
अर्चना के इस स्कूल में आने से पहले जितना भी पढ़ाई का कोर्स हो चुका था उस के नोट्स उसे उतारने थे ।
किसी की कापियां उसे चाहिए थीं ।
वंदना ने तो साफ इनकार कर दिया ।
दूसरी लड़कियों को भी उस ने कापियां देने के लिए मना कर दिया ।
अर्चना अब समझ गई और हार कर एक दिन वंदना के घर ही कापियां लेने चली गई ।
अब वंदना अपनी मां के सामने कापी देने से इनकार नहीं कर सकी ।
तिमाही परीक्षा में अर्चना अच्छे नंबर नहीं ले सकी ।
स्कूल में ही देर से दाखिल हुई थी ।
उस के सब से रुचिकर विषय हिसाब में ही सब से कम नंबर आए थे ।
परीक्षा के बाद हॉल से बाहर आ कर लड़कियों ने कहा भी था, "अरे अर्चना, हॉल में ही सवालों के जवाब मिला लेने थे । हम से पूछती हम बता देते तुझे ।"
"दब्बू हो न" वंदना पास से गुजरती हुई बोलती गई ।
धीरे-धीरे अर्चना ने पढ़ाई में वंदना के बराबर आ कर, कंप्यूटर गेम खेलने की कमी को पूरा कर लिया तो सभी लड़कियाँ मन ही मन उसे मान गई, पर शरारतों से दूर रहने, अध्यापिकाओं का मजाक उड़ाने में डरने के कारण वे उसे 'दब्बू' कह कर चिढ़ाना नहीं छोड़ सकी थी ।
वार्षिक परीक्षा सिर पर आ गई थी ।
सभी अध्यापिकाएं अपना-अपना कोर्स जल्दी से खत्म करना चाह रही थी ।
चुनावों के कारण कोर्स थोड़े पीछे रह गए थे । सभी लड़कियां अब ध्यान से कक्षा में नोट्स लेती ।
ऐसे समय में वंदना की बुआ की शादी तय हो गयी ।
बुआ उसके पिताजी की इकलौती बहन थी, इसलिए शादी में जाना और वह भी कुछ दिन पहले ही बहुत जरूरी हो गया था ।
शादी की धूमधाम से बंदना लौटी तो उसे एक सप्ताह बाद होने वाली परीक्षा की डेट शीट, कक्षा में रिवीजन और साथ ही दो दिन बाद परीक्षा की तयारी के लिए छुट्टी होने का पता चला तो वह सन्न रह रह गई ।
पिछले दस दिनों की पढ़ाई वह कैसे पूरी करेगी ।
उस ने अपनी तीन चार सहेलियों से नोट्स उतारने के लिए कापियां मांगी, पर सब ने कापी देने से मना कर दिया, क्योंकि सब के सामने एक ही समस्या थी - हम तो दे देंगे वंदना, पर माँ को पता चलेगा कि हम ने परीक्षा के दिनों में अपने नोट्स किसी को दिए हैं तो बहुत डांट पड़ेगी ।
सब से निराश हो कर वंदना अर्चना के घर पहुंची ।
अर्चना अपनी पढ़ाई कर रही थी ।
वंदना से एकदम कुछ कहते नहीं बना ।
अर्चना ने पूछा, " तू ने कितने नोट्स उतार उतार लिए हैं अब तक ? कुछ कापियां बेशक मुझे दे दो, मैं उतार दूंगी । अगर तू पूरा सप्ताह नोट्स उतारने में लगी रही तो पढ़ेगी कब ?"
"पर तेरी माँ तुझ पर नाराज नहीं होंगी ?"
" वाह, इस में गुस्सा होने की क्या बात है ? मैंने कोई पढ़ाई न करने का बहाना थोड़े ही बनाया है ।
फिर जो विषय मैं ने दोहरा लिए हैं वही तो तुझे दे रही हूँ । तुम अगर नोट्स न उतार सकी तो परीक्षा कैसे देगी ? "
कापियां देने के साथ अर्चना ने कई आवश्यक प्रश्नों के बारे में भी उसे समझा दिया ।
वंदना अब परीक्षा खत्म होने तक बहुत व्यस्त रही ।
किसी से भी फालतू बात नहीं करती थी । थोड़ी बहुत पढ़ाई की बातचीत अर्चना से अवश्य करती थी ।
आखिरी परीक्षा के बाद सभी लड़कियां पिकनिक का कार्यक्रम बनाने में जुट गई ।
अर्चना को छोड़ कर सभी चलने की तैयारी कर रही थी ।
तुम भी चलोगी न, अर्चना ।
अर्चना, माँ से पूछ के बताउंगी
तुम भी अर्चना, बस डरती ही रहती हो ।
माँ को बता देना कि हम कल दोपहर पिकनिक पर जा रहे हैं, इस में भला पूछना क्या है ?
"है तो दब्बू ही न," दूसरी बोली
दब्बू अर्चना नहीं है, तुम सब की सब असली दब्बू हो, " वंदना ने जोर से कहा ।
वह अर्चना के पास आ गई थी, दूसरे की सहायता करने के समय जो डरता है वह दब्बू है, न कि वह जो अपनी चिंता किए बिना दूसरे की सहायता करे ।
वंदना की आवाज भावुक हो कर रुंध गई थी ।
अर्चना ने गंभीर होते वातावरण को एकदम हंसी में बदल दिया, एक तुम लोग ही मुझे दब्बू थोड़े कहती हो, मेरी माँ भी कहती हैं ।
पता है कब, जब मैं विक्की को, अपने छोटे भाई को शरारतें करने के बाबजूद कुछ नहीं कह पाती ।
माँ से शिकायत करती हूँ तो वह भी बस यही कहती हैं, क्या है अर्चना, तू छोटे भाई से भी डरती है कैसी दब्बू है तू ।
उस दिन के बाद किसी ने अर्चना को दब्बू नहीं कहा ।