इस बार गर्मी की छुट्टियों में एनी अपनी सहेलियों के साथ खेलने के बजाय सारा दिन पार्क में बैठी छोटे-छोटे पक्षियों को घोंसला बनाते देखती रहती ।
पार्क में तरह-तरह के पक्षी आते थे - गौरैया, कबूतर, कठफोड़वा, लवा और बुलबुल ।
एनी किसी भी पक्षी को देखते ही पहचान जाती थी, क्योंकि उस की मैम ने उसे सभी पक्षियों के सुंदर चित्र दिखाए थे और कहा था कि इन छुट्टियों में तुम सब पक्षियों की आदतें गौर से देखना और गरमी
की छुट्टियों के बाद जब स्कूल खुलेगा तब तुम सब को पक्षियों पर एक लेख लिखने के लिए दिया जाएगा ।
सब से अच्छे लेख पर जो किताब इनाम में दी जाने वाली थी, वह भी बच्चों को दिखाई गई थी ।
मैम ने उम्हें जानवरों और पक्षियों की कहानियों वाली उस किताब के रंगीन चित्र भी दिखाए थे और कहानियां भी पढ़ कर सुनाई थी ।
एनी को वह किताब इतनी पसंद आई थी कि उस ने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि जैसे भी हो वह इस किताब को पाने के लिए मेहनत करेगी और इसलिए एनी अपनी छुट्टियां खेलने के बजाय पार्क में बैठ कर पक्षियों की आदतों को जानने में गुजार रही थी ।
एनी देखती कि पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए कितने धैर्य से छांटछांट कर पुराणी सुतली, घास, पत्तियां और घोंसले को आरामदेह बनाने के लिए पंख आदि जमा करते हैं ।
एनी का जी चाहता, कितना अच्छा होता कि मैं भी इन पक्षियों की कुछ मदद कर सकती ।
अचानक एनी को एक खयाल आया । इन दिनों ज्यादातर पक्षियों ने अपने घोंसले बना लिए थे, फिर भी कुछ पक्षी ऐसे थे जिन के घोंसले अभी तक तैयार नहीं हुए थे ।
कुछ शरारती लड़कों ने पत्थर मार कर इन के घोंसले नष्ट कर दिए थे । एनी ने उन्हें गुस्सा कर रोकना चाहा ।
एनी ने सोचा-क्यों न मैं अपने हाथों से एक घोंसला बना कर बगीचे के किसी पेड़ पर लटका दूं ।
हो सकता है कोई पक्षी वहां रहने आ जाए, आह, कितना अच्छा लगेगा जब पक्षी वहां अंडे देंगे और कुछ दिनों में घोंसला छोटे-छोटे पक्षियों से भर जाएगा ।
पक्षियों की चहचहाहट से मेरे बगीचे में रौनक आ जाएगी, यह सोच कर एनी बहुत खुश हुई ।
अब तो एनी को अपने आप गुस्सा आ रहा था कि इतनी अच्छी बात उसे पहले क्यों नहीं सूझी ? कुछ मिनटों का ही तो काम होगा और बस घोंसला तैयार हो जायेगा । पक्षियों के चोंच से बने घोंसलों के मुकाबले मेरा यह घोंसला ज्यादा सफाई से बना हुआ होगा, एनी ने सोचा ।
अगले दिन एनी की मां यह देख कर बड़ी हैरान हुई कि एनी सारा दिन तिनके, कागज आदि ही बुनती रही ।
कहां तो एनी ने सोचा था कि घोंसला बनाना तो कुछ मिनटों का ही काम है और कहां एनी को सारी शाम घोंसला बनाते- बनाते गुजर गई ।
घोंसला को टिकाने के लिए एनी ने बांस की कुछ तीलियां भी लगाई थी । अब वे तीलियां टिक नहीं रही थी ।
बेचारी एनी ने धागे की पूरी रील लगा दी ।
तब कहीं जा कर घोंसला इधर-उधर से बंध कर तैयार हुआ, पर घोंसला अजीब ऊबड़खाबड़ सा बना था ।
यह तो पक्षियों को बहुत चुभेगा, यह सोच कर एनी मां के पास गई और बोली, मां, यह घोंसला अंदर से कितना सख्त है, इसे जरा नरम बना दो न ।
मां ने एक छोटी कटोरी ली और घोंसले के अंदर उसे गोलमोल घुमा कर काफी हद तक उसे आरामदेह बना दिया । ऊबड़खाबड़ तिनके और कागज बैठ गए थे |
अब एक छोटा सा घोंसला तैयार था जो न गोल कहा जा सकता था, न चौरस और न लंबा ।
चिड़ियाँ चोंच से घोंसला बनाती हैं, पर कितने सलीके और सफाई से बनाती हैं । हाथों से तो कभी ऐसे घोंसला बनाए ही नहीं जा सकते ।
सुबह एनी ने बड़ी शान से वह घोंसला बगीचे के एक पेड़ पर लटका दिया और खुद कुछ दूरी पर खड़ी इंतजार करती रही कि कोई पक्षी आ कर उसे अपना घर बना ले ।
पर जब काफी समय गुजर गया और कोई पक्षी न आया तो एनी बड़ी निराशा हुई । अचानक उस ने देखा लवा पक्षियों के एक जोड़े ने, जो घोंसला के ऊपर मंडरा रहा था, चोंच मारमार कर घोंसला तोड़फोड़ डाला ।
'शैतान, पक्षी ' गुस्से से एनी बड़बड़ाई ।
एनी की आवाज सुनकर उसकी मां वहां आ गई ।
मां, देखो न, उन्हें मेरा घोंसला पसंद नहीं आया, एनी ने सुबकते हुए कहा ।
मां भी वहीं खड़ी हो कर पक्षियों की हरकतें देखने लंगी ।
अचानक मां जोर से हंस पड़ी, देखो, एनी, ये पक्षी पहले घोंसले से तिनके चुनचुन कर एक नया घोंसला तैयार कर रहे हैं । हो सकता है ये लोग और किसी के बनाए घोंसलों में रहना पसंद न करते हों । मां, मैं जो लेख लिखूंगी न, उस में यह बात भी जरूर लिखूंगी, एनी बोली ।
एनी, पक्षियों ने घोंसला चाहे जिस कारण तोड़ा हो, पर वे तुम्हारा बड़ा एहसान मान रहे होंगे कि तुम ने घोंसला बनाने का सारा सामान एक जगह जमा कर रखा है, मां ने कहा ।
मां, तुम ने एक बात पर गौर किया ? एनी ने मां से कहा, यह लवा अपना घोंसला झाड़ियों के अंदर बनाती है ।
हाँ, एनी, अभी तक तो मैं ने यही देखा सुना था कि लवा अपना घोंसला पेड़ पर या घरों के रोशनदानों आदि में बनाती है । आज पहली बार मैं यह तरीका देख रही हूँ ।
एनी सारा दिन बगीचे में बैठी लवा पक्षियों को काम में जुटे देखती रहती । एनी की मौजूदगी का पक्षी भी बुरा नहीं मानते थे । शायद उन्हें पता था कि वह उन की मित्र है ।
जल्दी ही घोंसला छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भर गया । इसी बीच एनी को लवा पक्षी की एक और दिलचस्प आदत का पता चला ।
आमतौर पर पक्षी उड़ते हुए आते हैं और सीधे अपने घोंसले पर ही उतरते हैं, पर लवा कभी ऐसा नहीं करती। वह हमेशा अपने घोंसले से थोड़ी दूरी पर उतरती है और फिर फुदकफुदक कर और थोड़ा इधर-उधर पता चले ।
घूम कर अपने घोंसले में जाती है । शायद वह नहीं चाहती कि किसी को उसी के घोंसले की जगह पता चले ।
छुट्टियों के बाद जब लेख प्रतियोगिता हुई तो एनी को प्रथम पुरस्कार मिला । इनाम वाली किताब हाथ में पकड़े एनी अपनी सहेलियों को बता रही थी, तुम्हें पता है, मैं ने एक नहीं दो इनाम जीते हैं । एक तो यह किताब और दूसरा अपने बगीचे में छोटे-छोटे लवा पक्षियों से भरा घोंसला ।
इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि "कोई प्रतियोगिता जीतने से ज्यादा, दूसरों की मदद कर के खुशी मिलती है । "