एक मूर्ख महिला, नीमा, अपने पति राघव के साथ रहती थी।
नीमा मूर्ख होने के साथ-साथ भुलक्कड़ भी थी।
वह जब भी घर के बाहर जाती थी, घर का दरवाज़ा बंद करना भूल जाती थी।
कभी-कभी तो रात को सोते समय भी वह दरवाज़ा खुला छोड़ देती थी।
लेकिन राघव समझदार था।
इसलिए वह सोने से पहले सब चीज़ों को एक बार देख लेता था, इसलिए उनके घर में अभी तक कोई दुर्घटना नहीं हुई थी।
जब भी वह बाहर जाती थी, राघव उसे याद दिलाने के लिए कहता- दरवाज़ा मत भूलना, नीमा।'
एक दिन नीमा बाज़ार से कुछ सामान खरीदने जा रही थी। तभी राघव ने चिल्लाकर कहा-'दरवाज़ा मत भूलना नीमा।'
नीमा यह बात सुनते-सुनते परेशान हो चुकी थी।
उसने बड़ी देर तक सोचा और एक बढ़िया हल ढूँढ़ निकाला।
वह अंदर से पेचकस लाई और दरवाज़े के कब्जों के पेंच निकालने लगी।
अजीबोग्रीब आवाज़ें सुनकर राघव तुरंत वहाँ आया।
नीमा को दरवाज़ा खोलते हुए देखकर उसे बेहद आश्चर्य हुआ।
'ये क्या कर रही हो ?' उसने पूछा।
“तुम हर बार कहते हो न, दरवाज़ा मत भूलना नीमा। दरवाज़ा मत भूलना, तो मैंने सोचा कि सबसे बढ़िया हल यह होगा कि मैं दरवाज़ा अपने साथ रखूँ। इस तरह मैं दरवाज़ा कभी नहीं भूलूँगी।'
'हे भगवान, केसी मूर्खता को बात कर रही हो ?
इस भारी दरवाज़े को उठाकर ले जाओगी ?
और उस सामान का क्या, जो तुम्हें बाज़ार से लेना है।
उसे कैसे पकडोगी ?' राघव ने चिड्चिड़ाकर पूछा।
नीमा मुस्कुराई और बोली, 'यही तो बात है राघव, जो तुम समझ नहीं पाए।
अरे, सामान मैं नहीं यह दरवाज़ा उठाएगा।'
“वह कैसे ?' राघव ने आश्चर्य से पूछा।
तब नीमा बड़े आत्मविश्वास के साथ बोली, “अरे भाई, सामान तो मैं दरवाज़े के हत्थे पर टाँग दूँगी न!'
“काश, ईश्वर मेरी पत्नी को थोड़ी बुद्धि भी देते। ऐसा कहकर राघव सिर पकड़कर बैठ गया।
और नीमा समझ नहीं पा रही थी कि राघव उसकी इस बढ़िया बात पर इतना नाराज़ क्यों हे ?
अरे... रे, तुम तो समझ गए न!