दीनू एक मज़ाकिया लड़का था।
साथ ही थोड़ा बुद्धू भी।
वह एक छोटे से गाँव में रहता था।
उसके पिता के कुछ खेत थे, जिनमें वे गेहूँ उगाते थे।
एक दिन दीनू की माँ ने उससे कहा, 'हमारे खेतों में जंगली घास बहुत उग आई है। जा बेटा, उसे उखाड़कर साफ कर दे।
माँ ने दीनू को एक खुरपी दे दी।
दीनू खुरपी लेकर खेत में पहुँचा।
वह काफी देर तक घास उखाड़ता रहा।
धूप बहुत तेज्ञ थी। दीनू को प्यास लगने लगी।
थोड़ी दूर पर एक कुआँ था। दीनू ने खुरपी को वहीं छोड़ दिया और पानी पीने चला गया।
जब वह लौटकर आया तो उसने खुरपी उठाई।
लेकिन खुरपी तो बहुत ही गरम हो गई थी।
धूप में पड़ी थी ना इसलिए। दीनू घबरा गया। उसने सोचा कि खुरपी को तेज़ बुखार चढ़ गया है।
दीनू खुरपी को एक कपडे में लपेटकर तुरंत डाक्टर के पास ले गया।
उसने डाक्टर को पूरी कहानी सुनाई और डाक्टर से खुरपी का इलाज करने को कहा।
डाक्टर साहब समझ गए कि दीनू मज़ाक कर रहा है।
उन्होंने दीनू से कहा कि खुरपी को तालाब में एक डुबकी लगवाओ। उसका बुखार उतर जाएगा।
दीनू ने वैसा ही किया। और उसकी खुरपी का बुखार वाकई उतर गया।
अब एक दिन हुआ यों कि उसकी माँ को तेज़ बुखार चढ़ गया।
सबने कहा कि माँ को डाक्टर को दिखा लाओ।
पर दीनू बोला, “मुझे पता है, डाक्टर साहब बुखार का क्या इलाज करेंगे ?
ऐसा कहकर वह माँ को तालाब के पास ले गया, डुबकी लगवाने के लिए।
वो तो अच्छा हुआ कि उसी वक्त डाक्टर साहब वहाँ से होकर कहीं जा रहे थे।
उन्होंने दीनू की बीमार माँ को देखा तो उसके पास पहुँच गए।
दीनू ने कहा, “डाक्टर साहब, मेरी माँ को बुखार है और मैं तो आप वाला ही इलाज कर रहा हूँ।
देखिए न, मेरी खुरपी का बुखार तो डुबकी लगाने से तुरंत उतर गया था।
यही इलाज मैं अपनी माँ का कर रहा हूँ।'
डाक्टर ने दीनू को डॉटकर कहा, “अरे बुद्ध, वो खुरपी थी और ये तेरी माँ हैं, खुरपी टूट जाए तो बाज़ार से दूसरी ख़रीदकर ला सकता है, लेकिन क्या माँ के साथ तू ऐसा कर सकता है ?
दीनू बेचारा क्या कहता। चुपचाप डाँट सुनता रहा। शायद उसका बुद्धपन थोड़ा कम हो गया था।
डाक्टर की डाँट का असर कितने दिन तक रहा, यह तो हम भी नहीं जानते।
बस इतना ही कह सकते हैं कि 'हे भगवान, दीनू को थोड़ी बुद्धि दो!