एक नगर था अँधेरनगरी।
वहाँ के राजा अक्सर उदास रहा करते थे।
उनके दरबार के सभी लोग चाहते थे कि वे खुश रहें, क्योंकि जब वे खुश रहते थे तो उनकी प्रजा भी खुश रहती थी।
तरह-तरह के लोग उनसे मिलने आते थे और ये कोशिश करते थे कि राजा को हँसा सकें।
लेकिन सारी कोशिशें बेकार हो जाती थीं।
एक दिन दरबार में एक मसखरा आया।
उसका नाम था-राजू।
उसने राजा से कुछ इस तरह से बात की कि राजा को हँसी आ ही गई।
बड़ा ही बुद्धिमान था वह।
किसी भी बात को मज़ाक में कह देना उसके लिए बहुत सरल काम था। राजा ने निश्चय किया कि वे राजू को अपने पास रखेंगे।
राजू बड़े ही हँसमुख स्वभाव का व्यक्ति था।
उसे कभी भी किसी ने दुखी नहीं देखा था।
इसीलिए उसे देखकर सभी को बड़ा अच्छा लगता था।
एक दिन राजा अपने दरबार में बेठे हुए थे।
तभी उन्होंने राजू के ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाजें सुनीं।
ऐसा लग रहा था कि जैसे वह चीख-चीखकर रो रहा हो।
राजा तुरंत उठकर भागे। वे बाहर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उनके सैनिक राजू की बुरी तरह पिटाई कर रहे थे।
राजा का गुस्से से बुरा हाल हो गया। वे चिल्लाए, 'छोड दो उसे, तुरंत!
सैनिक घबराकर एक ओर खडे हो गए।
तब राजा ने पूछा, ' क्यों मार रहे हो इसे ?'
“महाराज, यह राजू आपके सिंहासन पर बैठा हुआ था।
यह तो अच्छा हुआ, हमने इसे देख लिया और बाहर ले आए।' सैनिक बोले।
राजा ने कहा, ' राजू पर हमें पूरा भरोसा है।
यदि इसने ऐसा किया भी है तो हमारा अपमान करने के लिए नहीं किया होगा। तुम लोग जाओ।'
सैनिक चले गए। लेकिन राजू फिर भी ज़ोर से रो रहा था।
अब राजा को और भी गुस्सा आ गया। वे बोले, 'राजू, अब क्यों रो रहे हो? तुम सही-सलामत तो हो।'
तब राजू बोला, “महाराज, मैं अपने लिए नहीं आपके लिए रो रहा हूँ।'
“हमारे लिए ?' राजा ने आश्चर्य से पूछा।
“जी महाराज, मैं एक बात सोच-सोचकर बहुत ही दुखी हूँ।
देखिए, महाराज, इन सैनिकों ने मार-मारकर मेरी क्या हालत कर दी है, जबकि मैं तो केवल कुछ पलों के लिए ही आपके सिंहासन पर बैठा था।
और महाराज, आप तो कितने वर्षों से इस सिंहासन पर बैठा करते हैं। आपने कितनी ज़्यादा मार सही होगी। .... अ .....ऊ ..... ऊ.....।
यह बात सुनकर महाराज को भी हँसी आ गई।
उनका सार्री गुस्सा गायब हो गया।