अजय, विजय और संजय तीन दोस्त थे।
तीनों एक बार आगरा घूमने गए।
आगरा में ताजमहल है यह बात तो तुम जानते ही होगे।
ताजमहल बहुत ही सुंदर इमारत है।
संसार के सात आश्चर्यों में से एक।
ये तीनों दोस्त भी ताजमहल देखने गए।
थोडी देर तक वहाँ घूमने-फिरने के बाद वे तीनों ताजमहल के एक ओर लगी घास में जाकर लेट गए।
संजय आँखें बंद करके लेटा हुआ था।
अजय ने सोचा कि संजय सोया हुआ है।
उसने विजय से कहा-'ताजमहल तुझे कैसा लगा ?'
“बहुत अच्छा।' विजय बोला।
“ख़रीदेगा ?' अजय ने विजय के साथ मज़ाक किया।
“मैं ..... मैं कैसे खरीद सकता हूँ, बहुत महँगा होगा न!
विजय घबराकर बोला। बेचारा थोड़ा सीधा-सादा-सा था। उसे समझ में ही नहीं आया कि अजय ससे यूँ ही बुद्धू बना रहा है।
घबरा मत, सस्ते में मिल रहा है। अजय ने कहा।
“पर मेरे पास तो बस दो हज़ार रुपए हैं। इतने में मिलेगा क्या ? खुशी के कारण उसकी आवाज़ तेज्ञ हो गई थी।
“धीरे बोल', अजय ने कहा, 'कहीं अगर संजय ने सुन लिया तो सब गड़बड़ हो जाएगी।'
“अच्छा ठीक है। बोल, दो हज़ार में मिलेगा ?” विजय ने धीरे से पूछा।
“देख, तू मेरा दोस्त है इसलिए सौदा पटा लूँगा। ला दे दो हज़ार रुपए।' अजय धीरे से बोला।
तभी संजय, जो लेटकर उनकी बातें सुन रहा था, उठकर बैठ गया। वह अजय पर चिल्लाते हुए बोला, “कैसा दोस्त है तू, मेश कम-से-कम दस हज़ार का ताजमहल तू सिर्फ दो हज़ार में बिकवा रहा है।
“तेरा ताजमहल ?” अजय और विजय एक साथ बोल पडे।
'हाँ भाई मेरा...... रहने दो तुम दोनों। मुझे नहीं बेचना है अपना ताजमहल।' संजय गुस्से में बोला।
संजय इतने स्वाभाविक ढंग से सब बातें कह रहा था कि अजय चक्कर में पड़ गया। उसे लगने लगा जैसे कि संजय वाकई ताजमहल का मालिक हे।
वह बोला, 'माफ करना भाई, मैं तो बस ऐसे ही मज़ाक कर रहा था। ये लो विजय अपने रुपए।'
विजय समझ नहीं पा रहा था कि आखिर हो क्या रहा हे!
तब संजय ने कहा, “तो मैं कौनसा सच बोल रहा हूँ अजय।
तुमने विजय को बेवकूफ बनाना चाहा और उसके जवाब में मैंने तुम्हीं को चक्कर में डाल दिया। क्यों ठीक कहा न मैंने ?'
अजय बेचारा शर्मिंदा हो गया।
और ताजमहल का क्या हुआ ?
अरे भाई, ताजमहल तो बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था और हमेशा उन्हीं का रहेगा।