बिट्टू के बक्से में बहुत. से खिलोने रहते थे।
बक्से में रहने वाला लट्टू अपने साथ रहने वाली गेंद को बहुत पसंद करता था।
एक दिन उसने गेंद से कहा, 'देखो, में कितना अच्छा नृत्य करता हूँ और तुम दूर-दूर तक उछलती रहती हो।
मैं तुम्हें नृत्व सिखाऊँगा और तुम मुझे आस-पास की जगहों के बारे में बताना।
क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी ?'
यह बात सुनकर गेंद को बड़ा अजीब लगा।
वह बोली, 'मेग और तुम्हारा कोई मेल नहीं है।
में दूर आकाश की ऊँचाई तक उछल सकती हूँ और तुम तो बस एक ही जगह घूमते रहते हो।
मैं अगर दोस्ती' करूँगी तो आकाश में उड़ने वाली चिडियों से।
' ऐसा कहकर गेंद ने दूसरी ओर मुँह कर लिया।
लट्टू बेचारा क्या कहता। वह चुपचाप खड़ा रहा।
एक दिन अचानक बक्से में से गेंद गायब हो गई।
आमतौर पर यदि खेलने के लिए बिट्टू गेंद को बाहर निकालता भी था तों शाम॑ को वह बक्से में वापिस आ जाती थी।
लेकिन ऐसा पहली बार हुआं था कि बाकी संभी खिलौने वापिस आ गए और गेंद नहीं ऑई।
लट्टू को बहुत दुख हुआ।
उसने सोचा कि शायद गेंद दूर आकाश में उड़ने वाली किसी चिडिया के साथ चली गई होगी।
काफी दिन बीत गए। सब लोग धीरे-धीरे गेंद को भूलने लगे।
बिट्टू एक दिन लट्टू को छत पर ले गया।उसने लट्टू को हवा में ऐसे ही घुमाया और लटूटू हवा में उछलां।
बिंटूटू अपने लट्टू को पकड़ नहीं पाया। लटूटू उछलकर बिट्टू के घंर के पीछे झांडियों में जाकर गिर गया।
उसको झाडियों में लट्टू को कोई जानी-पहचानी-सी - चीज़ दिखाई दी।
उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। जानते हो उसने क्या देखा ?
झाड़ियों के एक कोने में उसकी प्यारी गेंद अटकी हुई थी।
लट्टू ने देखा कि गेंद पर कांफी धब्बे पड़ गए थे।
इतने दिनों तक बाहर पड़ी रहने के कारण उसके रंग भी फीके पड़ गए थे।
अपने पुराने साथी को देखकर गेंद खुश हो गई।
लट्टू ने उसकी ओर मुस्कुराकर देखा।
गेंद ने महसूस किया कि उसके फीके रंग और धब्बों का लट्टू पर कोई असर नहीं है।
खुद लट्टू पर भी कुछ खरोंचें , आ गई थीं।
लेकिन लट्टू को देखकर गेंद इतनी खुश थी कि उसे ये खरोंचें दिखाई ही नहीं दे रही थीं।
फिर पता है क्या हुआ ?
गेंद ने लट्टू से कहा, 'क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे ?'
लट्टू ने क्या जवाब दिया होगा, सोचो जरा।