बर्फ के गोले का नाम सुनकर मुँह में पानी आ जाता है न!
चलो तुम्हें बर्फ के गोले की एक कहानी सुनाती हूँ।
एक ग्रीब लड़की सपना अपनी माँ के साथ एक गाँव में रहती थी।
उनके पास ठीक से खाना खाने के लिए पैसे भी नहीं थे।
वे रात-दिन मेहनत करके किसी तरह अपना जीवन बिता रही थीं।
उनके घर के सामने से रोज़ एक बर्फ के गोलेवाला गुज़रता था।
सपना रोज़ उसको देखती थी और सोचती थी कि काश, उसके पास भी पैसे होते तो वह भी बर्फ का गोला खा सकती थी।
जब आस-पास के बच्चे बर्फ का गोला लेकर चूसते थे तो उसके मुँह में भी पानी आ जाता था।
लेकिन सपना कभी भी निराश नहीं होती थी।
उसे विश्वास था कि एक दिन वह भी बर्फ का गोला ज़रूर खाएगी।
बर्फ के गोले वाला सपना को देखा करता था।
एक दिन उसने सपना को अपने पास बुलाया और बोला, 'बेटी तुमको गोला बहुत अच्छा लगता है न!'
'जी हाँ, पर मेरे पास पैसे नहीं हैं। ख़रीदने के लिए।
सपना ने कहा, 'सपना कोई बात नहीं ये लो गोला, इस गोले को इस डिब्बे में रख लो।
' गोलेवाले ने सपना को एक डिब्बा और एक गोला देते हुए कहा।
“लेकिन मैं गोला खाना चाहती हूँ।' सपना बोली।
तब गोलेवाले ने बताया, 'यह एक जादुई डिब्बा हे। में तुम्हें समझाता हँ। ऐसा कहकर उसने गोला उस डिब्बे में रख दिया। फिर बोला, 'शुरू करो।'
सपना ने देखा कि डिब्बा अपने आप बर्फ से भरना शुरू हो गया।
जब डिब्बा भरने वाला था तो गोलेवाले ने कहा, 'रुक जाओ।' और बर्फ बननी बंद हो गई।
तब उसने अंदर से .थोड़ी-सी बर्फ निकाली और एक गोला बनाकर सपना को दिया।
सपना ने गोलेवाले को धन्यवाद दिया।
उसने जादुई डिब्बा उठाया और गोला चूसती हुई अपनी माँ के पास पहुँची।
उसने अपनी माँ को पूरी बात बताई।
उसके बाद जब भी उन दोनों का मन करता था, वे बर्फ बनाती थीं और जी भरकर गोला खाती थीं।
एक बार सपना और उसकी माँ घूमने गए।
डिब्बा उनके साथ ही था।
वे दोनों एक बडे-से मैदान में जाकर बैठ गईं और खेलने लगीं। सपना के साथ उसकी कुछ सहेलियाँ भी थीं।
उसकी माँ ने सोचा कि सबको बर्फ के गोले खिलाऊंगी तो सब बच्चे खुश हो जाएँगे।
इसीलिए उन्होंने डिब्बे से कहा-' शुरू करो'।
इतना कहते ही डिब्बे में बर्फ भरनी शुरू हो गई।
सपना अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी।
खेलते-खेलते वह काफी दूर निकल आई थी।
जब उसकी माँ ने देखा कि सपना वहाँ नहीं है तो उन्हें चिंता हुई। वे सपना को ढूँढ़ने निकल पड़ीं।
सपना और उसकी सहेलियाँ दौड़ते-दौड़ते अपने गाँव तक पहुँच गई थीं।
सपना की माँ भी पीछे-पीछे घर पहुँच गईं।
उन्होंने सपना को समझाया कि इस तरह बिना बताए बहुत दूर तक नहीं जाना चाहिए।
सपना ने उनसे माफी माँगी और फिर उसकी सहेलियाँ अपने-अपने घर चली गई।
इस सारी गड़बड़ में वे लोग बर्फ के डिब्बे को बिल्कुल भूल गए।
उधर डिब्बा बर्फ बनाता जा रहा था। धीरे-धीरे वहाँ चारों ओर बर्फ ही-बर्फ फैलने लगी।
रात हो गई थी, इसीलिए सपना और उसकी माँ सो गए।
आधी रात को अचानक गाँव के सभी लोगों को ठंड लगने लगी।
वे सब हैरान थे कि पूरे गाँव में अचानक ठंड कैसे हो गई है।
उन्होंने अपने आपको ढकने के लिए मोटी-मोटी चादरें लीं और अपने घरों से बाहर निकल आए।
सब गाँव वाले, सपना और उसकी माँ बाहर निकले तो उनको कुछ दूरी पर बर्फ का एक ऊँचा पहाड़ दिखाई दिया।
बर्फ का पहाड़ और उनके गाँव में ?
उनको समझ ही नहीं आ रहा था।
तभी सपना चिल्लाई, 'मेरा बर्फ का डिब्बा!' वह मैदान की ओर दौड़ पड़ी।
वहाँ जाकर सब लोगों ने देखा कि बर्फ का पहाड़ धीरे-धीरे और ऊँचा होता जा रहा था।
यदि बर्फ थोडी और बढ़ जाती तो शायद नीचे गिरने लगती और उनके घर बर्फ के नीचे दब जाते।
सपना का बर्फ का डिब्बा भी बर्फ के अंदर कहीं दब गया था।
सपना ने ज़ोर से चिललाकर कहा, 'रुक जाओ' और अचानक पहाड़ ' ऊँचा होना बंद हो गया।
वह पहाड़ आज भी वहीं खड़ा है।
सपना का गाँव एक खूबसूरत "पहाड़ी गाँव बन गया।
सपना शायद आज भी अपनी माँ के साथ वहाँ रहती हो।
दूर-दूर से पर्यटक वहाँ घूमने आते हैं।
यदि तुम्हें कभी मौका मिले तो वहाँ ज़रूर जाना, सपना से मिलने।