यह उस समय की घटना है, जब ईश्वर ने मनुष्य को बनाया था।
कहते हैं कि जब वे मनुष्य को धरती पर भेज रहे थे तो उन्होंने तरह-तरह कौ चीज़ें उसे दीं, जैसे कि सुनने की और बोलने की शक्ति, देखने की, सूँघने की और महसूस करने की शक्ति।
फिर उसके हृदय में बहुत-सी भावनाएँ दे दीं- प्रेम, लगाव, घृणा, ईर्ष्या वगैरह-वगैरह।
मनुष्य को सोचने-समझने की शक्ति भी दे दी गई।
अंत में ईश्वर ने दो छोटी-छोटी थैलियों में कुछ डाला और उन्हें एक लकड़ी से बाँध दिया।
एक थेली में थीं मनुष्य की अपनी गलतियाँ यह थैली ईश्वर ने लकड़ी के आगे वाले सिर पर बाँध दी।
दूसरी थैली में थीं दूसरे मनुष्यों की गुलतियाँ।
यह थैली ईश्वर ने लकड़ी के पीछे वाले सिरे पर बाँध दी।
ईश्वर जब मनुष्य को यह लकड़ी दे रहे थे तब भूल से मनुष्य ने लकड़ी को घुमाकर अपने कंधे पर रख लिया।
इस तरह दूसरों की गलतियों उसकी आँखों के ठीक सामने आ गईं।
साथ ही उसकी अपनी गलतियाँ पीछे की ओर छिप गईं।
तबसे मनुष्य वह लकडी ऐसे ही लेकर घूम रहा है।
इसीलिए हर मनुष्य को दूसरों की गुलतियाँ तुरंत नज़र आ जाती हैं और अपनी गलतियों को वह जल्दी नहीं देख पाता है।
जो मनुष्य अपने सोचने-समझने की शक्ति का प्रयोग कर लेता है, वही अपनी गलतियाँ समझकर उन्हें सुधार सकता है।
ईश्वर ने हमें कई तरह की शक्तियाँ दी हैं।
साथ ही उनका उपयोग हम कैसे करें यह सोचने के लिए बुद्धि भी दी हेै।
लेकिन क्या हम सभी अपनी बुद्धि का पूरा उपयोग करते हैं ?