सूरजमुखी के बीज

Child Story In Hindi - Bal Kahani

चलो तुम्हें बेचारी, थोडी-थोडी बुद्धू नीमा की एक और कहानी सुनाते हैं।

उसके पति राघव ने घर के खर्चे के बाद कुछ पैसे बचाकर रखे थे।

उन पैसों से उसने कुछ सोने के सिक्‍के ख़रीद लिए थे।

उन सिक्कों को वह नीमा से छिपाकर रखता था।

वह जानता था कि यदि नीमा को उनके बारे में पता चल गया तो वह सबको बता देगी।

एक बार राघव को किसी काम से दूसरे शहर में जाना पड़ा।

जाने से पहले उसने उन सिक्‍कों को एक डिब्बे में रखा और अपने घर में एक गड्ढा खोदकर उसमें दबा दिया।

नीमा ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। उसने राघव से पूछा - 'यहः क्या कर रहे हो, इस डिब्बे में क्‍या है ?'

राघव ने उससे कहा-'ये देखो, ये सूरजमुखी के कुछ बीज हें।

मैंने इन्हें सम्हालकर यहाँ दबा दिया है। तुम इनके बारे में किसी को मत बताना।

राघव चला गया।

उसको पंद्रह दिनों के बाद वापिस आना था।

नीमा ने सोचा कि बीजों को मिट्टी में बोकर देखा जाए।

जब तक राघव आएगा, पौधे बड़े हो जाएँगे। राघव को कितनी खुशी होगी।'

उसने 'सूरजमुखी के बीज' यानी सिक्के निकाले और घर के बाहर क्यारी में दबा दिए।

दबाते समय उसे लगा कि बीज कुछ अजीब हैं। लेकिन उसने सोचा-'ज़रूर ये बहुत ख़ास बीज हैं, तभी राघव इन्हें इतना सम्हालकर रख रहे थे।'

वह नियम से क्यारी में पानी डालती थी।

रोज़ सुबह और शाम को ध्यान से देखती थी कि पौधे निकले या नहीं।

लेकिन वहाँ तो पौधे क्या अंकुर भी नहीं फूटे थे।

यदि सिक्‍कों को बोने से पौधे निकल सकते तो हम सभी पैसों का पेड़ अपने-अपने घर में लगा लेते न!

जब बीज बोए हुए एक सप्ताह बीत गया, तो नीमा को गुस्सा आने लगा।

उसने सोचा-'कैसे बेकार बीज हैं, एक सप्ताह हो गया पानी डालते-डालते।

लेकिन यहाँ तो कुछ हुआ ही नहीं। मैं राघव के ये बीज वापिस ही रख देती हूँ।'

उसने सारे सिक्के मिट्टी में से निकाले और उसी गड्ढे में वापिस दबा दिए, जिसमें वे पहले रखे हुए थे।

धीरे-धीरे एक सप्ताह और निकल गया।

राघव आनेवाला था।

तभी फूलों के बीज बेचने वाला एक व्यक्ति वहाँ आया। उसके पास सभी फूलों के बीज थे।

नीमा ने पूछा-' तुम्हारे पास सूरजमुखी के बीज हैं क्‍या, भैया ?'

'हाँ, हैं। बीजवाला बोला।

'ये देखिए, बहुत बढ़िया बीज हैं।' ऐसा कहकर उसने बीज नीमा को दिखाए।

नीमा ने पूछा-'इनमें से पौधे निकलते हैं क्‍या ?'

'जी हाँ, ज़रूर निकलेंगे, नहीं तो आपके पैसे वापिस करूँगा मैं। बीजवाला विश्वास के साथ बोला।

देखो भेया, मेरे पास कुछ बीज रखे हुए हैं, मैंने उन्हें बोया पानी डाला, खाद डाली।

लेकिन पौधे निकले ही नहीं। ज़रा देखकर बताओ कि ऐसा क्‍यों हुआ ?' नीमा ने कहा।

ऐसा कहकर उसने बीजवाले को अपने सिक्के दिखाए।

सोने के इतने सारे सिक्के देखकर बीजवाले को लालच आ गया।

उसने नीमा से "कहा, “आप अपने बीज इन नए बीजों से बदल क्‍यों नहीं लेतीं ?'

नीमा को बात अच्छी लगी।

उसने कहा, 'ठीक है, लेकिन अगर पौधे नहीं निकले तो तुम्हारे बीज मैं वापिस कर दूँगी।

बोलो मंजूर है ?' “ठीक है।' बीजवाला बोला।

अभी ये बातें चल ही रही थीं कि राघव वहाँ पहुँच गया।

नीमा के हाथ में सिक्‍कों का डिब्बा देखकर उसे आश्चर्य हुआ।

इससे पहले कि वह कुछ कहता, नीमा उसके कान में बोली, “ये देखो, तुम्हारे इन पुराने बेकार बीजों के बदले में ये बढ़िया बीज ले रही हूँ।

तुम अभी कुछ बोलना मत।'

राघव के गुस्से का ठिकाना नहीं था। वह चिल्लाया, “चुप रहो तुम। हमें कुछ नहीं बदलना है।'

बीजवाला समझ गया कि अब यहाँ से भागने में ही भलाई है। वह चुपके से वहाँ से खिसक लिया।

राघव ने डिब्बा नीमा के हाथ से लिया और उसका हाथ पकड॒कर अंदर ले गया।

फिर उसने नीमा को समझाया, 'देखो नीमा, ये बीज नहीं-सिक्‍के हैं, सोने के सिक्के, इन्हें किसी को भी नहीं देना, समझी तुम!

नीमा अभी तक समझ नहीं पा रही थी कि ये सजा जो के बीज रखे-रखे सिक्‍कों में कैसे बदल गए!