सुनहरी ओर उजाला

एक बहुत सुंदर मुर्गी थी।

उसके पंख सुनहरे और लाल रंग के थे।

उसके दोस्त उसे प्यार से 'सुनहरी' कहकर बुलाते थे।

एक दिन सुनहरी आराम से घूम-घूमकर दाना चुग रही थी।

तभी एक लोमडी ने उसे देखा।

इतनी तंदुरुस्त और सुंदर मुर्गी को देखकर उसके मुँह में पानी आ गया।

उसने सोचा कि आज रात के खाने का इंतज़ाम हो गया।

वह छिपकर बैठ गई और मौका लगते ही उसने सुनहरी को पकड़ लिया।

उसने सुनहरी को एक बोरी में डाला और अपने घर की ओर चल पड़ी।

सुनहरी मुर्गी के दोस्त सफेद कबूतर ने लोमड़ी को देख लिया था।

कबूतर के सफेद रंगों के कारण सब उसे उजाला कहकर बुलाते थे।

उजाला अपनी प्यारी दोस्त को छुड़ाना चाहता था। वह तेज़ी से उड़कर लोमड़ी से आगे निकल गया।

थोड़ी दूरी पर बह ज़मीन पर लेट गया और ऐसा बहाना करने लगा जैसे कि उसका एक पंख टूट गया है।

लोमड़ी ने एक सफेद कबूतर को ज़मीन पर पड़ा देखा तो खुश हो गई।

उसने सोचा कि आज तो खाने का मज़ा आ जाएगा। कबूतर और मुर्गी दोनों .. वाह .....

वह उजाला की ओर लपकी।

उजाला ने ऐसा नाटक किया कि जैसे वह उड़ नहीं पा रहा है, सिर्फ उड़ने की कोशिश कर रहा है।

इसी कोशिश में वह कूद-कूदकर थोडा-थोड़ा आगे जा रहा था।

लोमडी ने उसे पकड़ने के लिए अपनी बोरी नीचे रख दी।

उजाला तो चाहता ही यही था।

सुनहरी बोरी से निकलकर चुपके से भाग गई।

जब उजाला ने देखा कि उसकी दोस्त सुरक्षित होकर दूर चली गई है, तब वह भी फुर्र से उड़ गया।

लोमड़ी उसे देखती रह गई।

वह दौड़कर बोरी के पास आई। लेकिन बोरी भी ख़ाली थी।

बहुत गुस्सा आया बेचारी को। लेकिन उस दिन वह समझ गई कि कोई है, जो उससे भी ज़्यादा चतुर है।