एक गड्रिये के पास बहुत सारी भेडें थीं।
वह रोज़ भेडों को चराने के लिए घास के मैदान में ले जाता था।
एक दिन शाम को जब वह वापिस लोट रहा था, तब कुछ जंगली बकरियाँ भेड़ों के साथ मिल गईं।
गड्रिये ने खुश होकर सोचा कि उसकी भेड़ों का झुंड अपने-आप बड़ा हो गया है, इसीलिए उसने बकरियों को भी साथ ले लिया और वापिस आ गया।
उसने भेड़ों और बकरियों को एक साथ बाड़े में बंद कर दिया।
अगले दिन वह सुबह उठा तो बाहर बारिश हो रही थी।
उसने तय किया कि वह भेडों और बकरियों को घर पर ही चारा दे देगा।
उसके पास घास कम थी। उसने अपनी भेडों को थोडी-सी घास खाने को दी और बकरियों को ज़्यादा।
उसने सोचा कि बकरियाँ खुश होकर वहीं रुक जाएँगी। '
जब बारिश रुकी तो उसने बाड़ा खोला।
जैसे ही बाड़े का दरवाज़ा खुला, सारी बकरियाँ निकलकर भागने लगीं।
'कैसी दुष्ट बकरियाँ हैं।' गड़रिये ने सोचा, “मैंने इन्हें अपनी भेडों से ज़्यादा खाने को दिया फिर भी ये जा रही हैं।
तब बकरियों में से एक पलटकर रुकी और बोली, “तुमने हमारे लिए अपनी पुरानी भेडों को कम खाने को दिया।
कल को यदि कुछ और नई भेड्-बकरियाँ तुम्हारे पास आ गईं तो तुम हमारा भी ध्यान नहीं रखोगे।'
यह कहकर बकरी चली गई।
गडरिए नें सोचा कि बकरी ने ठीक ही कहा था।
उस दिन के बाद उसने किसी नए जानवर के लिए अपनी भेड़ों को अनदेखा नहीं किया।