बंदर और घंटा

एक दिन चोर ने गाँव के मंदिर का घंटा चुरा लिया।

घंटा चुराने के बाद वह जंगल की ओर भागा।

माँद में आराम कर रहे बाघ ने घंटे की आवाज़ सुनी तो उसे पसंद आई।

जल्द ही उसने चोर व घंटे को खोज निकाला।

उसने चोर पर हमला किया व उसे मार गिराया। घंटा जमीन पर गिर पड़ा। बाघ अपने शिकार को खाने में मग्न हो गया।

कुछ दिन बाद वहाँ से बंदरों का दल गुजरा।

उन्हें घंटे की टन-टन अच्छी लगी।

सबने उससे खेलने का आनंद लिया। वे सारा दिन की मेहनत के बाद, रात को घंटे से खेल कर अपनी थकान मिटाते।

गाँव वाले जब भी रात को घंटे की आवाज़ सुनते तो डर जाते।

गाँव से चोर की लाश मिलने के बाद अफवाह फैल गई कि जंगल में कोई बुरी आत्मा घूम रही है, जो इंसानों को मारने के बाद खुश होकर घंटा बजाती है।

जल्दी ही सारे गाँव में अफवाह फैल गई और डर के मारे लोग घर छोड़-छोड़ कर भागने लगे।

हालांकि गाँव की एक औरत इन बातों पर विश्वास नहीं करती थी।

वह काफी हिम्मती और बहादुर थी। उसने इस घंटे की - आवाज़ के पीछे दिये कारण को जानने का फैसला कर लिया।

वह गाँव के मुखिया से बोली- "हुजूर! मुझे पक्का यकीन है कि गणेश जी की पूजा से दुष्ट आत्मा पर काबू पाया जा सकता है, पर इसके लिए कुछ पैसों की जरूरत होगी।"

मुखिया तो वैसे ही लोगों के घर छोड़ने की वजह से काफी परेशान था। वह उसे पूजा के लिए पैसे देने को मान गया।

चतुर औरत ने कुछ फल-मेवे खरीद कर गाँव के मंदिर में पूजा की।

पूजा के बाद वह थैले में खाने का सामान लेंकर जंगल की तरफ चल दी।

उसने उसी पहाड़ी पर खाने का सामान रख दिया, जहाँ बंदर खेलते थे। फिर वह झाड़ियों के पीछे छिप गई।

शाम को बंदर वहाँ आए तो उनकी नज़र खाने के सामान पर पड़ी वे घंटा छोड़ कर खाने के सामान पर लपके।

चतुर औरत ने झट से घंटा उठा कर थैले में डाला और मुखिया के घर जा पहुंची जहाँ उसने रात को घंटा बजने का सारा हाल बताया।

मुखिया व गाँव वाले उसकी बहादुरी व चतुराई से बेहद प्रसन्न हुए।