मूर्ख बन्दर की कहानी

किसी नगर में एक राजा रहता था. जिसे पशु पक्षियों से बहुत लगाव था ।

उसने अपने सेवक के रूप में एक बंदर की नियुक्ति भी कर रखी थी ।

वह बंदर राजा का परम विश्वासपात्र भक्त था ।

राजा के निवास स्थान में एवं राजमहल के अंतःपुर में, जहां बहुत सीमित लोगों को जाने की अनुमति थी उस जगह भी यह बंदर बिना किसी रोक टोक जा सकता था ।

जब राजा सो जाते थे तो यह बंदर उन्हें पंखे की हवा किया करता था ।

गर्मी के मौसम में एक बार राजा ऐसे ही सोए हुए थे और बंदर उन पर पंखा झल रहा था।

तभी बंदर ने देखा- कि एक मक्खी राजा के शरीर पर आकर बैठ गई है।

बंदर ने मक्खी को पंखे से भगाया, मक्खी एक जगह से जाकर दूसरी जगह बैठ गई, फिर दूसरी से तीसरी जगह...

इस प्रकार बंदर पंखा झलने के साथ-साथ मक्खी को भगाने का प्रयास करता रहा और मक्खी राजा के शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर जहां पंखे की हवा नहीं पहुंच पाती थी जाकर बैठती रही ।

बार-बार ऐसा ऐसा करने से बंदर को गुस्सा आ गया ।

बंदर ने देखा बगल में राजा कि म्यान लटकी हुई है।

बंदर ने म्यान से तलवार निकाली और जुट गया मक्खी को भगाने में !

इस बीच मक्खी राजा की छाती पर जा बैठी ।

गुस्से में मूर्ख बन्दर ने मक्खी को भगाने के लिए जोर से तलवार भांज दी , मक्खी तो उड़ गई लेकिन तलवार के इस चोट से राजाजी के दो टुकड़े हो गए !

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें अल्प ज्ञानियों से तथा मूर्खों से बहुत गहरी दोस्ती करने से बचना चाहिए ।

इन्हें अपनी निजी ज़िंदगी में बहुत अहम्‌ स्थान देने से बचना चाहिए, क्योकि कई बार अतिसक्रियता की वजह से ये हमें हानि भी पंहुचा सकतें हैं ।

इसलिए कहा गया है मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अच्छा ...!