नर्मदा नदी के तट पर सेमल का एक बहुत बड़ा पेड़ था।
बहुत से चिड़ियाँ उस पेड़ पर रहते थे।
इस पेड़ के पास ही एक नदी बहती थी , जिसका जल पीकर चिड़ियाँ और राह चलते लोग अपना प्यास बुझाते थे या फिर झुलसती धुप की तपिस से बचने की घनी छांव में आराम करते थे।
एक दिन अचानक ही वहाँ बंदरो का एक झुण्ड आ गया।
इससे पहले की वह बंदर वहा से जाते एकाएक बारिश होने लगा।
बारिश से बचने के लिये उस पेड़ पर रहने वाले सारे चिड़ियाँ अपने अपने घोसले में जाकर छुप गयी।
बंदर भी बारिश के कारण उसी पेड़ पर दुबक कर बैठ गये , इस तरह की बारिस में कही जाना तो संभव नही था।
देखते-देखते बंदर ठंड के कारण बुरी तरह ठिठुरने लगे।
जब चिड़ियों के राजा ने उन बंदरो की यह हालत देखी तो।
उन्हें उन पर बड़ी दया आई , किन्तु समर्थ बंदरो को देखकर उसे क्रोध भी आया की भगवान ने इन बंदरो को इतना अच्छा हाथ दीये है फिर भी ये मूर्ख इधर-उधर इठलाते फिरते है और उत्पात करते रहते है।
क्यों नहीं यह अपने लिये घर बना लेते है ।
यही सब सोच कर वह उनसे बोला हे बंदर भाइयों आप लोग चतुर और होशियार है
मेरी समझ में अभी तक यह बात नही आयी की आप अभी तक अपना घर क्यों नही बना सके आपके सामने तो हम कुछ भी नही है, परन्तु फिर भी अपने-अपने घर में बैठे है।
वास्तब में सत्य बहुत ही कडवा होता है, यही हाल उन बंदरो का था।
उन लोगो को सची बात बुरी लगी ,असल में पक्षिराज की बात सही ही था , बंदरो की जात बहुत चालक मानी जाती है , यदि एसे लोग भी अपने लिये कोई घर न बनाएं तो कितना दुख होता है ।
परन्तु बंदर थे की वे इस सत्य को सहन नही कर सके ।
पक्षिराज की इस बात पर बंदरो को क्रोध आ गया।
उनके सरदार ने सोचा , इन पक्षी को इस बात पर बड़ा घमंड है की वे अपने घोसलों में ही रहते है।
इस लिये इन्होने हमारा मजाक उड़ाया है।
कोई बात नही हम तुम्हारे इस घमंड को तोड़ कर ही जायेंगे , तुम लोगो ने अभी बंदर देखे ही कहा हो ?
उसके बाद बंदर सब पक्षियों का घोसला उजाड़ कर फेकने लगे तब वहाँ सब हाहाकार मच गया और पक्षियों का सब बना बनाया घर टूट गया।
तो बच्चों इस कहानी से हमे यही सिख मिलता है की जो मुर्ख है उसे ज्ञान मत दो।