बंदर और लकड़ी का खूंटा

बहुत समय की बात है एक राज्य में एक भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा था।

मंदिर के निर्माण के लिए तरह-तरह के मज़दूर रात दिन आधे-अधूरे बने मंदिर के बाहर काम कर रहे थे।

वहीं पर कुछ लकड़ी के मज़दूर भी अपने काम में लगे हुए थे।

उनके काम करने की जगह पर इधर-उधर बड़े-बड़े लकड़ी के लट्ठे पड़े हुए थे क्योंकि वहां पर लकड़ियों के लट्ठों को चीरने का काम चल रहा था।

सभी काम करने वाले लोग और मज़दूर दिन भर मंदिर के निर्माण का काम किया करते थे।

बस दोपहर को एक-दो घंटे के लिए सभी लोग अपने घर खाना खाने जाते थे।

दोपहर का समय वह जगह बहुत ही शांत रहता था।

हर दिन की तरह एक दिन सभी मजदूर दोपहर को खाना खाने के लिए अपने घर गए।

जाने से पहले मजदूरों ने लकड़ी के लट्ठों के बीच में आधा चीरा लगाया और उसके बीच में एक किला फसा कर चले गए।

ऐसा करने से लकड़ी को चीरने में आसानी होती थी। मजदूरों के जाने के बाद वह जगह सुनसान पड़ जाता था।

तभी वहाँ कहीं से एक बंदर का झुंड पहुँच गया। बंदरों के झुंड में एक बहुत ही शरारती बंदर भी था।

वह किसी की बात भी नहीं सुनता था और हमेशा जरूरत से ज्यादा उछल-कूद मचाता था।

जैसे ही कुछ बंदर वहाँ की चीजों के साथ छेड़खानी करने लगे तभी बंदरों के सरदार ने सभी बंदरों को पेड़ पर वापस आने का आदेश दिया।

सभी बंदर उसी समय पास के पेड़ पर वापस चले गए परंतु वह शरारती बंदर वहीं रुका रहा।

वह बंदर वहीं लकड़ियों के लट्ठों के ऊपर उछल कूद करता रहा।

तभी उस बंदर की नजर उस किला फसाए हुए लकड़ी के लट्ठे पर पड़ी।

उसने पास पड़े आरी को पकड़ा और लकड़ी पर रगड़ने लगा।

लकड़ी पर रगड़ने के कारण किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज सुनाई देने लगी।

कहां जाता है बंदरों की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ होता है; आलसी और निकम्मा।

ऐसी आवाज सुनते ही बंदर को बहुत ही गुस्सा आया और वह लट्ठे के बीच में फंसाए हुए किले की और गौर से देखने लगा।

उसे लगा कि अगर किले को निकाल दिया जाए तो वह आवाज बंद हो सकती है और वह किले को निकालने के काम में लग पड़ा।

बंदर किले को निकालने की पूरी कोशिश करने लगा और किला भी धीरे-धीरे निकलने लगा।

उसी खींचातानी मे लट्ठे के चीरा के बीच में बंदर की पूंछ आ गई।

जैसे ही किला निकला बंदर की पूंछ लट्ठे के चिरा के बीच में फस गई।

बंदर दर्द से चिल्ला उठा।

उसी समय सभी मजदूर भी वापस आ गए।

मज़दूरों को आते देख बंदर ने भागने के लिए जोर लगाया।

जोर लगाने के कारण शरारती बंदर की पूंछ टूट गई और वह जंगल की ओर भाग गया।