सुन्दर वन में ठंडक दस्तक दे रही थी।
सभी जानवर आने वाले कठिन समय के लिए तैयारी करने में लगे हुए थे।
सुगरी चिड़िया भी उनमे से एक थी।
हर साल की तरह ही उसने अपने लिए सुन्दर घोंसला तैयार किया था।
उसने अचानक होने वाली बारिश और ठण्ड से बचने के लिए अपने घोसलें को घास फूस से चरों तरफ से ढक दिया था।
सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक से बिजली कड़कने लगी, और देखते ही देखते घनघोर वर्षा होने लगी।
बेमौशम आई बरसात से ठण्ड भी बढ़ गई। सभी जानवर अपने अपने घरों की तरफ भागने लगे। सुगरी चिड़िया भी तेज़ी दिखाते हुए अपने भोंसले की तरफ वापस आ गई।
अभी कुछ वक्त ही बीता था की एक बंदर खुद को बचाने के लिए पेड़ के नीचे आ पंहुचा।
सुगरी ने उसे देखा और कहा “तुम इतने होशियार बने फिरते हो तो तुमने ठण्ड और बारिश से बचने के लिए घर क्यों नहीं बनाया ?
यह सुनकर बंदर को गुस्सा आ गया। लेकिन वो चुपचाप बैठा रहा और पेड़ की आड़ में खुद को बचाने का प्रयास करता रहा।
थोड़ी देर शांत रहने के बाद सुगरी फिर बोली “तुमने पूरी गर्मी आलस्य के इधर उधर बिता दी ….. अच्छा होता अपने लिए एक घर बना लेते।
यह सुन बंदर ने कहा “तुम अपने से मतलब रखो और मेरी चिंता छोड़ दो। बंदर का गुस्सा देख सुगरी शांत हो गई।
बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और हवाएं भी तेज़ चल रही थी।
बेचारा बंदर ठंड से काँप रहा था और अपने आप को ढंकने की पूरी कोशिश कर रहा था।
पर सुगरी ने तो मानों उसे छड़ने की कसम का रखी थी। वह फिर बोली “काश तुमने थोड़ी अक्ल दिखाई होती तो आज इस हालत...”
सुगरी ने अपनी बात ख़त्म भी नहीं की थी की बंदर बौखलाते हुए बोला “एक दम चुप अपना ये बार बार फुसफुसाना बंद करो, ये ज्ञान की बात बंद करो और पंडित बनने की कोशिश मत करो।” सुगरी चुप हो गई।
अब तक काफी पानी गिर चुका था और बंदर भी भीग चुका था।
ठण्ड के मारे वो काँप रहा था। इतने में सुगरी से रहा नहीं गया और वो फिर बोली “कम से कम अपना घर बनाना सीख लेना।
इतना सुनते ही बन्दर तुरंत पेड़ पर चढ़ने लगा। बोला “भले मैं घर बनाना नहीं जानता लेकिन मुझे तोडना अच्छे से आता है।”
और यह कहते ही उसने सुगरी का घोसला तहस नहस कर दिया। अब सुगरी भी बन्दर की तरह बेघर हो गई थी और बुरी तरह काँप रही थी।