मटकी में बंदर के हाथ

एक जंगल में एक शरारती बंदर रहा करता था।

एक जंगल में एक शरारती बंदर रहा करता था।

वह रोज सड़क के किनारे पहुंच जाता और आते जाते लोगों को काफी परेशान किया करता।

कभी किसी के ऊपर पत्थर दे मारता, तो कभी किसी के खाने-पीने की चीजे ले भागता।

वहां से जो भी गुजरता वह उस बंदर की शरारतों से परेशान हो उठता।

सभी उससे डर कर वहां से निकलते।

एक बार एक बूढ़ी औरत वहां से अपने पोती के लिए कुछ फल और कपड़े लेकर जा रही थी।

उसने बड़े प्यार से अपने हाथों से अपनी पोती के लिए एक प्यारा सा फ्रॉक बनाया था।

वह रास्ते से जैसे ही गुजरी धम्म से बंदर वहां आ पहुंचा और बूढ़ी दादी की पोटली लेकर भाग खड़ा हुआ।

दादी ने उसका बहुत पीछा किया लेकिन वह उसको पकड़ नहीं पाई।

अंत में हारकर वह खाली हाथ अपनी पोती गुंजन के पास जा पहुंची।

बूढ़ी दादी के चहेरे पर लाचारी देख, गुंजन बोली, 'दादी क्या हुआ, तुम इतना हाफ क्यों रही हो और इतना उदास क्यों हो ?'

इस पर दादी ने उसे रास्ते का सारा किस्सा सुना दिया।

गुंजन थी तो कुल 13 साल की, लेकिन उसका दिमाग तो किसी बड़े इंसान से भी ज्यादा तेज था।

उसने दादी को ढांढस बधांया और बोली, 'दादी, तुम चिंता मत करो, उस बंदर को मैं सबक सिखा कर रहूंगी।'

उसने दादी के कान में कुछ फुसफुसाया और दादी को फिर से कल आने को कहां। दादी भी मुस्कुराती हुई घर लौट गई।

अगले दिन दादी ने एक मटकी में कुछ भरा और उसे लेकर चल दी।

जैसे ही उस रास्ते में पहुंची, बंदर मियां झट से वहां आ पहुंचे और बूढ़ी के हाथ से मटकी उड़ा ले गए।

मटकी लेकर वह जंगल में काफी अंदर चला गया।

लेकिन बंदर ने जैसे ही मटकी में कुछ खाने के लिए हाथ डाले, तो उसके हाथ अंदर ही चिपक कर रह गए।

उसके लाख कोशिश करने पर भी वह अपने हाथ बाहर नहीं निकाल पाया।

अब बंदर की जैसे शामत आ गई। वह इधर-उधर भागता रहा, लेकिन मटकी से हाथ नहीं निकले।

फिर अगले दिन गुंजन दादी के साथ उसी रास्ते की तरफ से गुजरी, तो उसने देखा बंदर के दोनों हाथ अभी भी मटकी से चिपके हुए हैं और वह मुंह लटकाए इस तरह से बैठा है, जैसे किसी से मदद मांग रहा हो।

गुंजन को उस पर दया आ गई।

वह चुपके से उसके पास पहुंची और उस मटकी में जोर से पत्थर मार कर उसे तोड़ दिया।

इस तरह बंदर को मटकी से निजात मिल गई।

उसके बाद उसने बंदर को खाने के लिए दो केले दिए और वह यह कहकर वहां से चली गई कि, 'देखा बंदर मियां, तुम हमेशा सबको परेशान करते थे, आज तुम कैसे परेशान हुए ?'

उसके बाद वह शरारती बंदर एकदम शरीफ बन गया।

वह आने जाने वाले किसी को परेशान नहीं करता और अगर उसे कोई प्यार से कुछ खिलाता, तो चुपचाप खा लेता।

वह रोज सड़क के किनारे पहुंच जाता और आते जाते लोगों को काफी परेशान किया करता।

कभी किसी के ऊपर पत्थर दे मारता, तो कभी किसी के खाने-पीने की चीजे ले भागता।

वहां से जो भी गुजरता वह उस बंदर की शरारतों से परेशान हो उठता।

सभी उससे डर कर वहां से निकलते।

एक बार एक बूढ़ी औरत वहां से अपने पोती के लिए कुछ फल और कपड़े लेकर जा रही थी।

उसने बड़े प्यार से अपने हाथों से अपनी पोती के लिए एक प्यारा सा फ्रॉक बनाया था।

वह रास्ते से जैसे ही गुजरी धम्म से बंदर वहां आ पहुंचा और बूढ़ी दादी की पोटली लेकर भाग खड़ा हुआ।

दादी ने उसका बहुत पीछा किया लेकिन वह उसको पकड़ नहीं पाई।

अंत में हारकर वह खाली हाथ अपनी पोती गुंजन के पास जा पहुंची।

बूढ़ी दादी के चहेरे पर लाचारी देख, गुंजन बोली, 'दादी क्या हुआ, तुम इतना हाफ क्यों रही हो और इतना उदास क्यों हो ?'

इस पर दादी ने उसे रास्ते का सारा किस्सा सुना दिया।

गुंजन थी तो कुल 13 साल की, लेकिन उसका दिमाग तो किसी बड़े इंसान से भी ज्यादा तेज था।

उसने दादी को ढांढस बधांया और बोली, 'दादी, तुम चिंता मत करो, उस बंदर को मैं सबक सिखा कर रहूंगी।'

उसने दादी के कान में कुछ फुसफुसाया और दादी को फिर से कल आने को कहां। दादी भी मुस्कुराती हुई घर लौट गई।

अगले दिन दादी ने एक मटकी में कुछ भरा और उसे लेकर चल दी।

जैसे ही उस रास्ते में पहुंची, बंदर मियां झट से वहां आ पहुंचे और बूढ़ी के हाथ से मटकी उड़ा ले गए।

मटकी लेकर वह जंगल में काफी अंदर चला गया।

लेकिन बंदर ने जैसे ही मटकी में कुछ खाने के लिए हाथ डाले, तो उसके हाथ अंदर ही चिपक कर रह गए।

उसके लाख कोशिश करने पर भी वह अपने हाथ बाहर नहीं निकाल पाया।

अब बंदर की जैसे शामत आ गई। वह इधर-उधर भागता रहा, लेकिन मटकी से हाथ नहीं निकले।

फिर अगले दिन गुंजन दादी के साथ उसी रास्ते की तरफ से गुजरी, तो उसने देखा बंदर के दोनों हाथ अभी भी मटकी से चिपके हुए हैं और वह मुंह लटकाए इस तरह से बैठा है, जैसे किसी से मदद मांग रहा हो।

गुंजन को उस पर दया आ गई।

वह चुपके से उसके पास पहुंची और उस मटकी में जोर से पत्थर मार कर उसे तोड़ दिया।

इस तरह बंदर को मटकी से निजात मिल गई।

उसके बाद उसने बंदर को खाने के लिए दो केले दिए और वह यह कहकर वहां से चली गई कि, 'देखा बंदर मियां, तुम हमेशा सबको परेशान करते थे, आज तुम कैसे परेशान हुए ?'

उसके बाद वह शरारती बंदर एकदम शरीफ बन गया।

वह आने जाने वाले किसी को परेशान नहीं करता और अगर उसे कोई प्यार से कुछ खिलाता, तो चुपचाप खा लेता।