एक कौआ आसमान में ऊँचाई पर उड़ता हुआ जा रहा था।
गर्मी का मौसम था और तेज धूप निकली हुई थी।
कौए को प्यास लगने लगी। उसने दूर तक देखा।
लेकिन उसे कोई तालाब या नदी नजर नहीं आई।
उड़ते-उड़ते थोड़ा आगे पहुँचा तो उसे एक गाँव दिखाई दिया।
उसने सोचा कि गाँव में उसे कहीं-न-कहीं से पानी जरूर मिल जाएगा। वह गाँव की ओर उड़ने लगा।
गाँव के एक खेत में पानी का एक घड़ा रखा हुआ था। वहाँ आसपास कोई भी नहीं था।
वह कौआ घडे के पास पहुँचा और अपनी चोंच घडे के अंदर डाल दी।
लेकिन यह क्या ?
पानी तो चोंच तक पहुँचा ही नहीं।
उसने घड़े में झाँककर देखा। घड़े की तली में थोडा-सा पानी था। अब वह पानी पीने का उपाय सोचने लगा।
तभी उसने देखा कि घड़े के आस-पास बहुत से छोटे-छोटे कंकड्-पत्थर पड़े हैं।
बस, उसने अपनी चोंच से एक-एक कंकड उठाकर घड़े में डालना शुरू कर दिया।
जैसे-जेसे कंकड़ पानी में गिरते थे, पानी ऊपर आता जाता था। कौआ बहुत प्यासा था, गर्मी से परेशान भी था।
लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और एक-एक करके काफी सारे कंकड घडे में डाल दिए।
जब पानी घड़े के बीच तक ऊपर उठ गया तब उसने चोंच घडे में डालकर देखी। पानी बस थोड़ा ही नीचे था।
वह उड़ा और एक बड़ा-सा पत्थर अपने पंजे में उठाकर लाया।
जैसे ही उसने घडे में वह पत्थर डाला, पानी काफी ऊपर उठ गया। कौए ने जीभर कर पानी पिया।
इतनी मेहनत के बाद उसे वह पानी और भी ज्यादा मीठा लग रहा था।