बाबा का दस्ताना

एक बूढे बाबा एक जंगल से होकर कहीं जा रहे थे।

उनके साथ उनका कुत्ता भी था।

रास्ते में गलती से उनका दस्ताना गिर गया। उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गए।

एक चूहे ने दस्ताने को देखा।

बाहर बहुत ठंड पड़ रही थी। चूहा दस्ताने के अंदर घुस गया।

वहाँ खूब जगह थी। वह आराम से लेट गया और सोचने लगा कि क्‍यों न इसे अपना नया घर बना लिया जाए।

वह जाकर अपने बिल से अपना सब सामन ले आया और आराम से रहने लगा।

फिर एक मेढक ने उस दस्ताने को देखा। उसने आवाज दी, “कौन है इस दस्ताने के अंदर ?'

मैं हूँ चीं-चीं चूहा। तुम कौन हो ?' चूहा अंदर से बोला।

'मैं हूँ टर-टर मेढक। कया में भी अंदर आ सकता हूँ? क्या मैं तुम्हारे साथ रह सकता ह ?'

'हाँ-हाँ, क्यों नहीं, आ जाओ।' चूहा बोला और बे दोनों साथ-साथ रहने लगे।

तब एक खरगोश वहाँ से गुजत और उसकी नजर भी दस्ताने पर पडी। ठंड के मारे उसका बुरा हाल था।

उसने आवाज दी, 'कौन हे, अंदर ?' अंदर से आवाज आई, 'हम हैं, चीं-चीं चूहा और टर-टर मेढक। तुम कौन हो ?'

'मैं हूँ बडे-बडे कानों वाला कूद-फाँद खरगोश। बाहर बहुत ठंड है, कया में भी अंदर आ जाऊँ ?' खरगोश बोला।

'हॉ-हाँ, क्‍यों नहीं, आ जाओ। हम तीनों दोस्तों की तरह साथ-साथ रहेंगे। चूहा और मेढक बोले। और इस तरह खरगोश भी दस्ताने के अंदर रहने लगा।

फिर एक लोमडी ने उस दस्ताने को देखा। बाहर बर्फ पडने लगी थी। उसने दस्ताने के अंदर झाँका और पूछा, 'कोई है क्‍या अंदर ?'

अंदर से आवाज आई, 'हम हैं भाई, चीं-चीं चूहा, टर-टर मेढक और कूद-फाँद खरगोश। तुम कौन हो ?'

'अरे मुझे नहीं पहचाना ? मैं हूँ, सूम-बूझ लोमडी। कया मैं भी अंदर आ सकती हूँ ?

'आ जाओ, आ जाओ।' चूहा, मेढक और खरगोश बोले और इस तरह वे चारों साथ-साथ उस दस्ताने में रहने लगे।

एक भालू वहाँ से होकर जा रहा था। उसने भी उस दस्ताने को देखा। उसने भी वही प्रश्न पूछा, 'कौन है अंदर ?'

और अंदर से एक बार फिर आवाज आई, 'हम हैं चीं-चीं चूहा, टर-टर मेढक, कूद-फाँद खरगोश और सूझ-बूझ लोमडी। तुम कौन हो भाई ?

'मैं हूँ बड़े-बड़े बालों वाला भूरा-भूरा भालू। कया मैं भी अंदर आ जाऊ ?' भालू बोला।

अंदर से आवाज आई, ' भालू भाई, दस्ताने की चारों उँगलियों में हम चारों लोग रहते हैं।

केवल छोटा अँगूठा बाकी है। क्‍या तुम उसमें रह सकोगे ?' 'हाँ, बाहर ठंड बहुत है।

मैं थोड़ी-सी जगह में ही रह लँगा।' भालू बोला।

'तो आ जाओ।' ,

और भालू धीरे से अंदर चला गया। मजे की बात यह थी कि जैसे-जैसे जानवर आते थे, दस्ताना अपने आप बडा होता जाता था।

तो अब चीं-चीं चूहा, टर-टर मेढक, कूद-फाँद खरगोश, सूझ-बूझ लोमडी और भूरा-भूरा भालू, ये पाँचों एक साथ उस दस्ताने के घर में रहने लगे।

इधर बूढ़े बाबा को ध्यान आया कि उनका दस्ताना कहीं गिर गया है।

वे उसे ढूँढ़ने वापिस चल पडे। उनका कुत्ता दौड़ता हुआ उनसे पहले ही वहाँ पहुँच गया, जहाँ वह दस्ताना गिरा था।

कुत्ते ने देखा कि दस्ताना काफी बड़ा हो गया था और अंदर से कुछ आवाजें भी आ रही थीं।

वह भौंकने लगा-भौं-भौं-भों।

सभी जानवर डर के मारे बाहर आ गए। तभी बूढ़े बाबा भी वहाँ पहुँच गए।

उन्होंने देखा कि दस्ताने के अंदर इन जानवरों ने अपना छोटा-सा सुंदर घर बना लिया है।

उन्होंने अपने कुत्ते को भौंकने से मना किया और उन जानवरों से बोले, ' प्यारे दोस्तो, आपने मेरे इस दस्ताने में अपनी छोटी-सी दुनिया बसा ली है, यह बहुत अच्छी बात है।

मुझे इस दस्ताने की अब जरूरत नहीं है। पहले यह दस्ताना केवल मेरे ही काम आता था। लेकिन अब आप पाँच इसमें रहते हैं।

यह तो बहुत खुशी की बात है। आप आराम से यहाँ रहें।'

ये सुनकर पाँचों जानवर खुशी से उछल पडे।

और फिर चीं-चीं चूहा, टर-टर मेढक, कूद-फाँद खरगोश, सूझ-बूझ लोमडी और भूरा-भूरा भालू दोस्तों की तरह उस दस्ताने के घर में रहने लगे।