मैं हूँ सबसे बड़ा

नाना नानी की कहानियाँ

एक तालाब में बहुत सारे मेढक रहते थे।

उनमें से एक था टपकू।

उसका नाम टपकू कुछ ऐसे पड़ा कि जहाँ भी दो मेढक आपस में बातें कर रहे होते थे, वह उनके बीच में अचानक टपक पड़ता था।

.....'

चाहे वह उन मेढकों को जानता हो या नहीं, बीच में बोलता जरूर था।

दूसरे लोग जो बात कर रहे होते, वह उससे संबंधित हो या नहीं, फिर भी वह अपनी तारीफ जरूर करता था।

“मैं सबसे बड़ा मेढक हूँ इस तालाब का।'

'मैं सबसे लंबी छलाँग लगा सकता हूँ।'

“मैं ही तो हूँ वह मेढक, जो सबसे तेज आवाज में टर्रा सकता

'मैं ये कर सकता हूँ ....'

'में वो कर सकता हूँ .....'

'मैं ऐसा हूँ ....'

उसकी ये सब बातें सुनकर बाकी के सभी मेढक बहुत परेशान रहते थे।

वे हमेशा उस समय का इंतजार करते थे, जब वे टपकू को समझा सकें कि सही क्‍या है और गलत क्‍या है ?

आखिर एक बार उन्हें मौका मिल ही गया।

एक दिन कोई चरवाहा अपनी गायों को चराने के लिए तालाब के पास के मैदान में लेकर आया। उनमें से एक गाय को प्यास लगी।

वह पानी पीने के लिए तालाब तक आ गई।

तालाब के मेढकों की दुनिया बस वह छोटा-सा तालाब ही था।

उन्होंने आज तक इतना बड़ा जानवर देखा ही नहीं था। सब मेढक आश्चर्य से गाय को देखने लगे।

गाय उनको किसी दैत्य जैसी लग रही थी।

वे घबरा भी रहे थे कि कहीं ये देत्य जैसा जानकर उन्हें पकडेगा तो नहीं।

तब उन्होंने टपक्‌ को बुलाया और बोले, “ये देख टपकू, तू कहता है न कि तू सबसे बड़ा है।

लेकिन देख, यह जानवर तुझसे कहीं ज्यादा बड़ा है। यदि तू सचमुच ताकतवर और समझदार है तो इसकी बराबरी कर। इसे यहाँ से भगा दे।'

पहले तो टपकू भी गाय को देखकर थोड़ा डरा। लेकिन फिर उसके झूठे घमंड ने उसके डर को दुस्साहस में बदल दिया।

वह जोर से बोला, 'में भी उसके बराबर बड़ा हो सकता हँ। ये देखो। '

और उसने अपने अंदर साँस खींचकर हवा भरी शुरू कर दी।

वह वाकई थोड़ा फूलने लगा था और बड़ा लग रहा था, लेकिन गाय के सामने तो अब भी वह बहुत अधिक छोटा था।

' और देखो।' कहकर वह अपने अंदर और हवा भरने लगा। सभी मेढक उसे रोकने लगे। लेकिन वह नहीं माना।

तभी चरवाहे ने तालाब के किनारे पानी पी रही गाय को आवाज लगाईं। गाय तुरंत वापिस चली गई। अब टपकू बराबरी करे तो किससे करे ?

“आज तो वह जानवर चला गया, किसी ओर दिन सही।' उसने जोर से कहा।

लेकिन तब तक वह अपने अंदर इतनी हवा भर चुका था कि उसका शरीर बस फटने ही वाला था।

उसकी खाल खिंच रही थी और दर्द भी हो रहा था।

उसने अंदर भरी हवा को बाहर निकालना शुरू किया लेकिन इसमें काफी मुश्किल आ रही थी।

काफी तकलीफ के बाद हवा तो निकल गई लेकिन उसका शरीर एकदम थुलथुल और खाल ढीली- हो गई थी।

उसे अपने जिस रूप पर इतना घमंड था, वह उससे छिन गया था और यह सब उसकी अपनी गलती से हुआ था।