मैं अब अकेला नहीं

एक गाँव में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था।

उनका एक छोटा-सा बेटा था।

उसका नाम था चंदन। चंदन के बहुत से दोस्त थे। वे रोज उसके साथ खेलने आते थे।

लेकिन जब वे अपने घर वापिस जाते थे, तब चंदन को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था।

वह एकदम अकेला हो जाता था। एक दिन वह अपने माता-पिता से बोला,

“सबके पास एक भाई या एक बहन है, मैं ही अकेला हूँ।

मेरे पास भाई-बहन क्‍यों नहीं हें ?'

और फिर -कुछ समय बाद उसके घर में भी उसकी एक छोटी-सी बहन आई। वह बेहद खुश था।

चंदन उसके साथ खेलना चाहता था। लेकिन वह अभी बहुत छोटी थी। अभी तो उसे बैठना भी नहीं आता था।

'मेरी बहन इतनी छोटी क्‍यों है?' उसने माँ से पूछा।

'तू जल्दी से बडी क्‍यों नहीं हो जाती ?

सब अपने बहन-भाई के साथ खेलते हैं, में भी तेरे साथ खेलना चाहता हूँ।' वह अक्सर छोटी गुडिया से कहता था।

छोटी बहन आ गई, फिर भी वह अकेला और उदास रहता था। माँ तो अब गुड़िया के साथ और भी ज्यादा व्यस्त हो गई थीं।

उसके पिता के एक मित्र थे, वीर चाचा।

उनके पास बहुत सारी बकरियाँ और भेडें थीं।

एक भेड़ ने एक छोटे-से मेमने को जन्म दिया। उसके बाद वह बहुत बीमार हुई और मर गई।

मेमना अभी बहुत छोटा था। अपना ध्यान खुद नहीं रख सकता था।

उसे किसी की जरूरत थी, जो उसका ध्यान रख सके। चंदन के पिता को चंदन का खयाल आया।

“चंदन “जानवरों से बहुत प्यार करता है। वह इस मेमने की. देखभाल करके बहुत खुश होगा।'

वे बोले और छोटे मेमने को लेकर चंदन के पास आए। चंदन तो खुशी से उछल ही पड़ा।

“अरे वाह, में जरूर इसका ध्यान रखूँगा। कितना प्यारा है यह! एकदम सफेद।

आज से में उसे उजाला कहकर बुलाया करूँगा। इसे दूध पिलाऊँगा और ध्यान से टोकरी में सुला दिया करूँगा।' वह खुश होकर बोला।

उसने जल्दी ही उजाला का ध्यान रखना सीख लिया।

उजाला भी चंदन को बहुत प्यार करता था।

दोनों सभी जगह साथ-साथ जाते थे। उजाला एकबार चंदन क॑ पीछे-पीछे उसके स्कूल पहुँच गया। सब बच्चे उसे देखकर बड़े खुश हो गए।

उसके साथ उछले-कूदे। लेकिन टीचर गुस्सा हो गईं।

उन्होंने चंदन से कहा, 'फिर कभी उजाला को लेकर स्कूल मत आना, समझे! '

उजाला अब बड़ा हो गया था। उसे बाहर खेलना ज्यादा अच्छा लगता था।

एक दिन सुबह जब चंदन सोकर उठा तो देखा कि उजाला गायब था। उसने जोर से आवाज लगाई-उजाला ... उजाला।

कहाँ हो तुम ? आओ दूध पी लो।'

लेकिन उजाला नहीं आया। चंदन उजाला को ढूँढने खेत की ओर गया। लेकिन उजाला वहाँ नहीं था।

उसने उजाला को सब जगह ढूँढा- छत पर, बागीचे में, खेतों में, जंगल में, सब जगह, पर उजाला नहीं मिला। वह रुआँसा हो गया।

घर वापिस आकर माँ से बोला- “माँ उजाला खो गया।'

माँ कुछ कहती, इससे पहले ही उसके पिता के मित्र वीर चाचा आए।

वे चंदन से बोले, “चंदन उजाला आज सुबह हमारे घर आ गया है।

वह अब अपने दूसरे बहन-भाइयों के साथ रहना चाहता है। मैंने बहुत कोशिश की उसे लाने की। लेकिन वह नहीं आना चाहता।'

ये सब बातें सुनकर चंदन बहुत दुखी हुआ। उसने कहा, 'में अब किसके साथ खेलूँगा ?'

तभी उसे किसी ने आवाज दी, 'भैया, भैया!' यह तो उसकी छोटी बहन गुडिया की आवाज थी।

वह दौड़कर आई और बोली, ' भैया, मेले छाथ खेलो न।' तब चंदन को यह आभास हुआ कि उंसकी बहन अब बडी हो गई थी। वह उसके साथ खेल सकती थी।

उसे समझ में आ रहा था कि उजाला को भी ऐसे ही अपने भाई-बहनों के साथ खेलने को मन होता होगा जैसे कि मेरा होता है।

इसीलिए वह चला गया।

मैं अब अकेला नहीं हूँ। मेरे पास भी एक साथी है, खेलने के लिए, मेरी प्यारी बहन।

चंदन दौड-दौड़कर सबको बता रहा था। और छोटी गुडिया खुशी से ताली बजा रही थी।