प्यारा-सा सुस्त दोस्त

नाना नानी की कहानियाँ

एक कछुआ और एक साँप गहरे दोस्त थे।

वे दोनों एक बडे से नीम के पेड़ के नीचे रहते थे।

पेड़ के तने के नीचे एक कोटर थी, जिसमें साँप रहता था।

कोटर के पास ही मिट्टी के एक ढेर के नीचे कछुए का घर था।

साँप हमेशा कछुए को चिढ़ाता रहता था। वह कछुए से कहता- 'तुम तो एकदम सुस्त हो, कितना धीरे चलते हो।

मुझे देखो कितनी तेजी से चल सकता हूँ।

' और तब कछुआ हँसकर कहता, “तो क्या हुआ ? में धीरे-धीरे सब काम करता हूँ लेकिन काम पूरा तो करता हूँ न।

और फिर मेरे जैसा कठोर कवच तुम्हारे पास है क्या?'

वह साँप की बात का बुरा नहीं मानता था। दोनों खाना ढूँढ़ने साथ-साथ जाते थे।

फिर पास की नदी में तैरते थे और शाम को अपने घर वापिस आ जाते थे।

एक दिन वे रोज की तरह सुबह निकले। इधर-उधर खूब घूमे-फिरे। शाम को वापिस लौटे तो उनका घर वहाँ था ही नहीं।

किसी ने उस नीम के पेड को काटकर हटा दिया था। वहाँ सड॒क बन रही थी। इसलिए पेट काट दिया गया था।

साथ ही मिट्टी का वह ढेर भी हटा दिया गया था, जो कि कछुए का घर था।

दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि क्या किया जाए।

वे उदास मन से वापिस चल पडे। अब उनको चिता थी एक नया घर ढूँढ़ने की। साँप बहुत ज्यादा परेशान था।

तब कछुए ने साँप से पूछा, ' क्यों साँप भाई, तुम इतने ज्यादा उदास क्‍यों हो ?

हम दोनों मिलकर एक नया घर ढूँढ़ ही लेंगे। मैं हूँ न तुम्हारे साथ।'

साँप झट-से बोला, “तुम्हारा क्या, तुम्हें तो भगवान ने पीठ पर ही एक घर दे दिया हे।

तुम्हें क्या चिता है, अपने खोल के अंदर छिपकर आराम से रह सकते हो। समस्या तो मेरी हे, मैं कहाँ जाऊँ ?'

तब कछुआ उसके पास आकर प्यार से बोला, "मेरे प्यारे दोस्त, में इस मुसीबत के समय तुम्हें अकेला केसे छोड़ सकता हूँ।

माना कि मेरे पास मेरा कवच है, लेकिन जब तक तुम्हें घर नहीं मिल जाता, मैं तुम्हारे साथ हूँ।'

साँप मुस्कुराया और दोनों दोस्त एक नया घर ढूँढ़ने साथ-साथ चल पडे।

आज साँप कछुए के साथ धीरे-धीरे ही चल रहा था।

उसे पता चल गया था कि उसका दोस्त सुस्त जरूर है लेकिन है बहुत प्यारा।