अजनबी

नाना नानी की कहानियाँ

एक छोटा-सा गाँव था।

उसके बीचों-बीच एक बड़ा-सा मैदान था।

मैदान में हर रोज बहुत सारे बच्चे खेलते थे। उन्हीं बच्चों में से एक था मनु। मनु के बहुत सारे दोस्त थे।

वह भी रोज शाम को अपने दोस्तों के साथ मैदान में खेलता था।

एक दिन मनु और उसके दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे। तभी एक अजनबी व्यक्ति वहाँ से गुजरा।

उसे पहले वहाँ किसी ने नहीं देखा था। लड़कों को मजाक सूझा और चिल्लाकर बोले, 'ऐ भाई, इधर तो आओ, खेलो हमारे साथ।'

लेकिन अजनबी उनकी बात को अनसुना करके आगे चला गया। लड़कों को मस्ती सूझी।

वे बोले, “क्यों भाई, गूँगे-बहरे हो क्या ? सुन नहीं सकते या बोलना नहीं आता ?

हा-हा...।'

लड़के उसका मजाक बनाने लगे।

बस उस दिन के बाद से हर दिन, जैसे ही वह अजनबी वहाँ से गुजरता था, लड़के चिल्लाने लगते, 'देखो, गूँगा-बहरा आया। गूँगे बहरे कहाँ जा रहे हो ?'

मनु हमेशा चुप रहता था। उसको ऐसा बोलना अजीब लगता था।

उसके माता-पिता ने उसे सिखाया था कि बड़ों का आदर करना चाहिए। किसी से भी गलत ढंग से बात नहीं करनी चाहिए।

यह चिढ़ाने का सिलसिला रोज चलता रहा। अजनबी हमेशा चुप रहता था।

एक दिन मनु मैदान में अकेला था, उसके दोस्त अभी आए नहीं थे। तभी वह अजनबी वहाँ से गुजरा।

मनु कभी कुछ बोलता नहीं था। लेकिन उसे पता नहीं क्या हुआ, वह बोल पड़ा, 'गूँगे-बहरे कहाँ जा रहे हो ?

और उस दिन अजनबी चुप नहीं रहा। वह धीरे से मनु के पास आया। पहले तो मनु डर गया।

फिर जब अजनबी ने उसकी ओर मुस्कुराकर देखा तो उसका डर कम हुआ।

अजनबी ने उसकी ओर देखकर कहा, “बेटा, में अपनी बेटी को लेने उसके स्कूल जा रहा हूँ। तुम तो अच्छे बच्चे लगते हो।

किसी भी दिन तुमने ऐसी बात मुझसे नहीं कही। फिर आज क्या हुआ ? बडों से इस तरह से बात करना अच्छी बात नहीं है।'

ऐसा कहकर उसने मनु के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और आगे चला गया।

मनु को अपने ऊपर बहुत शर्म आई। उसने अपने दोस्तों को भी समझाया।

अगले दिन जब अजनबी वहाँ से गुजरा तो कोई आवाज नहीं आई।

अजनबी ने मुड़कर देखा तो मनु और उसके दोस्त दूर खडे होकर मुस्कुरा रहे थे।