यह कहानी बहुत-बहुत पुराने समय की है।
तब आने-जाने के लिए बस, ट्रेन, हवाई जहाज जैसा कोई भी वाहन नहीं था।
सभी लोग पैदल चलकर एक जगह से दूसरी जगह जाया करते थे। इस तरह उन्हें जाने-आने में ही हफ्तों लग जाते थे।
एक बहुत बड़ा-सा रेगिस्तान था। एक मुसाफिर रेगिस्तान से होकर कहीं जा रहा था।
तभी उसने एक विशालकाय जानवर को अपनी ओर आते देखा।
वह घबराकर छिप गया। इस जानवर की लंबी-लंबी टाँगें थीं, ऊँची पीठ पर एक कूबड़ था और लंबी-सी गर्दन थी।
मुसाफिर डरकर दूसरी ओर चला गया।
अगले दिन उसे फिर वही अजीब जानवर दिखाई दिया।
उसने मुसाफिर को देखा।
फिर बिना कुछ कहे दूसरी ओर पानी पीने चला गया।
मुसाफिर यह देखकर आश्चर्यवचकित हो गया कि इस जानवर ने अपनी लंबी गर्दन पानी में डाल दी और बहुत देर तक लगातार पानी पीता रहा। फिर वह चला गया।
उसके बाद मुसाफिर ने ऐसे कई और जानवर भी देखे। उसने इनको ध्यान से देखना और समझना शुरू कर दिया।
उसने देखा कि यह विशाल जानवर बिना थके, गर्म रेत पर घंटों चल सकता था।
उसे प्यास भी जल्दी नहीं लगती थी। उसका शरीर काफी मजबूत था।
मुसाफिर ने थोड़ी हिम्मत की और ऐसे एक जानवर के पास पहुँचा।
उसे यह देखकर अच्छा लगा कि इस जानवर ने उसे नुकसान नहीं पहुँचाया। यह लंबा और ऊँचा होने पर भी शांत था।
अब मुसाफिर के मन में एक विचार आया, 'क्यों न मैं इसे अपने बस में कर लूँ, फिर में इस पर बैठकर दूर तक जा सकूँगा। मुझे पैदल नहीं चलना पडेगा।'
और एक दिन उसने धीरे से एक जानवर की नाक में नकेल डाल दी।
अब तो वह इस जानवर का उपयोग भारी सामान ले जाने में भी करने लगा। फिर मुसाफिर ने ऐसा ही एक जानवर अपने बेटे को दे दिया।
वे दोनों उन पर सवार होकर, भारी-भारी सामान लेकर, एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे।
और इस तरह से इस जानवर का नाम पड़ा-' रेत का जहाज।'
आज भी यह रेत का जहाज बोझ ढोने का काम करता है।
जानते हो इस जानवर का नाम क्या है ?
सही पहचाना, ये है ऊँट!