एक छोटी-सी लड॒की थी अनु।
सबसे दोस्ती करना उसे बहुत अच्छा लगता था। इसीलिए उसके बहुत सारे दोस्त थे।
दो दिन बाद उसका जन्मदिन था, आठवाँ जन्मदिन। ' अरे वाह! कितना मजा आएगा।
न! मैं अपने सब दोस्तों को बुलाऊँगी अपने जन्मदिन पर।' सोचकर वह खुशी से उछल पड़ती थी।
हर वर्ष अनु के जन्मदिन पर उसकी मम्मी उसके लिए एक सुंदर-सी नई फ्रॉक लाती थीं। इस बार भी उसने मम्मी से कहा, “मम्मी, मेरी नई फ्रॉक कहाँ हे ?'
“आज ले आऊँगी' मम्मी सब्जी काटते हुए बोलीं। तभी उसकी सबसे पक्की सहेली नीतू दौड़ती हुई वहाँ आई।
नीतू और अनु की दोस्ती बहुत गहरी थी।
वे दोनों सब चीजें पहले एक-दूसरे को दिखाती थीं। उनके घर आमने-सामने थे, इसलिए वे जब चाहे एक-दूसरे के घर आ-जा सकती थीं।
आज भी नीतू के हाथ में एक पैकेट था। वह हाँफते हुए बोली, ' अनु, ये देख मुझे क्या मिला ?'
'क्या है यह ?' अनु बोली।
'मेरी मौसी आई हैं मुंबई से। वे लाई हैं मेरे लिए!' यह कहकर उसने पैकेट खोला।
फिर उसने पैकेट के अंदर से एक बेहद सुंदर-सी गुलाबी रंग की फ्रॉक निकाली। अनु तो बस देखती ही रह गई।
'कितनी सुंदर फ्रॉक है!' वह बोली।
'मैं यह फ्रॉक तुम्हारे जन्मदिन पर पहनूँगी।' नीतू बोली। यह कहकर वह दौड़कर वापिस चली गई।
लेकिन अनु की आँखों में तो वह फ्रिल्स वाली सुंदर गुलाबी फ्रॉक बस गई थी। फिर उसके मन में एक विचार आया-
'नीतू तो मेरी सबसे प्यारी दोस्त है। अगर मैं उससे कुछ माँगूँगी तो वह मना नहीं करेगी।
फिर वह मम्मी के पास आई और बोली, “मम्मी आप मेरे जन्मदिन के लिए ड्रैस मत लाइएगा।
मैं अपने जन्मदिन पर नीतू की गुलाबी फ्रॉक पहनूँगी।
लेकिन बेटा, मैं तुम्हारे लिए भी ऐसी ही सुंदर फ्रॉक लेकर आऊंगी। तुम नीतू से फ्रॉक मत माँगना।' मम्मी बोलीं।
“नहीं मम्मी, मुझे वही फ्रॉक चाहिए। जन्मदिन के बाद मैं फ्रॉक नीतू को लौटा दूँगी।' अनु बोली।
“लेकिन वह उसकी नई फ्रॉक है अनु। उसे पहले एक बार पहन तो लेने दो।'
“मम्मी, वह मेरी सबसे प्यारी दोस्त है, वह मना नहीं करेगी।' पूरे विश्वास के साथ अनु ने कहा।
“अच्छा, अभी रात बहुत हो गई है, सो जाओ। सुबह बात करेंगे।' मम्मी बोलीं।
सुबह को जब अनु सोकर उठी तब तक उसने सब सोच लिया था। नीतू को कैसे मनाना है, मम्मी को क्या कहना है, सब सोचकर रखा था उसने।
लेकिन जब उसने आँखें खोलीं तो देखा कि मम्मी और नीतू उसके सामने खडी हेैं। दोनों के हाथ में एक-एक उपहार है।
“यह सब क्या है ?' अनु ने आश्चर्य से पूछा। यह मेरी गुलाबी फ्रॉक है। तुम इसे पहनना चाहती थीं ना! ये लो।” नीतू बोली।
अनु तो जैसे कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। सब इतनी आसानी से हो जाएगा। यह तो उसने कभी सोचा ही नहीं था।
'थैंक यू नीतू, तुम कितनी अच्छी हो। कल पहनकर मैं तुम्हारी फ्रॉक वापिस लौटा दूँगी। ठीक है ?” वह बोली।
“ठीक है।' नीतू ने कहा।
अब मम्मी उसके पास आकर बोलीं, “अनु, ये तुम्हारे लिए एक छोटा-सा उपहार है।'
'क्या है इसमें ?” अनु बोली।
“इसमें जो भी है, क्या तुम पहले नीतू को लेने दोगी। जैसे कि उसने अपनी फ्रॉक तुम्हें दे दी है, सबसे पहले पहनने को ?” मम्मी ने पूछा।
'हाँ-हाँ क्यों नहीं।' अनु झट से बोली। उसे जो चाहिए था वह तो उसे मिल ही गया था।
“बताइए तो सही इसमें क्या है ?” वह बोली।
“तुम्हारे चाचाजी ने स्विटजरलैंड से तुम्हार लिए तुम्हारी पसंद को चाकलेट्स भेजी हैं। वही जिनके लिए तुम पिछले एक साल से कह रही हो।' मम्मी ने बताया।
“चाकलेट्स!!! वाह! दो ना मुझे!!” वह खुशी से चिल्लाकर बोली।
एक मिनट अनु, अभी-अभी तुमने वादा किया था कि इस उपहार को पहले नीतू इस्तेमाल करेगी, बाद में तुम। यह डिब्बा नीतू को दे दो।' मम्मी बोलीं।
'लेकिन चाकलेट्स को एक बार खाकर दोबारा कैसे खाया जा सकता है ?' उसने मन में सोचा।
अब उसे समझ में आ रहा था कि मम्मी और नीतू उसे क्या समझाना चाह रहे थे।
उसने फ्रॉक वाला पैकेट उठाया और नीतू को देकर बोली, 'नीतू, मुझे माफ करना।
मैं इतनी छोटी-सी बात समझ नहीं पाई। यह तुम्हारा फ्रॉक है और सबसे पहले तुम ही इसे पहनना।'
नीतू ने धीरे-से मुस्कुराकर फ्रॉक ले ली।
अब अनु मम्मी की ओर घूमी और बोली, “मम्मी, चलिए जल्दी से तैयार हो जाइए।
हम दोनों को बाजार जाना है, मेरे जन्मदिन की फ्रॉक लाने के लिए।
चलिए, चलिए।' और मम्मी, नीतू और अनु तीनों बाजार जाने के लिए तेयार होने लगे।