स्वप्न महल

बहुत पुराने समय की बात है, एक राज्य था वीरगढ़।

वीरगढ़ के राजा 'परमवीर' बहुत ही अच्छे व्यक्ति थे।

सभी के लिए उनके मन में प्रेम था। अपनी प्रजा का वे बहुत ध्यान रखते थे।

उनके दरबार के सभी सदस्य भी उनका बहुत आदर करते थे। उनके दरबारियों में से एक थे कुशाग्र बुद्धि।

कुशाग्र बुद्धि का अर्थ होता है पैनी बुद्धि वाला।

अपने नाम के अनुसार कुशाग्र बड़े ही बुद्धिमान व्यक्ति थे।

जब कोई समस्या बहुत उलझ जाती थी तो लोग कुशाग्र बुद्धि से परामर्श करते थे।

एक रात राजा परमवीर ने एक स्वप्न देखा। यह एक विचित्र स्वप्न था।

उन्होंने देखा कि उन्होंने एक महल का निर्माण करवाया है। यह कोई साधारण महल नहीं था।

उनका यह सुंदर एवं भव्य महल हवा में लटका हुआ था, बिना किसी सहारे के।

महल के अंदर और बाहर सैकडों बत्तियाँ थीं, जो मात्र सोचने से जल जाती थीं और सोचने से ही बंद भी हो जाती थीं।

सुबह जब राजा परमवीर उठे तो रात का स्वप्न बार-बार उन्हें याद आ रहा था।

दरबार में भी उन्होंने अपना यह स्वप्न सभी को सुनाया। सभी दरबारियों ने उनकी कल्पना को बहुत सराहना की। फिर राजा बोले-

'मैं चाहता हूँ आप किसी ऐसे बढ़िया कारीगर को ढूँढ़कर लाएँ जो हमारे स्वप्न का महल बना सके।'

सभी दरबारी अचानक शांत हो गए।

हवा में लटका हुआ महल ? ऐसा कभी हो सकता है क्या ? सभी के मन में यही प्रश्न था।

कुछ दिनों के बाद राजा ने फिर यही प्रश्न दरबारियों के सामने रखा, 'क्या आप लोगों ने एक ऐसे व्यक्ति को ढूँढा, जो हमारा स्वप्न-महल बना सके ?

' जब किसी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला तो उन्हें क्रोध आ गया।

उन्होंने आदेश दिया, “यदि पाँच दिन के अंदर ऐसे कारीगर की खोज पूरी न कर ली गई तो सभी द्रबारियों को हमेशा के लिए कारागार में डाल दिया जाएगा।

' अब सभी चितित हो गए। कुशाग्र बुद्धि कई दिनों से शहर से बाहर गए हुए थे। जब वे वापिस लौटे तो उन्हें राजा की हठ का पता चला।

अगले दिन दरबार में एक बूढ़ा भिखारी राजा से इंसाफ माँगने आया। वह रो-रोकर कह रहा था, 'दया कीजिए मालिक, मुझे इंसाफ दीजिए।'

'क्या दुख हे तुम्हें ?” राजा ने पूछा।

“हुजूर मैं लुट गया। मेरी सारे जीवन की जमा-पूँजी किसी ने चुरा ली है।' बूढ़ा भिखारी बोला।

'कौन है वह, क्‍या तुम उसे जानते हो।' राजा ने पूछा। “जी मालिक, लेकिन आपसे अपनी जान की बख्शीश चाहता हूँ।' भिखारी बोला।

'हाँ-हाँ कहो, घबराओ नहीं। कौन है अपराधी ?' राजा ने कहा।

'हुजूर आप, कल रात मैंने स्वप्न में देखा कि आप धीरे से मेरे घर में घुसे और मेरी सारी जमा पूँजी चुराकर ले गए।' वह बोला।

'ये क्या कह रहे हो तुम ? लगता है तुम होश में नहीं हो।' राजा ने क्रोधित होकर कहा, “यदि हमने तुम्हें वचन न दिया होता तो इस अपराध के लिए तुम्हें भारी दंड दिया जाता।

तुम कहना चाहते हो कि तुम्हारे स्वप्न में हम तुम्हारे घर में घुसे, चोरी करने के लिए।

मूर्ख हो तुम, जो स्वप्न की बात सच मानकर हमारा समय नष्ट करने चले आए। भला स्वप्न की कभी सच होते हैं।

और वह भी ऐसा असंभव स्वप्न!'

तभी एक जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी। 'महाराज, हम भी यही कहना चाहते हैं।

असंभव स्वप्न को सच मान लेना मूर्खता है। यह आवाज थी कुशाग्र बुद्धि की, जो बूढ़े भिखारी के वेश में राजा परमवीर के सामने खडे थे।

और इस प्रकार कुशाग्र बुद्धि ने अपनी बुद्धिमानी से राजा परमवीर को उनकी असंभव हठ छोड़ने को राजी कर लिया।