कहाँ गई पूँछ

एक जंगल में एक लोमडी रहती थी।

उसकी लंबी पूँछ थी, जिस पर घने बाल थे। लोमड़ी को अपनी इस पूँछ पर बड़ा घमंड था, हमेशा अपनी पूँछ लहराती हुई चलती थी।

यदि किसी छोटे जानवर को उसकी पूँछ लग जाती तो वह चिल्लाकर कहती, 'देखकर नहीं चल सकते हैं क्‍या, मेरी प्यारी पूँछ खराब हो जाएगी।'

एक बार इसी तरह वह पूँछ को हिला-हिलाकर चल रही थी। तभी उसकी पूँछ कहीं अटक गई।

उसने पीछे मुड़कर देखा तो शिकारी ने वहाँ जाल बिछाया हुआ था।

उसकी पूँछ जाल में फँस गई थी। लोमडी ने धीरे से खींचकर पूँछ को निकालना चाहा।

लेकिन कसाव ज्यादा ही था। वह काफी देर तक कोशिश करती रही लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

तभी उसने शिकारी के कदमों की आवाज सुनी।

ओह, शिकारी आ रहा है।

हे भगवान, मेरी रक्षा करो।' वह बोली। उसने एक आखिरी कोशिश की और जोर से खींचा अपने शरीर को।

एक तीखा दर्द हुआ और वह आजाद हो गई।

पीछे मुड़कर देखे बिना वह दौड़ गई। इस दोड़भाग में उसने यह भी ध्यान नहीं दिया कि उसकी पूँछ, जिस पर उसे इतना घमंड था, गायब थी।

थोडी दूर गई तो सभी जानवर इसे देखकर हँसने लगे। एक बिना पूँछ की लोमडी उन्होंने कभी नहीं देखी थी।

तब लोमडी को पता चला कि उसकी पूँछ जाल में अटककर कट गई थी।

दूसरे जब आप हँसते हैं तो कितना बुरा लगता है, इसका अहसास उसे आज पहली बार हुआ था।

जानवर खुश थे कि अब लोमडी अपनी पूँछ के कारण उन्हें कभी नहीं सताएगी।