बहुत साल पहले की बात है।
एक गाँव में एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति रहता था।
उसका नाम था महेश लेकिन उसकी बुद्धिमानी और चतुराई के कारण सभी उसे 'ज्ञानीजी' कहकर बुलाते थे।
'ज्ञानीजी' की चतुरता के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे।
पडोसी गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसका नाम माधव था। वह ज्ञानीजी से ईर्ष्या करता था।
माधव एक बहुत अच्छा चित्रकार था। उसके गाँव में उसका बहुत सम्मान किया जाता था।
ज्ञानीजी भी उसकी कला का आदर करते थे। लेकिन ज्ञानीजी की लोकप्रियता माधव को अच्छी नहीं लगती थी।
एक दिन माधव ने निश्चय किया कि वह ज्ञानीजी को अपने साथ प्रतियोगिता के लिए बुलाएगा।
उसने ज्ञानीजी को निमंत्रण भेजा। ज्ञानीजी ने माधव की चुनौती स्वीकार कर ली और माधव के गाँव पहुँच गए।
माधव ने पूरे गाँव को बुलाया हुआ था। बच्चे-बूढे, स्त्री-पुरुष सभी एक बडे मैदान में एकत्रित हुए थे। बीच में एक मंच बना हुआ था।
माधव ने ज्ञानीजी से कहा, 'मैं आपको चुनौती देता हूँ कि जो में कर सकता हूँ, वह आप नहीं कर सकते।'
यह कहकर उसने सामने बैठे ज्ञानीजी का चित्र बनाना शुरू कर दिया।
रंग और कूची का ऐसा कमाल किसी ने पहले नहीं देखा था।
देखते-ही-देखते ज्ञानीजी का ऐसा बढ़िया चित्र बन गया कि सभी देखने वाले बोल उठे, 'वाह, क्या बात है ?'
अब ज्ञानीजी की बारी थी। वे उठे और बोले, 'माधवजी, आपकी चित्रकला की मैं हृदय से प्रशंसा करता हूँ।
चित्रकला में आपके जैसा कलाकार मिलना मुश्किल है।
लेकिन मैं आपको चुनौती देता हूँ कि जो काम में आँखें बंद करके कर सकता हूँ, आप वह आँखें खोलकर भी नहीं कर सकते।'
माधव को इस बात पर हँसी भी आई ओर क्रोध भी आया।
'कैसा मूर्ख व्यक्ति है। लगता है इसको घमंड हो गया है। ऐसा कौनसा काम हो सकता है जो मैं आँखें खोलकर भी नहीं कर सकता।' माधव ने मन में सोचा।
वह ज्ञानीजी से बोला, “मुझे स्वीकार है।'
तब ज्ञानीजी मंच से नीचे उतरे और मुट्ठी भरकर रेत उठा लाए। फिर उन्होंने आँखें बंद कीं और रेत को धीरे-धीरे अपनी आँखों पर डालने लगे।
सभी आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे। रेत जब खत्म हो गई तो उन्होंने आँखों के आसपास की रेत को साफ किया और फिर आँखें खोलीं।
अब वे माधव के पास आ गए और बोले, 'अब आप यही कार्य आँखें खोलकर कीजिए।' माधव अचंभित रह गया। ज्ञानीजी ने उसकी चुनौती का करारा जवाब दिया था।
उसने अपनी हार स्वीकार कर ली।
सभी लोगों ने एक स्वर में कहा, 'ज्ञानाजी आप सचमुच बुद्धिमान हैं।'