एक समुद्र के किनारे की रेत में केंकड़ों का एक परिवार रहता था।
एक सुबह केंकडे की माँ रेत पर टहल रही थी। तभी उसने एक बगुले को देखा।
बगुला बहुत-ही सुंदर ढंग से चल रहा था। एक-एक कदम सीधा रख रहा था।
कितनी सुंदर चाल है!! उसने मन में सोचा, और मेरे बेटे को देखो, कैसे टेढ़ा-मेढ़ा चलता है।
उसने अपने बेटे को बुलाया और बोली“ ये देखो बेटा, यह बगुला कितने अच्छे तरीके से चलता है और
तुम एक कदम भी सीधा नहीं रख सकते। तुम्हें इस बगुले से कुछ सीखना चाहिए।'
'ठीक है माँ, मैं कोशिश करूँगा।' छोटा केंकड़ा बोला।
वह बगुले के पीछे-पीछे चलने लगा। उसने बहुत कोशिश की बगुले जैसी चाल में चलने की।
लेकिन जितनी ज्यादा वह कोशिश करता था, उतना ही और टेढा हो जाता था। जब वह कोशिश करते-करते थक गया तो माँ से बोला-
“मां मैं कितनी देर से सीधा चलने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन अभी तक नहीं सीख पाया।
आप मुझे एक बार चलकर दिखाओ। तब में शायद सीख पाऊँ।'
अब केंकडे की माँ ने सीधा चलकर देखा। लेकिन नतीजा वही हुआ, जो छोटे केंकडे की कोशिश का हुआ था।
बहुत देर बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाई तबं॑ उसे समझ में आ गया कि किसी की नकल करना कोई जरूरी नहीं। उसने अपने बेटे से कहा-
'बेटा, मेंने बगुले की नकल करके गलती की।
हम केंकड़े अपनी टेढ़ी चाल के कारण ही तो जाने जाते हें।
यही हमारी पहचान है। हमारे पास जो है, उसी में खुश रहना चाहिए।'